अँधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने ही को दे ये कहें आजकल के सम्मान कर्ताओं को या फिर ये कहें जो आएगा वो पायेगा यानि सम्मान का कोई औचित्य नहीं है , सम्मान तो महज ढकोसला है , आप ही पैसे खर्च करें और सम्मान प्राप्त करें तो क्या औचित्य है उस सम्मान का .....मुझे आजतक समझ नहीं आया .
आप सूचना लगाते हैं अमुक सम्मान के लिए अपनी प्रविष्टि भेजिए और फलाने स्थान पर सम्मानित किया जायेगा .अब भेजने वालों ने भेज दी और आपने सूचित भी किया उन्हें कि आपको हम सम्मानित कर रहे हैं , आपकी उपस्थिति कंपल्सरी है ,अपने आने की सूचना से अवगत करायें .......इसमें कहीं ये शर्त नहीं है कि जो आएगा उसे ही सम्मानित किया जाएगा या फिर आने वाले ही सम्मानित होंगे जो नहीं आ सकते उन्हें सम्मानित नहीं किया जाएगा तो फिर एक बार सूचित करने के बाद यदि कोई सम्मान प्राप्त कर्ता अपनी मजबूरियों की वजह से नहीं आ पाता या वो आने में असमर्थता जताए क्योंकि सम्मानित भी देश में नहीं विदेश में करेंगे और सारा खर्चा आने जाने रहने सहित सम्मानित होने वाला खुद उठाएगा जिसमे लगभग 25000-30000 तक खर्चा आ ही जाएगा ऐसे में वो और क्या कहेगा . तो क्या उसे सम्मानित करने का जो निर्णय लिया गया संस्था द्वारा वो null एंड void हो जाता है ? मतलब शक्ल देखकर तिलक लगाया जाएगा ? तो ऐसे सम्मानों का क्या औचित्य है ?
आप देश से बाहर सम्मानित करेंगे और सम्मान प्राप्तकर्ता से कहेंगे कि चार से पांच दिन के आने जाने का खर्चा वो खुद उठाये और हम उसे ५०००/११००० रूपये देकर सम्मानित कर रहे हैं और यदि वो नहीं आ सकता तो सम्मान गया खटाई में उसकी जगह दूसरे को चुन लेंगे बिना उसे सूचित किये कि अब आप सम्मान के योग्य नहीं रहे क्योंकि आप वहां नहीं आ सकते .......कितनी उपहासास्पद स्थिति है ये . मेरी समझ से तो परे है मगर मुद्दा विचारणीय है .
ऐसा एक नहीं दो बार हो चुका . प्रविष्टि भेजो , भेज दी , आप चुन लिए गए फिर एक जगह कहा गया संस्था के नियमानुसार विभिन्न मदों के १००० रूपये जमा करा दो ..........अरे भाई आप सम्मानित कर रहे हैं या धंधा है आपका ? न आने जाने का खर्चा आप उठाओगे और ऊपर से चाहोगे सम्मान प्राप्त कर्ता आपकी जेब भी भरे ..........और मज़े की चीज दोनों ही आयोजनों में नामी गिरामी लोग शामिल हैं और जाने कितने सम्मान के भूखों को सम्मानित करते हैं और वो अपना खर्चा करके पहुँच भी जाते हैं .........और उनका धंधा चलता रहता है मगर प्रश्न उठता है :
१)क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?
२)ये कैसी परम्पराएं विकसित की जा रही हैं ?
३)क्या ऐसे सम्मान अपनी विश्वसनीयता कभी कायम कर पायेंगे ?
४) क्या सम्मान के नाम पर होती महाठगी नहीं है ?
५)यूं बड़े आयोजन का दम भरना कहाँ तक उचित है ? इस तरह का धंधा अपनाकर वो खुद को क्या सिद्ध करना चाहते हैं ?
लेखक के हाथ में सम्मान का झुनझुना पकड़ा उसकी पीठ पर सवार हो खुद को स्थापित करने की ये कैसी नयी परंपरा शुरू हो गयी है समझ से परे है .
डिस्क्लेमर : (नाम इसलिए नहीं दिए हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं )