गाँव खो रहे हैं
शहर सो रहे हैं
और नींद है कि टूटती ही नहीं
विकास के पहिये ने
रेत दी हैं गर्दनें
मगर लहू है कि कहीं दिखता ही नहीं
उम्मीदों के आकाश
चकनाचूर हो रहे हैं
और अच्छे दिन की आस है कि टूटती ही नहीं
शस्त्रागार में शस्त्र हैं बहुत
मगर चलाने के हुनर से नावाकिफ हैं जो
नहीं जानते चक्रव्यूह भेदने की विधा
अब और नहीं
अब और नहीं
अब और नहीं
कहते कहते गुजर गयीं सदियाँ
मगर तख्तापलट है कि होता ही नहीं
शायद यही है वजह
कि अब गुंजाईश को जगह बची ही नहीं
अभिमन्यु भेदना है इस बार चक्रव्यूह तुम्हें ही .........मरना हासिल नहीं ज़िन्दगी का
शहर सो रहे हैं
और नींद है कि टूटती ही नहीं
विकास के पहिये ने
रेत दी हैं गर्दनें
मगर लहू है कि कहीं दिखता ही नहीं
उम्मीदों के आकाश
चकनाचूर हो रहे हैं
और अच्छे दिन की आस है कि टूटती ही नहीं
शस्त्रागार में शस्त्र हैं बहुत
मगर चलाने के हुनर से नावाकिफ हैं जो
नहीं जानते चक्रव्यूह भेदने की विधा
अब और नहीं
अब और नहीं
अब और नहीं
कहते कहते गुजर गयीं सदियाँ
मगर तख्तापलट है कि होता ही नहीं
शायद यही है वजह
कि अब गुंजाईश को जगह बची ही नहीं
अभिमन्यु भेदना है इस बार चक्रव्यूह तुम्हें ही .........मरना हासिल नहीं ज़िन्दगी का