जब शब्दों और विचारों का
तालमेल टूटने लगे
भावों पर ग्रहण लगने लगे
और अन्दर तू्फ़ान उठने लगे
भयंकर चक्रवात चल रहा हो
अंधड में खुद का वजूद भी
ना मिल रहा हो
सिर्फ़ हवाओं का शोर मच रहा हो
सन्नाटे चीख रहे हों
ज़ुबान पर ताले लगे हों
और रूह का कतरा कतरा खामोश हो
तब कोई कैसे जीये ……बताना ज़रा
क्योंकि
एक अरसा हुआ
जारी है मौन का रुदन………मुझमें मेरे गलते , आखिरी साँस लेते वजूद तक
कोई तो बताये
अब तडप के भुने चनों पर
कौन सी चटनी डालूँ
जो चटकारा लगा सकूँ ………ज़िन्दगी का आखिरी जश्न मना सकूँ?
क्योंकि सुना है
मौन का रुदन जब होता है
बस वहीं सफ़र का अंत होता है
और मैं मनाना चाहती हूँ आखिरी जश्न को
ज़िन्दगी के पहले जश्न की तरह
ज़िन्दगी की पहली सुगबुगाहट की तरह
ज़िन्दगी की पहली उजास की तरह
क्या दे पाऊँगी मौन के रुदन को उसका मूर्त रूप
क्या लगा पाऊँगी कहकहे अपनी किलकारियों के
क्या लिख पाऊँगी एक नया ग्रंथ मौन के रुदन पर
उसका प्रथम और अन्तिम प्रयास बन कर
मौन के रुदन का एक शाहकार बनाकर
भविष्य के गर्त में हैं अभी परछाइयाँ
और मैं खेल रही हूँ गीटियाँ वक्त से
शायद पकड सकूँ कोई गीटी
और आकार पा जाये रुदन मौन होने से पहले........
तालमेल टूटने लगे
भावों पर ग्रहण लगने लगे
और अन्दर तू्फ़ान उठने लगे
भयंकर चक्रवात चल रहा हो
अंधड में खुद का वजूद भी
ना मिल रहा हो
सिर्फ़ हवाओं का शोर मच रहा हो
सन्नाटे चीख रहे हों
ज़ुबान पर ताले लगे हों
और रूह का कतरा कतरा खामोश हो
तब कोई कैसे जीये ……बताना ज़रा
क्योंकि
एक अरसा हुआ
जारी है मौन का रुदन………मुझमें मेरे गलते , आखिरी साँस लेते वजूद तक
कोई तो बताये
अब तडप के भुने चनों पर
कौन सी चटनी डालूँ
जो चटकारा लगा सकूँ ………ज़िन्दगी का आखिरी जश्न मना सकूँ?
क्योंकि सुना है
मौन का रुदन जब होता है
बस वहीं सफ़र का अंत होता है
और मैं मनाना चाहती हूँ आखिरी जश्न को
ज़िन्दगी के पहले जश्न की तरह
ज़िन्दगी की पहली सुगबुगाहट की तरह
ज़िन्दगी की पहली उजास की तरह
क्या दे पाऊँगी मौन के रुदन को उसका मूर्त रूप
क्या लगा पाऊँगी कहकहे अपनी किलकारियों के
क्या लिख पाऊँगी एक नया ग्रंथ मौन के रुदन पर
उसका प्रथम और अन्तिम प्रयास बन कर
मौन के रुदन का एक शाहकार बनाकर
भविष्य के गर्त में हैं अभी परछाइयाँ
और मैं खेल रही हूँ गीटियाँ वक्त से
शायद पकड सकूँ कोई गीटी
और आकार पा जाये रुदन मौन होने से पहले........