ये हरी - भरी धरा और
ये नीला - नीला आकाश
उल्लसित प्रफुल्लित कर गया
जीने की एक हसरत दे गया
आस का एक बीज बो गया
बादल आयेंगे और बरसेंगे भी
यूँ ही धरा ने नहीं ओढ़ी धानी चादर
यूँ ही नहीं मयूर ने पंख फैलाये हैं
यूँ नहीं हर आँगन चहचहाये हैं
कोई तो कारण होगा
शायद प्रिया का पिया से मिलन होगा
शायद कहीं कोई कली चटकी होगी
शायद कहीं कोई ड़ाल झुकी होगी
शायद कहीं कोई रस बरसा होगा
शायद कहीं कोई प्रेम धुन बजी होगी
शायद कहीं कोई प्रेमराग गाया होगा
शायद कहीं कोई नव निर्माण हुआ होगा
यूँ ही धरा नहीं बदलती श्रृंगार अपना
यूँ ही धरा पर नहीं आता यौवन पूरा
यूँ ही धरा नहीं बनती दुल्हन फिर से
यूँ ही धरा नहीं करती आत्मसमर्पण अपना
जरूर कहीं सावन बरसा है
जरूर कहीं कोई मन तडपा है
जरूर कहीं कोई बिछड़ा
फिर से मिला है
मेघ यूँ ही नहीं छाते हैं
बहारें यूँ ही नहीं आती हैं
बहारें यूँ ही नहीं आती हैं ...................
ये नीला - नीला आकाश
उल्लसित प्रफुल्लित कर गया
जीने की एक हसरत दे गया
आस का एक बीज बो गया
बादल आयेंगे और बरसेंगे भी
यूँ ही धरा ने नहीं ओढ़ी धानी चादर
यूँ ही नहीं मयूर ने पंख फैलाये हैं
यूँ नहीं हर आँगन चहचहाये हैं
कोई तो कारण होगा
शायद प्रिया का पिया से मिलन होगा
शायद कहीं कोई कली चटकी होगी
शायद कहीं कोई ड़ाल झुकी होगी
शायद कहीं कोई रस बरसा होगा
शायद कहीं कोई प्रेम धुन बजी होगी
शायद कहीं कोई प्रेमराग गाया होगा
शायद कहीं कोई नव निर्माण हुआ होगा
यूँ ही धरा नहीं बदलती श्रृंगार अपना
यूँ ही धरा पर नहीं आता यौवन पूरा
यूँ ही धरा नहीं बनती दुल्हन फिर से
यूँ ही धरा नहीं करती आत्मसमर्पण अपना
जरूर कहीं सावन बरसा है
जरूर कहीं कोई मन तडपा है
जरूर कहीं कोई बिछड़ा
फिर से मिला है
मेघ यूँ ही नहीं छाते हैं
बहारें यूँ ही नहीं आती हैं
बहारें यूँ ही नहीं आती हैं ...................