पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शुक्रवार, 25 मई 2018

वक्त की नदी में

मैं वक्त की नदी में तैरती इकलौती कश्ती ...दूर दूर तक फैले सूने पाट और ऊपर नीला आकाश...गुनगुनाऊं गीत तो तैरता है नदी की छाती पर हिलोर बनकर तो कभी हवाएं बेशक ले जाती हैं बहाकर अपने संग...शायद पहुँचे किसी मीत तक फ़रियाद बन ...तन्हाइयों के शहर में बेबसी की आवाज़ बन....शायद दर्द बह जाए टूटते तारे का रुदन बन ...सुना है जो भी कहा जाता है ब्रह्माण्ड में घूमता रहता है अनंतकाल तक ...मेरे मीत! अनंतकाल में कोई काल तो मेरा होगा न जिसमें हो जाएगी सिन्दूरी मेरी पूरी उम्र ...एक रुके हुए फैसले की अर्जी ख़ारिज मत कर देना...तन्हाइयों से बौखलाया शहर सिसक रहा है, दम तोड़ रहा है ...कि कहीं कोई सितार तो बजे और रूह हो जाए अलमस्त कलंदर सी