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गुरुवार, 21 मई 2020

कतार का अंतिम आदमी

बेशक
मैं कतार का अंतिम आदमी हूँ
लेकिन सबसे अहम हूँ

मेरे बिना तुम्हारे महल चौबारे नहीं
पूँजी के नंगे नज़ारे नहीं
फिर भी दृष्टि में तुम्हारी नगण्य हूँ

मत भूलो
स्वप्न तुम देखते हो
पूरा मैं करता हूँ
फिर भी मारा मारा
मैं ही यहाँ वहां फिरता हूँ

तुम तभी चैन से सोते हो
जब मैं धूप में तपता हूँ
तुम्हारी ख्वाहिशों का इकबाल बुलंद हो
इस खातिर
अपनी नींदों को रेहन रखता हूँ

भूख, बीमारी, लाचारी मेरे हिस्से आती है
फिर भी न शिकायत करता हूँ
सर्दी गर्मी वर्षा की हर मार मैं ही सहता हूँ
अर्थव्यवस्था के उत्थान में अपना योगदान देता हूँ
फिर न किसी कतार का हिस्सा हूँ
नगण्य ही सही,
फिर भी तुम्हारा हिस्सा हूँ

बुधवार, 20 मई 2020

ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ



ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ

इंसान होकर इंसान से ही लड़ रहा हूँ


ये किस तूफां से गुजर रहा हूँ

जब नब्ज़ छूटती जा रही है

ज़िन्दगी फिसलती जा रही है

अब भूख से भी इश्क कर रहा हूँ


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...


काली रातों की भस्म मल रहा हूँ

उम्मीद के सर्द मौसम से डर रहा हूँ

चिलचिलाती धूप में भी नंगे पाँव चल रहा हूँ

हर गली कूचे शहर में सिर्फ मैं ही मर रहा हूँ

ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...



वो देखो भूख से लड़ रहा है

ज़िन्दगी से बहस कर रहा है

ज़िन्दगी और भूख आमने सामने हैं

मगर न कोई जीत हार रहा है


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...


वक्त के अजीब पेचोखम हैं

किश्त-दर-किश्त ले रहा है

कल आज और कल के मनुज से

एक नया प्रश्न कर रहा है


ज़िन्दगी से एक युद्ध कर रहा हूँ ...

रविवार, 10 मई 2020

विकल्पहीन होती है माँ

विकल्पहीन होती है माँ 
बच्चों की हसरतों के आगे 
भूल जाती है दर्दोगम अपना 
कर देती है खुद को किनारे 
अपनी चाहतों को मारे 
कि 
खुद को मारकर जीना जो सीख चुकी होती है 

तो क्या हुआ 
जो उम्र एक अवसाद बन गयी हो 
और जीवन असरहीन दवा 

ममता का मोल चुकाना ही होता है 
अपनी चाहतों को दबाना ही होता है 
कि
घुट घुटकर जीना ही बचता है जिसके सामने अंतिम विकल्प 
किसे कहे और क्या ? 
कौन समझता है यदि कह भी दे तो ?

ये तकाजों का दौर है 
जिसका जितना बड़ा तकाज़ा 
उसका उतनी जल्दी भुगतान 
मगर माँ 
वो क्या करे ?
कैसे और किससे करे तकाज़ा 
सूखी रेत सा झरना ही जिसकी नियति हो 

तो क्या हुआ 
जो रोती हो सिसकती हो अकेले में 
कि 
जड़त्व के सिद्धांत से वाकिफ है 
इसलिए नहीं चाहती 
विकल्पहीनता उतरे उनके हिस्से में 

जी जाना चाहती है 
अपने बच्चों के हिस्से की भी विकल्पहीनता 
कि 
विकल्प ही होते हैं उम्मीद का नया कोण 

इससे ज्यादा और क्या दे सकती है एक माँ अपने बच्चों को ......