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शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

कमजोर बुनियादों का शहर

अंधेरों की पाँख पर बीजती सुबहों में 
इन्द्रधनुषी रंगों की छटा 
यूँ ही नहीं उतरी होती 
कोई कसमसाती रात की रानी के 
जब गिरते हैं टेसू 
तब जाकर सुबह की अलसाई आँखों में 
उतरती है एक बूँद ओस की 

और इस बार समेटना है ओस की हर बूँद को 
उसकी क्षणभंगुरता में पहुँचने से पहले 
बनाना है दीर्घकालिक उसका जीवन 
बूँद बूँद से घट भरने की तर्ज पर 

सामूहिक प्रयास की गंगा बहाने के लिए 
एक डुबकी खुद लगानी होती है 
तब जाकर गोमुख से गंगा निकला करती है जिस तरह 
उसी तरह मानव श्रृंखला बना करती है 
संवेदनाओं की फसल पका करती है 

संवेदनहीन दौर में जीने के शाप से ग्रसित हम लोग 
मजबूर नहीं हैं , बताना है एक बार खुद को 
सिर्फ तलवार की मूठ पर हाथ होने से नहीं जीती जातीं लड़ाइयाँ 
तलवार चलाने के हुनर में माहिर होना भी जरूरी है 

शह और मात का खेल नहीं ज़िन्दगी 
बताना है इस बार जन जन को 
जगानी हैं उनमे सोयी हुई खुद्दारी 
'मैं और मेरे' से परे भी है एक जहान
इंसानियत एक शब्द भर नहीं है 
परिचित कराना भी है मकसद 

बस काफी होगा फिर 
सोये शेर की मांद में घुसकर ललकारना भी 
संभव हो जाएगा फिर 
इन्द्रधनुष के हर रंग पर अपना नाम लिखना भी 

बुनियाद की मजबूती ही इमारत की दीर्घकालिकता निश्चित किया करती है 
और आज कमजोर बुनियादों का शहर बन गया है ये जहान

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

अफ़वाह

चरणबद्ध तरीके से फैलाकर 
भ्रांतियों का बाज़ार 
वो कर जाते हैं तुम्हें दरकिनार 
करके अफ़वाह का बाज़ार गरम 
सेंक लेते हैं कुछ रुमाली तो कुछ तालिबानी रोटियाँ 
करके तुम्हें हलाल 
सजा लेते हैं अपने लिए एक सम्मानित थाल 

आरती उतारने को जरूरत ही कितनी होती है 
सिर्फ़ एक घी से भरा दीप और तुम बन जाते हो भगवान 
हाँ भगवान, एक ऐसे भगवान 
जो खुद के द्वारा पोषित होता है 
जो स्वंय को सर्वेसर्वा सिद्ध करने को 
कर सकता है तुम्हारे खिलाफ़ अघोषित युद्ध 
बिना तीर तलवार के करके घायल 
हो जाता है सफ़ल कुछ निगाहों में 
मगर खुद की निगाह में ये छद्म सफ़लता 
क्या बना पाती है कोई मुकाम 
मापने को नहीं बने हैं अभी कोई यंत्र 

ये बाज़ार है प्यारे 
यहाँ अफ़वाहों के ओवन में पककर 
निकली खबरों पर ही राज किया जाता है 
और आज की ताज़ा खबर है ये 
अब तुम इस पर विश्वास करो या नहीं तुम पर निर्भर करता है 
तुम्हारी संभावनाओं का अंत करने को 
कोशिशों के तमाम उपकरण काम पर लगा दिए गये हैं 
क्या कर सकते हो तुम उन उपकरणों की पहचान 
जिसमें  एक कान से गुजरने पर 
और दूसरे कान तक पहुँचने तक 
जुड जाते हैं तमाम विशेष उपकरण 
ईर्ष्या और द्वेष के 
करने को तुम्हें खारिज 
तुम्हारी उपस्थिति से 
जहाँ सत्य के उन्ही घिसे पिटे उपकरणों के सहारे 
युद्ध करने पर हो जाते हो तुम निष्कासित 
वहाँ कैसे जीत सकते हो युद्ध तुम अफ़वाह के बाज़ार से 

सत्य के पथ को त्याग अपना सको तो अपना लो 
खुल जायेगी तुम्हारे यहाँ भी सफ़लता की ट्कसाल 
वरना मत करो उत्पात मत करो शोर 
जो खुद को नहीं ढाल सकते बाज़ार के चलन  में 
यही है दस्तूर सफ़ल व्यक्तित्व बनने को 
यदि थोडी कीचड कपडों पर लग भी जाए तो क्या 
पहचान और प्रसिद्धि कटिबद्ध रहेंगी तुम्हारे कदम चूमने को 

अफ़वाह का गर्म बाज़ार आज के जीवन में सफ़लता का मूलमंत्र है प्यारे !!!

जानकर सारी योजनायें भी 
सोचती हूँ इस बार 
फ़ँस ही जाऊँ जाल में 
क्योंकि वो हैं शिकारी और मैं हूँ उनका 
ईज़ी टारगेट उर्फ़ आसान शिकार !!!

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

ए कहाँ हो ?



ए कहाँ हो ?
देखो आज तुम्हारे शहर में 
मौसम ने डेरा लगाया है 
हवाएं पैगाम लिए दस्तक दे रही हैं 
दरवाज़ा खोलो तो सही 
घर आँगन ना महक जाए तो कहना 
रजनीगंधा की खुश्बू 
रूह में ना उतर जाए तो कहना 

आज तुम्हारे लिए 
मौसम के सारे गुलाब लेकर बहार आयी है 
देखो  
तुम्हारा मनपसंद काला गुलाब 
याद है न कहा करते थे 
ये तुम्हारे सुरमई बालों में 
चाँद की चांदनी में जब चमकेगा  
यूँ लगेगा जैसे नज़र का टीका लगाया हो 
देखो सुर्ख पलाश 
कैसे बिखरे हैं दरवाज़े पर 
जिनका रंग तुम 
अपनी कविताओं में उतारा करते हो 

क्या आज एक नज़्म नहीं लिखोगे 
फिर से उसी मोहब्बत के नाम 
जिसके फूल हरसिंगार की तरह झड़ रहे हैं 
देखो मोहब्बत ने 
कैसा दूधिया रंग बिखेरा है 
तुम्हारा आँगन भर गया है 
सफ़ेद हरसिंगार से 

बताओ अब और कौन सी रुत बची है 
पतझड़ का मौसम बीत चुका  है 
और आज तो बसंत का पुनः आगमन हुआ है 
तुम एक बार 
बंद दरवाज़े खोलो तो सही 
जानते हो न 


मोहब्बत रोज़ दस्तक नहीं दिया करती !!!

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

इश्क की कुदालें

मैंने तह करके रख दिए सारे सपने 
और अब धूप दिखा रही हूँ खाली मर्तबान को 

पीने को पानी होना जरूरी तो नहीं 
प्यास के समन्दरों में खेलती हूँ पिट्ठुओं से 

रूह खामोश रहे  या शोर करे 
कतरे सहेजने को नहीं बची मदिरा पैमानों में 

ए री मैं गिरधर की दासी कह 
अब कोई मीरा न रिझाती मोहन को 

इश्क की कुदालें छीलती हैं सीनों को 
तब मुकम्मल हो जाती है ज़िन्दगी मेरी 

आ महबूब मेरे चल जी ले कुछ पल मेरी तरह .......मेरे साथ ...... फिर इस रात की सुबह हो के न हो 

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

साहित्यिक गर्भ ज्ञान

गुरु जी साहित्यिक गर्भ ज्ञान बतला दीजिये 
कुछ दिव्य ज्ञान दे जिज्ञासा शांत कीजिये 

बच्चा ये क्या आज तुझे सूझी 
क्यों आज तुमने ये पहेली पूछी 
गुरु जी साहित्य में आना चाहता हूँ 
मैं भी नाम कमाना चाहता हूँ 

बच्चा ये डगर उनके लिए नहीं आसां बस इतना समझ लीजै 
जो उसूलों आदर्शों पर जीवित रहते हैं और उन्ही में जीते हैं 
यहाँ तो हर ऐरे गैरे को महान बनाया जाता है 
सिर्फ उसूलपसंद को  ही हाशिये पर लुढकाया जाता है 

गुरु जी आपका मार्गदर्शन चाहिए 
आपकी कृपा रुपी कर कमल सिर पर चाहिए 

बच्चा यहाँ गुट निरपेक्ष राज्य नहीं चलता है 
बस गुट बनाने वालों का ही धंधा फलता फूलता है 
तब अंधे के हाथो ही बटेर लगती है 
वर्ना तो अन्यों की न यहाँ दाल गलती है 

गुरु जी मेरे मन में उथल पुथल मची है 
कृपया पूर्ण ज्ञान दीजिये 
मुझे भी साहित्यिक बिरादरी में शामिल कीजिये 

शिष्य की अधीरता देख गुरु बोल उठे 
बच्चा फिर तो तुझे कमर कसनी होगी 
सबसे पहले एक किताब छपवानी होगी 
फिर सारे दांव पेंच खुद ही सीख जाएगा 

गुरूजी आपके बिना मेरा साहित्यिक कैरियर लडखडायेगा 
आपके बिना ये शिष्य कैसे साहित्यिक सागर पार कर पायेगा 

बच्चा मेरी ऊंगली पकड़ गर चलेगा 
तो जुगाड़ का दांव पेंच भी सीखना होगा 
क्योंकि किताब छपते ही स्वतः विरोधी खर पतवार से उग आयेंगे 
तेरे अपने बन तेरी जड़ में ही सेंध लगायेंगे 
उनसे पहले तुझे चाल चलनी होगी 
वो पटखनी दें उससे पहले ही जुगत करनी होगी 
दो चार पुरस्कार जेब में करने होंगे  
फिर खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करना होगा 
हर अपने दुश्मन को पहचान उस पर हमला करवाना होगा 

गुरूजी आप ये क्या बता रहे हो 
हमला करवा मुझे जेहादी बना रहे हो 

बच्चा कोई तुम्हें मारे उससे पहले वार करो 
यही युद्ध का नियम होता है 
गर नहीं मानेगा तो ओंधे मुंह गिरेगा 
मैं कौन सा सच की हिंसा करवा रहा हूँ 
बस शब्द बाण चलाने का हुनर बता रहा हूँ 

फिर ठीक है गुरु जी 
मैं तो डर गया था 

बच्चा जो डरा सो मरा जानो 
यहाँ तो चोरी और सीनाजोरी करने वाला ही मुकाम पाता है 
दूसरा प्रतिभावान तो अपने दडबे में छुपा रह जाता है 

अब सुन ध्यान लगाकर 
सबसे पहले एक गुट का सदस्य बनना होगा 
फिर कुछ साहित्यिक गोष्ठियां अपने गुट की करनी होंगी 
खुद चुप रह साहित्यिक मित्रों के माध्यम से 
प्रतिभावानों और समकालीनों की फजीहत करनी होगी 
अपने गुट के लोगों से जुबानी वार करवाने होंगे 
साथ ही खुद के स्तुतिगान भी उन्ही के माध्यम से करवाने होंगे 
बच्चा तुम न कभी मुख से गलत बोलना 
बस दूसरों के कंधे ही हमेशा प्रयोग करना 
यूँ तुम्हारा सिक्का जम जाएगा 
तब सच्चा ईमानदार भी तुमसे घबराएगा 
और वो भी हाशिये पर चला जाएगा 

बस जिस दिन ऐसी तिकड़में सीख जाओगे 
जाति बिरादरी को अपनी तरफ कर लोगे 
पुरस्कार तुम्हारी तरफ आकर्षित होंगे 
और तुम साहित्यिक जगत में घुसपैठ कर लोगे 

यहाँ पचास पुस्तक लिखने वाले हाशिये पर ही रह जाते हैं 
बस जुगाडू और दूसरे के कंधे इस्तेमाल करने वाले ही आगे बढ़ जाते हैं 
एक ही पुस्तक से खुद को चर्चित कर पुरस्कारों की लाइन लगा जाते हैं 

गुरूजी तो क्या सच्चाई ईमानदारी का यहाँ कोई मोल नहीं 

बच्चा मोल तो वास्तव में उसी का होता है 
मगर यहाँ का धंधा तो जुगाड़ से ही चलता है 
गर कोई नहीं जुगाड़ की राजनीति अपनाता है 
फिर चाहे लेखन कितना उन्नत हो पिछड़े दलितों में गिना जाता है 
या साहित्यिक बिरादरी से स्वमेव बाहर हो जाता है 
इतना उसे उपेक्षित कर कुंठित किया जाता है 
कोई इक्का दुक्का जीवट ही अंगद के समान पाँव जमा पता है 
तो उससे न इनपर ख़ास असर पड़ता है 
क्योंकि उनका धंधा तो भली भांति फूलता फलता है 
बस इसी तरह साहित्य का बाज़ार चलता है 

गुरूजी फिर कौन सा मार्ग अपनाऊँ सोच में पड़ गया हूँ 

बच्चा ये तो तुझे ही तय करना होगा 
साहित्यिक गर्भ ज्ञान जो तुझे मैंने दिया है 
किसी से न जिक्र करना वर्ना 
मेरा ही बहिष्कार हो जाएगा 
मेरा डिब्बा ही साहित्य जगत से गोल हो जायेगा 
सबके तीर तलवारों का मैं ही निशाना बन जाऊंगा 
और असमय मौत का भोजन बन जाऊँगा 

बस तू जो भी राह चुने मेरा न उपकृत होना 
मुझे तो परदे के पीछे ही रखना 
जब जब कोई समस्या आये इसी तरह उपाय पूछ लेना 

अथ श्री साहित्यिक गर्भ ज्ञान कथा नमो नमः 

निर्मल हास्य का आनंद लीजिये :)