अंतर्मन के सागर की
अथाह गहराइयों में
उपजी पीड़ा का दर्द
छटपटाहट, बेबसी की
जंजीरों में जकड़ी
रिश्ते की डोर
ना जाने कितनी
बार टूटी
और टूटकर
बार- बार
जोड़नी पड़ी
इस आस पर
शायद मोहब्बत को
मुकाम मिल जाये
और हर बार
रिश्ते में एक
नयी गाँठ
लगती रही
हर गाँठ के साथ
डोर छोटी होती गयी
प्रेम की , विश्वास की
चाहत की डोर
तो ना जाने कहाँ
लुप्त हो गयी
अब तो सिर्फ
गाँठे ही गाँठे
नज़र आती हैं
डोर के आखिरी
सिरे पर भी
आखिरी गाँठ
अब कैसे नेह
के बँधन को
निभाए कोई
कब तक
स्वयं की
आहुति दे कोई
शायद अब
नया सिरा
खोजना होगा
रिश्ते की डोर
को मोड़ना होगा
गाँठों के फंद में
दबे अस्तित्व
को खोजना होगा
रिश्ते को पड़ाव
समझ जीना होगा
रिश्तों के मकडजाल
से उबरना होगा
खुद को एक
नया मुकाम
देना होगा
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
बुधवार, 25 अगस्त 2010
"मैं" का व्यूहजाल
एक सिमटी
दुनिया में
जीने वाले हम
मैं, मेरा घर ,
मेरी बीवी,
मेरे बच्चे
मैं और मेरा
के खेल में
"मैं" की
कठपुतली
बन नाचते
रहते हैं
और तुझे
दुनिया का
हर उपदेश
समझा जाते हैं
देश के लिए
कुछ कर
गुजरने की
ताकीद कर
जाते हैं
मगर कभी
खुद ना उस
पर चल पाते हैं
क्योंकि "मैं" के
व्यूहजाल से
ना निकल
पाते हैं
समाज का सशक्त
अंग ना बन पाते हैं
दुनिया में
जीने वाले हम
मैं, मेरा घर ,
मेरी बीवी,
मेरे बच्चे
मैं और मेरा
के खेल में
"मैं" की
कठपुतली
बन नाचते
रहते हैं
और तुझे
दुनिया का
हर उपदेश
समझा जाते हैं
देश के लिए
कुछ कर
गुजरने की
ताकीद कर
जाते हैं
मगर कभी
खुद ना उस
पर चल पाते हैं
क्योंकि "मैं" के
व्यूहजाल से
ना निकल
पाते हैं
समाज का सशक्त
अंग ना बन पाते हैं
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
घायल यादें
बेल बूँटों सा
टाँका था कभी
यादों को
दिल की
उजली मखमली
चादर पर
बरसों बाद जो
तह खोली
तो वक्त की
गर्द में दबे
बेल बूँटे अपना
रंग खो चुके थे
सिर्फ बेरंग,
मुड़ी - तुड़ी
कटी- फटी सी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं
टाँका था कभी
यादों को
दिल की
उजली मखमली
चादर पर
बरसों बाद जो
तह खोली
तो वक्त की
गर्द में दबे
बेल बूँटे अपना
रंग खो चुके थे
सिर्फ बेरंग,
मुड़ी - तुड़ी
कटी- फटी सी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
सावन कितना बरस ले ............
बरसते मौसम में
भीगता तन
मन को ना
भिगो पाया
मन के आँगन
की धरती
तो कब की
सूखे की
भयावह मार से
फट चुकी है
अब अहसासों
की खेती ना
कर सकोगे
तमन्नाओं की
फसल ना
उगा सकोगे
भाव ना कोई
जगा सकोगे
सावन कितना
बरस ले
कुछ आँगन
कभी नहीं
भीगते
भीगता तन
मन को ना
भिगो पाया
मन के आँगन
की धरती
तो कब की
सूखे की
भयावह मार से
फट चुकी है
अब अहसासों
की खेती ना
कर सकोगे
तमन्नाओं की
फसल ना
उगा सकोगे
भाव ना कोई
जगा सकोगे
सावन कितना
बरस ले
कुछ आँगन
कभी नहीं
भीगते
शनिवार, 14 अगस्त 2010
वन्दे मातरम कहते जाओ
वन्दे मातरम कहते जाओ
आस्तीनों में साँप पाले जाओ
ए खुदा के नामुराद बन्दों
देश को लूट - खसोटे जाओ
कल की फिक्र तुम ना करना
बस आज जेबें भरते जाओ
जनता मरती है मरने दो
बस तुम अमरता को पा जाओ
शहीद की कुर्बानी को भी तुम
अपना मान बनाये जाओ
सत्ता के गलियारों में बस
अपनी रोटियां सेंके जाओ
भूखी बिलखती जनता से तुम
जीने का हक़ छीने जाओ
सपनों के भारत के नाम पर
जनता का शोषण किये जाओ
भ्रष्टाचार की जमीन पर तुम
अपनी गोटियाँ बिछाये जाओ
आज़ादी की वर्षगाँठ पर
आज़ादी को रुलाये जाओ
तिरंगे का अपमान करके
वन्दे मातरम कहते जाओ
आस्तीनों में साँप पाले जाओ
ए खुदा के नामुराद बन्दों
देश को लूट - खसोटे जाओ
कल की फिक्र तुम ना करना
बस आज जेबें भरते जाओ
जनता मरती है मरने दो
बस तुम अमरता को पा जाओ
शहीद की कुर्बानी को भी तुम
अपना मान बनाये जाओ
सत्ता के गलियारों में बस
अपनी रोटियां सेंके जाओ
भूखी बिलखती जनता से तुम
जीने का हक़ छीने जाओ
सपनों के भारत के नाम पर
जनता का शोषण किये जाओ
भ्रष्टाचार की जमीन पर तुम
अपनी गोटियाँ बिछाये जाओ
आज़ादी की वर्षगाँठ पर
आज़ादी को रुलाये जाओ
तिरंगे का अपमान करके
वन्दे मातरम कहते जाओ
शुक्रवार, 13 अगस्त 2010
यूँ तेरी मोहब्बत में.............
कुछ पल का मिलना
फिर बिछड़ जाना
क्या जरूरी है ?
कुछ देर रुके होते
दो बात की होती
कुछ अपनी कही होती
कुछ मेरी सुनी होती
कुछ दर्द लिया होता
कुछ दर्द दिया होता
कुछ अपनी बेचैनियों का
कोई राज़ दिया होता
कुछ वादे मोहब्बत के किये होते
कुछ शिकवे वफाओं के किये होते
कुछ अपने भरम तोड़े होते
कुछ नए भरम दिए होते
कुछ दिल के टुकड़े किये होते
कुछ चुन लिए होते
कुछ बिखर गए होते
कुछ पल यूँ ही तेरे आगोश में
हम जी लिए होते
कुछ पल तो मोहब्बत की
बरखा में भीग लिए होते
मिलने की हसरतों के
हर अरमान जी लिए होते
जुदाई के लम्हों को
फिर हम सह लिए होते
यूँ तेरी मोहब्बत में
कुछ जी लिए होते
कुछ मर लिए होते
फिर बिछड़ जाना
क्या जरूरी है ?
कुछ देर रुके होते
दो बात की होती
कुछ अपनी कही होती
कुछ मेरी सुनी होती
कुछ दर्द लिया होता
कुछ दर्द दिया होता
कुछ अपनी बेचैनियों का
कोई राज़ दिया होता
कुछ वादे मोहब्बत के किये होते
कुछ शिकवे वफाओं के किये होते
कुछ अपने भरम तोड़े होते
कुछ नए भरम दिए होते
कुछ दिल के टुकड़े किये होते
कुछ चुन लिए होते
कुछ बिखर गए होते
कुछ पल यूँ ही तेरे आगोश में
हम जी लिए होते
कुछ पल तो मोहब्बत की
बरखा में भीग लिए होते
मिलने की हसरतों के
हर अरमान जी लिए होते
जुदाई के लम्हों को
फिर हम सह लिए होते
यूँ तेरी मोहब्बत में
कुछ जी लिए होते
कुछ मर लिए होते
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
माँ हूँ ना मैं.......
कभी बेच दिया
कभी नीलाम किया
कभी अपनों के
हाथों ही अपनों ने
शर्मसार किया
कुछ ऐसे मेरे
बच्चों ने मुझे
दागदार किया
माँ हूँ ना मैं ........
इनकी धरती माँ
सिर्फ दो दिन ही
इन्हें याद आती हूँ
उसके बाद
स्वार्थपरता की
कोठरी में कैद
कर दी जाती हूँ
दिन रात सीने
पर पाँव रख
उसूलों, आदर्शों की
बलि चढ़ाकर
आगे बढ़ते जाते हैं
मेरे बच्चे ही मेरी
जिंदा ही चिता
जलाते हैं
और रोज ही मेरी
आहुति दिए जाते हैं
माँ हूँ ना मैं..........
माँ होती ही
जलने के लिए है
माँ होती ही
बलिदान के लिए है
माँ होने का
क़र्ज़ तो मुझे ही
चुकाना होगा
अपने ही बच्चों के
हाथों एक बार फिर
बिक जाना होगा
अपने आँसू पीकर
छलनी ह्रदय
को सींकर
बच्चों की ख़ुशी
की खातिर
अपनी आहुति
देनी होगी
चाहे बच्चे
भूल गए हों
मगर मुझे तो
माँ के फ़र्ज़ को
निभाना होगा
माँ हूँ ना मैं
आखिर
माँ हूँ ना मैं.......
कभी नीलाम किया
कभी अपनों के
हाथों ही अपनों ने
शर्मसार किया
कुछ ऐसे मेरे
बच्चों ने मुझे
दागदार किया
माँ हूँ ना मैं ........
इनकी धरती माँ
सिर्फ दो दिन ही
इन्हें याद आती हूँ
उसके बाद
स्वार्थपरता की
कोठरी में कैद
कर दी जाती हूँ
दिन रात सीने
पर पाँव रख
उसूलों, आदर्शों की
बलि चढ़ाकर
आगे बढ़ते जाते हैं
मेरे बच्चे ही मेरी
जिंदा ही चिता
जलाते हैं
और रोज ही मेरी
आहुति दिए जाते हैं
माँ हूँ ना मैं..........
माँ होती ही
जलने के लिए है
माँ होती ही
बलिदान के लिए है
माँ होने का
क़र्ज़ तो मुझे ही
चुकाना होगा
अपने ही बच्चों के
हाथों एक बार फिर
बिक जाना होगा
अपने आँसू पीकर
छलनी ह्रदय
को सींकर
बच्चों की ख़ुशी
की खातिर
अपनी आहुति
देनी होगी
चाहे बच्चे
भूल गए हों
मगर मुझे तो
माँ के फ़र्ज़ को
निभाना होगा
माँ हूँ ना मैं
आखिर
माँ हूँ ना मैं.......
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
विनाश के चिन्ह यादो की धरोहर बन जाते हैं
ये सीने में कैद
ज्वार- भाटे
उफन कर
बाहर आने
को आतुर
जब होते हैं
अपने साथ
विनाश को भी
दावत देते हैं
कहीं अरमानो के
मकानों को
धराशायी
कर जाते हैं
कहीं हसरतों
के वृक्ष
उखड जाते हैं
तमन्नाओं की
सुनामी में
सभी संचार
के माध्यमो को
नेस्तनाबूद कर
विनाश पर
अट्टहास करते हैं
और चहुँ ओर
फैली वीभत्स
नीरवता
एक शून्य
छोड़ जाती है
और विनाश
के चिन्ह
यादो की
धरोहर
बन जाते हैं
कभी ना
मिटने के लिए
ज्वार- भाटे
उफन कर
बाहर आने
को आतुर
जब होते हैं
अपने साथ
विनाश को भी
दावत देते हैं
कहीं अरमानो के
मकानों को
धराशायी
कर जाते हैं
कहीं हसरतों
के वृक्ष
उखड जाते हैं
तमन्नाओं की
सुनामी में
सभी संचार
के माध्यमो को
नेस्तनाबूद कर
विनाश पर
अट्टहास करते हैं
और चहुँ ओर
फैली वीभत्स
नीरवता
एक शून्य
छोड़ जाती है
और विनाश
के चिन्ह
यादो की
धरोहर
बन जाते हैं
कभी ना
मिटने के लिए
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