ख़ुद को मिटाया था जब सोचा था किसी को पा लेंगे
मगर ख़ुद को मिटाकर भी उसको ना पा सकें
वो मेरा कभी हुआ ही नही मुझको भी अपना बनाया नही
इस कांच से नाज़ुक रिश्ते को उसने कभी अपनाया ही नही
फिर क्या हो उस कोशिश का जो मैं हमेशा करती रही
तुझको पाने की कोशिश में ख़ुद को भी भुलाती रही
बुधवार, 24 दिसंबर 2008
यादें
आजकल यादों के पन्ने फिर उखड़ने लगे हैं
हर पन्ने पर एक गहरी याद कुच्छ याद दिलाती है
हम इन यादों को फिर से जीने लगे हैं
आइना बन कर हर याद सामने आ जाती है
और हम इन यादों के समुन्दर में गोते खाने लगे हैं
दिल में यादों के भंवर हैं बड़े गहरे
हम तो इनमें फिर से डूबने लगे हैं
यादों को फिर से जीना इतना आसां नही होता
न जाने कितनी मौत मरकर जिया जाता है
हर पन्ने पर एक गहरी याद कुच्छ याद दिलाती है
हम इन यादों को फिर से जीने लगे हैं
आइना बन कर हर याद सामने आ जाती है
और हम इन यादों के समुन्दर में गोते खाने लगे हैं
दिल में यादों के भंवर हैं बड़े गहरे
हम तो इनमें फिर से डूबने लगे हैं
यादों को फिर से जीना इतना आसां नही होता
न जाने कितनी मौत मरकर जिया जाता है
मंगलवार, 23 दिसंबर 2008
राहुल गाँधी के नाम
आज के अख़बार हिंदुस्तान में मैंने एक ख़बर पढ़ी की राहुल गाँधी एक दलित सुनीता के घर गए उसके बच्चों के पास पहनने को कपड़े भी नही थे और पिता कपड़े इसलिए पह्न्ताथा ताकि बच्चे भूख से न मरें और वो कुछ काम कर ला सके .........मगर मैं कहती हूँ कि वो बच्चे यदि भूख से न भी मरे तो सर्दी से मर जायेंगे ,मुसीबत तो तब भी कम नही हुयी उनके सिर से.............मेरा दिल सुबह से उसी बारे में सोचे जा रहा है ...................क्या हम उनके लिए कुछ नही कर सकते .............आज हमारा देश nuclear पॉवर बन गया है मगर हमारी जनता आज भी वहीँ उसी नरक में जी रही है ...................क्या राहुल गाँधी ने इस मुद्दे को उठाया....................क्या उनके लिए कुछ किया...........हो सकता है किया हो मगर और भी न जाने कितनी सुनितायें और उनके बच्चे इससे भी बुरी हालत में जी रहे हैं.....................उनके लिए उन्होंने क्या सोचा...............................हो सकता है कुछ सोचा हो और करना चाहते हों मगर क्या जो वो करना चाहते हैं वो उन तक पहुँच पायेगा .............इसका कोई इंतजाम किया उन्होंने.......................मेरी एक राय है ................क्यूँ नही राहुल देश की हर माता बहन से एक अपील करते कि उन गरीबों के लिए कुच्छ सोचें ......................वैसी ही अपील जैसी अभी देल्ही विधानसभा चुनावों में हुयी थी की वोट देना जरूरी है वरना पप्पू कहलाओगे ....................टीवी के मध्यम से बिल्कुल उसी प्रकार जैसे वोटिंग के लिए की उनके लिए भी करें ............क्या गरीबी की रेखा से ऊपर रहने वाले लोगों में इतनी भी दया या vivek नही होगा की वो इस अपील को समझ पाएं ...................उदाहरण के लिए ..........अगर आज इतनी बड़ी आबादी में से कम से कम २०-२५ करोड़ लोग तो ऐसे होंगे ही जो इस पर ध्यान दें .............अगर उनसे कहा जाए हर घर एक कपड़ा अपने घर से उनके लिए दो जिन्हें इतना भी नसीब नही की वो तन ढँक सकें तो क्या कोई इस पर ध्यान नही देगा.......................हर इन्सान उनके लिए कुछ न कुछ करना चाहेगा और इससे करीबन इतने ही दलितों को एक छोटी सी सहायता से तन ढंकने को कपड़ा नसीब हो जाएगा..............हर गृहिणी उनके लिए कुछ न कुछ देना चाहेगी क्यूंकि हम अपने न जाने कितने ही कपड़े मन से उतर जाते हैं तो छोड़ देते हैं तो क्या एक पहल उनके लिए नही कर पाएंगे ..................राहुल आज के युवा हैं उनसे ये उम्मीद है की वो इस दर्द को समझते हैं और इस सब के लिए कुछ ऐसा करेंगे जिससे वो सब उन्ही को मिले जिनके लिए किया गया है न की आज के भ्रष्ट नेता या अफसर उसे हड़प लें .............एक अपील ऐसी एक बार अगर वो कर दें तो सारी जनता उनका साथ देने को तैयार हो जाए ..........बस एक कोशिश , एक पहल की जरूरत है...................तभी देश की असली तरक्की है ।
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क्यूँ
क्यूँ हर बार नारी को ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ी
क्यूँ हर बार नारी के सर ही हर दोष मढा गया
क्यूँ हर बार उसके हर निर्णय का अपमान किया गया
क्यूँ हर बार पुरूष के दंभ का शिकार बनी
हर अच्छाई का श्रेय नर को ही क्यूँ
क्यूँ हर बुराई का ठीकरा हर बार
नारी के ही सर फोड़ा गया
क्या उसका कोई अस्तित्व नही
क्या वो कोई इन्सान नही
क्या फर्क है नारी और नर में
क्या नारी का यूँ तिरस्कार कर
पुरूष सफलता पायेगा
क्या इतने से ही उसका
पोरुष संबल पा जाएगा
जब शक्ति बिना शक्तिमान
कार्य नही कर पाता है
तो फिर बता ए नर
तू उससे तो बड़ा नही
क्यूँ समझ नही पता है
नारी बिना नर का भी अस्तित्व नही
क्यूँ हर बार नारी के सर ही हर दोष मढा गया
क्यूँ हर बार उसके हर निर्णय का अपमान किया गया
क्यूँ हर बार पुरूष के दंभ का शिकार बनी
हर अच्छाई का श्रेय नर को ही क्यूँ
क्यूँ हर बुराई का ठीकरा हर बार
नारी के ही सर फोड़ा गया
क्या उसका कोई अस्तित्व नही
क्या वो कोई इन्सान नही
क्या फर्क है नारी और नर में
क्या नारी का यूँ तिरस्कार कर
पुरूष सफलता पायेगा
क्या इतने से ही उसका
पोरुष संबल पा जाएगा
जब शक्ति बिना शक्तिमान
कार्य नही कर पाता है
तो फिर बता ए नर
तू उससे तो बड़ा नही
क्यूँ समझ नही पता है
नारी बिना नर का भी अस्तित्व नही
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
आओ एक बार फिर से एक कोशिश करके देखें
तुम क्यूँ नही पढ़ पाए मेरा मन आज तक
मैं तो हर मोड़ पर सिर्फ़ तुम्हें ही देखती रही
तुम्हारे लिए जीती रही तुम्हारे लिए मरती रही
मन का सफर तय करना इतना मुश्किल तो न था
इतना वक्त साथ गुजारने के बाद ,उम्र के इस मोड़ पर
अब भी मैं वो ही हूँ फिर तुम क्यूँ बदल गए
मेरे मन में आज भी वहीँ उमंगें हैं
वही अरमान हैं,वही चाहतें हैं
तुमने उन्हें कहाँ दफ़न कर दिया
आज फिर से वो ही पल
हम क्यूँ नही जी पाते
माना वक्त सब कुछ बदल देता है
मगर मन तो हमारा वो ही रहता है
क्यूँ हम एक ही बिस्तर पर पास होकर भी
मन से दूर हुए जाते हैं
क्या ज़िन्दगी ऐसे ही जी जाती है
कब तक हम अपने अपने
विचारों में गुम एक दूसरे से दूर
अपनी अपनी सोचों में जिए जायेंगे
क्यूँ नही तुम मुझे पढ़ पाते हो
क्या मेरी सदाएं तुम तक पहुंच नही पाती हैं
या फिर तुम सब जानते हो
और तुम भी अपनी ही दुनिया में
कहीं खोये जाते हो
क्यूँ हम अब एक दूसरे से
अपने जज़्बात बाँट नही पाते हैं
क्या उम्र इसी तरह दगा देती है
मुझे पता है कि दोनों तरफ़
प्यार की कोई कमी नही है
फिर भी मन क्यूँ बंटते जा रहे हैं
हम तो दोनों दो जिस्म एक जान हैं
फिर कहाँ से आया ये तूफ़ान है
आओ इस तूफ़ान को मिटा दें
अपने मन को एक बार फिर से मिला लें
अपने अपने मन को एक दूसरे में कुछ ऐसे
डुबो दें कि फिर कोई तूफ़ान
इन्हें जुदा कर न सके
आओ एक बार फिर से
एक कोशिश करके देखें
एक बार फिर से
एक कोशिश करके देखें
मैं तो हर मोड़ पर सिर्फ़ तुम्हें ही देखती रही
तुम्हारे लिए जीती रही तुम्हारे लिए मरती रही
मन का सफर तय करना इतना मुश्किल तो न था
इतना वक्त साथ गुजारने के बाद ,उम्र के इस मोड़ पर
अब भी मैं वो ही हूँ फिर तुम क्यूँ बदल गए
मेरे मन में आज भी वहीँ उमंगें हैं
वही अरमान हैं,वही चाहतें हैं
तुमने उन्हें कहाँ दफ़न कर दिया
आज फिर से वो ही पल
हम क्यूँ नही जी पाते
माना वक्त सब कुछ बदल देता है
मगर मन तो हमारा वो ही रहता है
क्यूँ हम एक ही बिस्तर पर पास होकर भी
मन से दूर हुए जाते हैं
क्या ज़िन्दगी ऐसे ही जी जाती है
कब तक हम अपने अपने
विचारों में गुम एक दूसरे से दूर
अपनी अपनी सोचों में जिए जायेंगे
क्यूँ नही तुम मुझे पढ़ पाते हो
क्या मेरी सदाएं तुम तक पहुंच नही पाती हैं
या फिर तुम सब जानते हो
और तुम भी अपनी ही दुनिया में
कहीं खोये जाते हो
क्यूँ हम अब एक दूसरे से
अपने जज़्बात बाँट नही पाते हैं
क्या उम्र इसी तरह दगा देती है
मुझे पता है कि दोनों तरफ़
प्यार की कोई कमी नही है
फिर भी मन क्यूँ बंटते जा रहे हैं
हम तो दोनों दो जिस्म एक जान हैं
फिर कहाँ से आया ये तूफ़ान है
आओ इस तूफ़ान को मिटा दें
अपने मन को एक बार फिर से मिला लें
अपने अपने मन को एक दूसरे में कुछ ऐसे
डुबो दें कि फिर कोई तूफ़ान
इन्हें जुदा कर न सके
आओ एक बार फिर से
एक कोशिश करके देखें
एक बार फिर से
एक कोशिश करके देखें
बुधवार, 17 दिसंबर 2008
पत्थर
ता-उम्र पत्थरों को पूजा
पत्थरों को चाहा
ये जानते हुए भी
पत्थरों में दिल नही होता
पत्थरों के ख्वाब नही होते
पत्थरों में प्यार नही होता
कोई अहसास नही होता
पत्थरों को दर्द नही होता
कोई जज़्बात नही होते
फिर भी पत्थरों को ही
अपना खुदा बनाया
पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया
हर अहसास से परे
पत्थर सिर्फ़ पत्थर होते हैं
जो चोट के सिवा
कुछ नही देते
पत्थरों को चाहा
ये जानते हुए भी
पत्थरों में दिल नही होता
पत्थरों के ख्वाब नही होते
पत्थरों में प्यार नही होता
कोई अहसास नही होता
पत्थरों को दर्द नही होता
कोई जज़्बात नही होते
फिर भी पत्थरों को ही
अपना खुदा बनाया
पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया
हर अहसास से परे
पत्थर सिर्फ़ पत्थर होते हैं
जो चोट के सिवा
कुछ नही देते
मंगलवार, 16 दिसंबर 2008
रविवार, 14 दिसंबर 2008
मुझे मुझसे मिला गया कोई
दिल के सोये तारों को जगा गया कोई
मुझे मुझसे फिर मिला गया कोई
फिर एक बार तमन्ना है जगी
फिर एक बार महफिल है सजी
यादों को गुलजार कर गया कोई
दिल की हर धड़कन को भिगो गया कोई
सोये अरमानों को आइना दिखा गया कोई
कुछ इस तरह एक बार फिर
मुझे मुझसे मिला गया कोई
मुझे मुझसे फिर मिला गया कोई
फिर एक बार तमन्ना है जगी
फिर एक बार महफिल है सजी
यादों को गुलजार कर गया कोई
दिल की हर धड़कन को भिगो गया कोई
सोये अरमानों को आइना दिखा गया कोई
कुछ इस तरह एक बार फिर
मुझे मुझसे मिला गया कोई
शून्य से शून्य की ओर
शून्य से शून्य की ओर जाता ये जीवन
कभी न भर पाता ये शुन्य
पैसा, प्यार, दौलत ,शोहरत
कितना भी पा लो फिर भी
शून्यता जीवन की
कभी न भर पाती
हर पल एक भटकाव
कुछ पाने की लालसा
क्या इसी का नाम जीवन है
हर कदम पर एक शून्य
राह ताकता हुआ
शून्य स शुरू हुआ ये सफर
शून्य में सिमट जाता है
जीवन की रिक्तता
जीवन भर नही भरती
और हम
शून्य से चलते हुए
शून्य में सिमट जाते हैं
कभी न भर पाता ये शुन्य
पैसा, प्यार, दौलत ,शोहरत
कितना भी पा लो फिर भी
शून्यता जीवन की
कभी न भर पाती
हर पल एक भटकाव
कुछ पाने की लालसा
क्या इसी का नाम जीवन है
हर कदम पर एक शून्य
राह ताकता हुआ
शून्य स शुरू हुआ ये सफर
शून्य में सिमट जाता है
जीवन की रिक्तता
जीवन भर नही भरती
और हम
शून्य से चलते हुए
शून्य में सिमट जाते हैं
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
फूल का दर्द
क्यूँ उदास है वो फूल बाग़ का,शायद किसी का इंतज़ार है उसे
क्यूँ खिलते हैं ये फूल बाग़ में,शायद किसी पथिक की थकन उतरने के लिए
ये देते हैं शांती आंखों को,दिए जाते हैं उपहार में
मगर किसी ने पूछा फूल से उसके उत्पन्न होने का सबब
यूँ तो लगते हैं सेहरे में भी फूल और चढाये जाते हैं अर्थी पर भी
पर क्या बीतती है उस लम्हा दिल पर फूल के
न जानना चाहा इसका सबब किसी ने
यूँ तो डाली से तोडा जाता है और फेंकने के बाद कुचला भी जाता है
क्या गुजरी,कितने ज़ख्म बने दिल पर फूल के,न समझ सका कोई
हर किसी ने निकला मतलब अपना अपना इससे
मगर न पूछा किसी ने की तुझे दर्द कहाँ है
रोते हैं ये फूल भी मगर न देखा रोना इनका किसी ने
अगर सुनना है फूलों का रुदन तो ख़ुद फूल बन जा
ये शायद खिलते और मुरझाते हैं दूसरों को सुकून देने के लिए
कर देते हैं अपनी ज़िन्दगी बलिदान खुशियों पे सभी की
अगर कुच्छ पाना या खोना है तो सिख फूलों से
जो लेते हैं गम और खोते हैं अपना रंग रूप
और फिर भी रहते हैं सदा मुस्कुराते
क्यूँ खिलते हैं ये फूल बाग़ में,शायद किसी पथिक की थकन उतरने के लिए
ये देते हैं शांती आंखों को,दिए जाते हैं उपहार में
मगर किसी ने पूछा फूल से उसके उत्पन्न होने का सबब
यूँ तो लगते हैं सेहरे में भी फूल और चढाये जाते हैं अर्थी पर भी
पर क्या बीतती है उस लम्हा दिल पर फूल के
न जानना चाहा इसका सबब किसी ने
यूँ तो डाली से तोडा जाता है और फेंकने के बाद कुचला भी जाता है
क्या गुजरी,कितने ज़ख्म बने दिल पर फूल के,न समझ सका कोई
हर किसी ने निकला मतलब अपना अपना इससे
मगर न पूछा किसी ने की तुझे दर्द कहाँ है
रोते हैं ये फूल भी मगर न देखा रोना इनका किसी ने
अगर सुनना है फूलों का रुदन तो ख़ुद फूल बन जा
ये शायद खिलते और मुरझाते हैं दूसरों को सुकून देने के लिए
कर देते हैं अपनी ज़िन्दगी बलिदान खुशियों पे सभी की
अगर कुच्छ पाना या खोना है तो सिख फूलों से
जो लेते हैं गम और खोते हैं अपना रंग रूप
और फिर भी रहते हैं सदा मुस्कुराते
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008
किसी ने कुच्छ कहा नही
फिर भी हमने सुन लिया
बिना कहे भी बात होती है
उसको कभी देखा नही
फिर भी हमने देख लिया
बिना देखे भी मुलाक़ात होती है
कभी कभी किसी को जाने बिना
हम जान लेते हैं ,पहचान लेते हैं
कुच्छ ऐसे नाते होते हैं
जो कभी अपने नही होते
फिर भी अपने से लगते हैं
कुच्छ रूहों को
न देखने की न जानने की
न पहचानने की
न अपनेपन की जरूरत होती है
यह तो जन्मों के नाते होते हैं
जो दिलों से बंधे होते हैं
फिर भी हमने सुन लिया
बिना कहे भी बात होती है
उसको कभी देखा नही
फिर भी हमने देख लिया
बिना देखे भी मुलाक़ात होती है
कभी कभी किसी को जाने बिना
हम जान लेते हैं ,पहचान लेते हैं
कुच्छ ऐसे नाते होते हैं
जो कभी अपने नही होते
फिर भी अपने से लगते हैं
कुच्छ रूहों को
न देखने की न जानने की
न पहचानने की
न अपनेपन की जरूरत होती है
यह तो जन्मों के नाते होते हैं
जो दिलों से बंधे होते हैं
मंगलवार, 2 दिसंबर 2008
तलाश जारी है
तलाश जारी है
हर किसी की
न जाने किसे
ढूंढ रहे हैं सब
हर कोई
जब मिल जाता है
तब फिर एक बार
कुछ नया पाने की
चाहत में
तलाश शुरू करता है
फिर एक बार
एक अंतहीन
दिशा की ओर
चलने लगता है
और उसकी
यह तलाश
ता-उम्र जारी रहती है
किसी को खोजने
की तलाश
कुछ पाने की
तलाश
मगर
तलाश है कि
कभी ख़त्म नही होती
मृत्यु के उस पार भी
उसकी यह
तलाश जारी रहती है
जब तक
ख़ुद को नही पाता
तब तक
तलाश जारी रहती है
ख़ुद को
पाये बिना
कोई तलाश
पूरी नही होती
और तब तक
तलाश जारी रहती है
हर किसी की
न जाने किसे
ढूंढ रहे हैं सब
हर कोई
कुछ न कुछ
पाना चाहता हैजब मिल जाता है
तब फिर एक बार
कुछ नया पाने की
चाहत में
तलाश शुरू करता है
फिर एक बार
एक अंतहीन
दिशा की ओर
चलने लगता है
और उसकी
यह तलाश
ता-उम्र जारी रहती है
किसी को खोजने
की तलाश
कुछ पाने की
तलाश
मगर
तलाश है कि
कभी ख़त्म नही होती
मृत्यु के उस पार भी
उसकी यह
तलाश जारी रहती है
जब तक
ख़ुद को नही पाता
तब तक
तलाश जारी रहती है
ख़ुद को
पाये बिना
कोई तलाश
पूरी नही होती
और तब तक
तलाश जारी रहती है
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
कुच्छ तो कहें
किसी से तो कहें
दिल की बातें
यूँ ही हर किसी से
तो नही कही जाती
कुच्छ बातें
सिर्फ़ दिल से ही
की जाती हैं
कहने को तो
बहुत कुच्छ
होता है
मगर..........
किस से कहें
इसका जवाब ही
नही मिल पाता है
कुच्छ कहना
चाहकर भी
दिल कुच्छ
नही कह पाता है
इस बेबसी को सिर्फ़
वो दिल ही जान पाता है
जो कुच्छ कहने
और न कहने की
उलझन में
उलझता जाता है
किसी से तो कहें
दिल की बातें
यूँ ही हर किसी से
तो नही कही जाती
कुच्छ बातें
सिर्फ़ दिल से ही
की जाती हैं
कहने को तो
बहुत कुच्छ
होता है
मगर..........
किस से कहें
इसका जवाब ही
नही मिल पाता है
कुच्छ कहना
चाहकर भी
दिल कुच्छ
नही कह पाता है
इस बेबसी को सिर्फ़
वो दिल ही जान पाता है
जो कुच्छ कहने
और न कहने की
उलझन में
उलझता जाता है
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008
खोज
मन की सुनसान राहों पर
कुछ खोजना चाहते हैं
किसी को पाना चाहते हैं
मगर
क्या यह डगर इतनी आसां हैं
क्या वो हमें मिलेगा
जिसे हम खोजने चले हैं
काश
इतना आसां होता ?
अपने अस्तित्व को मिटा कर
किसी को खोजा जाता हैं
ख़ुद को मिटा कर ही
ख़ुद को पाया जाता हैं
कुछ खोजना चाहते हैं
किसी को पाना चाहते हैं
मगर
क्या यह डगर इतनी आसां हैं
क्या वो हमें मिलेगा
जिसे हम खोजने चले हैं
काश
इतना आसां होता ?
अपने अस्तित्व को मिटा कर
किसी को खोजा जाता हैं
ख़ुद को मिटा कर ही
ख़ुद को पाया जाता हैं
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
सपनों को पूरे होते देखना और उनके साथ जीना ,यह अहसास सिर्फ़ वो ही महसूस कर सकता है जिसने उनके साथ वो लम्हे बिताये हों। सच ज़िन्दगी में हर सपना पूरा होता है मगर अपने वक्त पर,वक्त से पहले नही । हम कभी कभी वक्त से पहले कुच्छ सपनों को पूरा करना चाहते हैं मगर ऐसा नही हो सकता क्यूंकि हर काम का इक वक्त होता है। ज़िन्दगी हर सपना पूरा करती है बस हमें ही सब्र नही होता। अगर हम में कुच्छ धैर्य हो तो क्या है वो चीज़ जिसे हम पा न सकें। अपने सपनो में तो हम ता-उम्र डूबते उतरते रहते हैं मगर जब वो पूरे होते हैं तो उस अहसास को हम चाहकर भी नही बाँट पाते क्यूंकि जिसकी चाहत होती है वो ही उसे समझ सकता है दूसरा कोई नही इसलिए सपने बाँट नही सकते और न ही उन्हें पाने की खुशी ।
इक सपना देखा था मैंने
हर पल आंखों में पलते
उस सपने को पंख भी दिए
परवाज़ भी दी उसे
अब सिर्फ़ एक हवा के झोंके की जरूरत थी
वो भी आया न मालूम कहाँ से
और वो सपना जो सपना था
वो हकीकत बन गया
इक सपना देखा था मैंने
हर पल आंखों में पलते
उस सपने को पंख भी दिए
परवाज़ भी दी उसे
अब सिर्फ़ एक हवा के झोंके की जरूरत थी
वो भी आया न मालूम कहाँ से
और वो सपना जो सपना था
वो हकीकत बन गया
शनिवार, 1 नवंबर 2008
जिसे खोजती हूँ गली गली
मुझी में छुपा है वो कहीं
यह जानती हूँ मगर
फिर भी उसे सामने
ला नही पाती
कैसे ढूँढूं ,किस्से पता मीले
कोई तो मिला दे मुझे
मेरे श्याम से
एक दर्श दिखा दे
नैना तरस रहे हैं
एक झलक को
कैसे मिलोगे
कुच्छ तो बताओ
कभी सपने में ही आ जाओ
कहाँ तुम्हें पाऊँ में
अब तो बता जाओ
जान पर बन रही है
मिलने की तड़प भारी है
कोई तो बताये कहाँ खोजूं
कैसे तुम्हें खोजूं
कहाँ मिलोगे
कब मिलोगे
कैसे मिलोगे
अब तो हार गई हूँ
अब आ के संभल लो
मुझी में छुपा है वो कहीं
यह जानती हूँ मगर
फिर भी उसे सामने
ला नही पाती
कैसे ढूँढूं ,किस्से पता मीले
कोई तो मिला दे मुझे
मेरे श्याम से
एक दर्श दिखा दे
नैना तरस रहे हैं
एक झलक को
कैसे मिलोगे
कुच्छ तो बताओ
कभी सपने में ही आ जाओ
कहाँ तुम्हें पाऊँ में
अब तो बता जाओ
जान पर बन रही है
मिलने की तड़प भारी है
कोई तो बताये कहाँ खोजूं
कैसे तुम्हें खोजूं
कहाँ मिलोगे
कब मिलोगे
कैसे मिलोगे
अब तो हार गई हूँ
अब आ के संभल लो
रविवार, 19 अक्टूबर 2008
सोमवार, 22 सितंबर 2008
कोई हो ऐसा
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
हमारे रूह कि
अंतरतम गहराइयों में छिपी
हमारे मन कि हर
गहराई को जाने
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
सिर्फ़ हमें चाहे
हमारे अन्दर छीपे
उस अंतर्मन को चाहे
जहाँ किसी कि पैठ न हो
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
हमें जाने हमें पहचाने
हमारे हर दर्द को
हम तक पहुँचने से पहले
उसके हर अहसास से
गुजर जाए
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
बिना कहे हमारी हर बात जाने
हर बात समझे
जहाँ शब्द भी खामोश हो जायें
सिर्फ़ वो सुने और समझे
इस मन के गहरे सागर में
उठती हर हिलोर को
हर तूफ़ान को
और बिना बोले
बिना कुच्छ कहे
वो हमें हम से चुरा ले
हमें हम से ज्यादा जान ले
हमें हम से ज्यादा चाहे
कभी कभी हम चाहते हैं
कोई हो ऐसा.......कोई हो ऐसा
कोई हो ऐसा जो
हमारे रूह कि
अंतरतम गहराइयों में छिपी
हमारे मन कि हर
गहराई को जाने
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
सिर्फ़ हमें चाहे
हमारे अन्दर छीपे
उस अंतर्मन को चाहे
जहाँ किसी कि पैठ न हो
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
हमें जाने हमें पहचाने
हमारे हर दर्द को
हम तक पहुँचने से पहले
उसके हर अहसास से
गुजर जाए
कभी कभी हम चाहते हैं कि
कोई हो ऐसा जो
बिना कहे हमारी हर बात जाने
हर बात समझे
जहाँ शब्द भी खामोश हो जायें
सिर्फ़ वो सुने और समझे
इस मन के गहरे सागर में
उठती हर हिलोर को
हर तूफ़ान को
और बिना बोले
बिना कुच्छ कहे
वो हमें हम से चुरा ले
हमें हम से ज्यादा जान ले
हमें हम से ज्यादा चाहे
कभी कभी हम चाहते हैं
कोई हो ऐसा.......कोई हो ऐसा
बुधवार, 17 सितंबर 2008
लाश का कोई अरमान नही होता
वो तो सिर्फ़ लाश है
उसे किसी का इंतज़ार नही होता
लाश में प्यार की प्यास नही होती
दर्द का अहसास नही होता
चेतना अवचेतना का ग्यान नही होता
जो अपने हैं उनका भान नही होता
कुच्छ बन गए हैं कुच्छ बन जायेंगे
हम लाश समान
एक सड़ती हुयी लाश को
कोई क्यूँ अपनाएगा
उससे हमदर्दी तो दूर
कोई पास भी न आएगा
इसी तरह इस लाश को ढोते ढोते
अपनों के अहसास से बहुत दूर
चले जायेंगे हम
वो तो सिर्फ़ लाश है
उसे किसी का इंतज़ार नही होता
लाश में प्यार की प्यास नही होती
दर्द का अहसास नही होता
चेतना अवचेतना का ग्यान नही होता
जो अपने हैं उनका भान नही होता
कुच्छ बन गए हैं कुच्छ बन जायेंगे
हम लाश समान
एक सड़ती हुयी लाश को
कोई क्यूँ अपनाएगा
उससे हमदर्दी तो दूर
कोई पास भी न आएगा
इसी तरह इस लाश को ढोते ढोते
अपनों के अहसास से बहुत दूर
चले जायेंगे हम
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
मेरे आँगन में न उतरी धूप कभी
तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या
न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे
न जोड़ सकी यादों के तार कभी
न जला सकी प्यार के दिए कभी
इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें
माना नही ठहरती धूप किसी भी आँगन में
मगर मेरे आँगन में तो धूप की एक
छोटी सी किरण भी न उतर सकी
भला कैसे जानूं मैं किस तरह
खिला करती है धूप आँगन में
तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या
न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे
न जोड़ सकी यादों के तार कभी
न जला सकी प्यार के दिए कभी
इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें
माना नही ठहरती धूप किसी भी आँगन में
मगर मेरे आँगन में तो धूप की एक
छोटी सी किरण भी न उतर सकी
भला कैसे जानूं मैं किस तरह
खिला करती है धूप आँगन में
मंगलवार, 9 सितंबर 2008
मेरी मुस्कराहट तो एक ऐसा दर्द है
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता
हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता
हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
हर सितम सहूंगी उसके ये इकरार करती हूँ
इसे बेबसी कहूं या क्या कहूं,क्यूंकि
मैं उससे प्यार करती हूँ
जो गम दिए हैं मेरे देवता ने
मैं उनका आदर करती हूँ
उस सौगात का अनादर नही कर सकती,क्यूंकि
मैं उनकी पूजा करती हूँ
पुजारिन हूँ तुम्हारी में
बस इतना चाहती हूँ
मेरे मन मन्दिर में मेरे देवता
हर पल हर दिन बसे रहना
नही मांगती तुमसे कुछ मैं
मुझसे पूजा का अधिकार न लेना
इसे बेबसी कहूं या क्या कहूं,क्यूंकि
मैं उससे प्यार करती हूँ
जो गम दिए हैं मेरे देवता ने
मैं उनका आदर करती हूँ
उस सौगात का अनादर नही कर सकती,क्यूंकि
मैं उनकी पूजा करती हूँ
पुजारिन हूँ तुम्हारी में
बस इतना चाहती हूँ
मेरे मन मन्दिर में मेरे देवता
हर पल हर दिन बसे रहना
नही मांगती तुमसे कुछ मैं
मुझसे पूजा का अधिकार न लेना
सोमवार, 8 सितंबर 2008
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
लोग न जाने कैसे किसी के दिल में घर बना लेते हैं
हमें तो आज तलक वो दर -ओ-दीवार न मिली
लोग न जाने कैसे किसी के प्यार में जान गँवा देते हैं
हमें तो आज तलक उस प्यार का दीदार न मिला
लोग न जाने कैसे काँटों से दोस्ती कर लेते हैं
हमें तो आज तलक दर्द के सिवा कुच्छ भी न मिला
लोग न जाने कैसे जानकर भी अनजान बन जाते हैं
हमें तो आज तलक कोई अनजान भी न मिला
हमें तो आज तलक वो दर -ओ-दीवार न मिली
लोग न जाने कैसे किसी के प्यार में जान गँवा देते हैं
हमें तो आज तलक उस प्यार का दीदार न मिला
लोग न जाने कैसे काँटों से दोस्ती कर लेते हैं
हमें तो आज तलक दर्द के सिवा कुच्छ भी न मिला
लोग न जाने कैसे जानकर भी अनजान बन जाते हैं
हमें तो आज तलक कोई अनजान भी न मिला
बुधवार, 3 सितंबर 2008
सोमवार, 1 सितंबर 2008
शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
बुधवार, 6 अगस्त 2008
virhan का दर्द
virhan का दर्द sawan क्या जाने
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
मंगलवार, 5 अगस्त 2008
भीगा सावन
बरखा की फुहारों ने तन मन भीगो दीया
सावन की बहारों ने मौसम बदल दीया
ऐसे भीगे मौसम ने कुछ याद दीला दीया
वो बचपन में बारीश में भीगना
वो सखियों के संग बारीश में नाचना
फिर हर पल मस्ती में झूमना
आज भी उन्ही पलों के लिए तरसना
हर लम्हा यादों में फिर जींदा कर दिया
हर सावन में बारीश की फुहारों में
उन्ही पलों को यादों में फिर से जीना
बचपन की याद दीला गया
हमको हमारे बचपन से मीला गया
सावन की बहारों ने मौसम बदल दीया
ऐसे भीगे मौसम ने कुछ याद दीला दीया
वो बचपन में बारीश में भीगना
वो सखियों के संग बारीश में नाचना
फिर हर पल मस्ती में झूमना
आज भी उन्ही पलों के लिए तरसना
हर लम्हा यादों में फिर जींदा कर दिया
हर सावन में बारीश की फुहारों में
उन्ही पलों को यादों में फिर से जीना
बचपन की याद दीला गया
हमको हमारे बचपन से मीला गया
शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
गर किसी को मीले मेरा पता
मन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती हैमन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती है
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती हैमन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो न रुक् पाती है
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
और
न आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी न चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
बुधवार, 30 जुलाई 2008
कश्ती
तूफानों को सीने में दबाये रहते हैं
हर पल भंवर में फंसे रहते हैं
आदत सी हो गई है अब तो
डूब डूब कर पार उतरने की
यह कश्ती है जज्बातों की
आंसुओं का अथाह सागर है
भावनाओं के तूफानों में
कश्ती जिंदगी की बार बार
तूफानों से लड़ते हुए
कभी भंवर में फंसते हुए
तो कभी बाहर नीकलते हुए
साहील तक पहुँचती है
हर पल भंवर में फंसे रहते हैं
आदत सी हो गई है अब तो
डूब डूब कर पार उतरने की
यह कश्ती है जज्बातों की
आंसुओं का अथाह सागर है
भावनाओं के तूफानों में
कश्ती जिंदगी की बार बार
तूफानों से लड़ते हुए
कभी भंवर में फंसते हुए
तो कभी बाहर नीकलते हुए
साहील तक पहुँचती है
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
तड़प
जिंदगी कहाँ तडपाती है यह तो ख़ुद तड़पती है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है
जिंदगी हमें रुलाती नही यह तो ख़ुद रोती है
इसे कोई क्या जलाएगा यह तो ख़ुद को जलाती है
इसे कोई दर्द देगा क्या यह तो ख़ुद दर्द में जीती है
जिंदगी खामोश करती नही यह तो ख़ुद खामोश होती है
यह इम्तिहान लेगी क्या यह तो ख़ुद इम्तिहान देती है
इससे मोहब्बत कोई क्या करेगा यह तो ख़ुद मोहब्बत की मारी है
जिंदगी किसी को क्या कहेगी यह तो ख़ुद बेजुबान होती है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है
जिंदगी हमें रुलाती नही यह तो ख़ुद रोती है
इसे कोई क्या जलाएगा यह तो ख़ुद को जलाती है
इसे कोई दर्द देगा क्या यह तो ख़ुद दर्द में जीती है
जिंदगी खामोश करती नही यह तो ख़ुद खामोश होती है
यह इम्तिहान लेगी क्या यह तो ख़ुद इम्तिहान देती है
इससे मोहब्बत कोई क्या करेगा यह तो ख़ुद मोहब्बत की मारी है
जिंदगी किसी को क्या कहेगी यह तो ख़ुद बेजुबान होती है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है
एक कतरा खुशी
खुशी मिलती है कभी कभी
समेट लो दामन में हर पल
कल न जाने क्या हो
यहाँ पल की ख़बर नही
एक छोटा सा कतरा खुशी का
जीने का सबब बन जाता है
ज्यादा की तमन्ना में
न मायूस करो इनको
यह हाथ में आती हैं कभी कभी
इसे यादों में जज्ब कर लो
समेट लो दामन में हर पल
कल न जाने क्या हो
यहाँ पल की ख़बर नही
एक छोटा सा कतरा खुशी का
जीने का सबब बन जाता है
ज्यादा की तमन्ना में
न मायूस करो इनको
यह हाथ में आती हैं कभी कभी
इसे यादों में जज्ब कर लो
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
सिसकते ज़ख्म
कभी कभी ऐसा भी होता है
हर ज़ख्म सि्सक रहा होता है
दवा भी मालूम होती है
मगर इलाज ही नही होता है
हर जख्म के साथ कोई याद होती है
एक दर्द होता है ,एक अहसास होता है
मगर फिर भी वो लाइलाज होता है
तन्हाइयाँ कहाँ तक ज़ख्मों का इलाज करें
इन्हें तो आदत पड़ गई है दर्द में जीने की
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता
हर ज़ख्म सि्सक रहा होता है
दवा भी मालूम होती है
मगर इलाज ही नही होता है
हर जख्म के साथ कोई याद होती है
एक दर्द होता है ,एक अहसास होता है
मगर फिर भी वो लाइलाज होता है
तन्हाइयाँ कहाँ तक ज़ख्मों का इलाज करें
इन्हें तो आदत पड़ गई है दर्द में जीने की
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता
ख्याल
आज ख्यालों से नीकलकर ख्यालों ने मुझसे बात की
हर जज्बे को बयां किया हर हाल की बात की
कुच्छ अपनी सुनाई कुछ हमारी सुनी
अपनी खामोशियों को दिखाया अपने दर्द को दिखाया
जो जो न हम जानते थे वो भी बताया
अजब वो समां था जहाँ सिर्फ़
हम थे और हमारे ख्याल थे
ख्यालों ने हमें ख्यालों में रहने को कहा
गर कर दिया बयां तो फिर जीने को क्या रहा
इस तरह कुच्छ हमने अपने ही ख्यालों से
उनके जज्बातों को जाना
ख्यालों से ख्यालों की मुलाक़ात भी अजब थी
हर जज्बे को बयां किया हर हाल की बात की
कुच्छ अपनी सुनाई कुछ हमारी सुनी
अपनी खामोशियों को दिखाया अपने दर्द को दिखाया
जो जो न हम जानते थे वो भी बताया
अजब वो समां था जहाँ सिर्फ़
हम थे और हमारे ख्याल थे
ख्यालों ने हमें ख्यालों में रहने को कहा
गर कर दिया बयां तो फिर जीने को क्या रहा
इस तरह कुच्छ हमने अपने ही ख्यालों से
उनके जज्बातों को जाना
ख्यालों से ख्यालों की मुलाक़ात भी अजब थी
सोमवार, 14 जुलाई 2008
टूटा दिल
जब ख्वाब टूटता है तब नया ख्वाब बुनते हैं हम
जब अरमान टूटते हैं तब नए अरमान जागने लगते हैं
जब उम्मीद टूटती है तब नई उम्मीद फिर जगती है
हर बार कुच्छ न कुच्छ खोकर भी
कुच्छ न कुच्छ पाने की आशा जनमती है
मगर
जब दिल टूटता है तब ..................
न उम्मीद बचती है
न ख्वाब सजते हैं
न उम्मीद बंधती है
क्यूँकी
दिल के टूटने पर
नया दिल कहाँ से लायें ?
एक दिल लिए फिरते हैं हम
वो भी कब टूट जाता है
पता ही नही चलता
जब अरमान टूटते हैं तब नए अरमान जागने लगते हैं
जब उम्मीद टूटती है तब नई उम्मीद फिर जगती है
हर बार कुच्छ न कुच्छ खोकर भी
कुच्छ न कुच्छ पाने की आशा जनमती है
मगर
जब दिल टूटता है तब ..................
न उम्मीद बचती है
न ख्वाब सजते हैं
न उम्मीद बंधती है
क्यूँकी
दिल के टूटने पर
नया दिल कहाँ से लायें ?
एक दिल लिए फिरते हैं हम
वो भी कब टूट जाता है
पता ही नही चलता
गुरुवार, 3 जुलाई 2008
इंतज़ार खुशियों का
हर सुबह इंतज़ार रहता है एक खुशी का
जब भी उठते हैं एक अनदेखी खुशी को
पाने की चाहत में इंतज़ार करते हैं
सपनो का बुनना शुरू करते हैं
ख्वाबों में जीना शुरू करते हैं
ख्यालों में पाने की तमन्ना होती है
दिल इसी अहसास में खुश रहता है
मगर,
जब शाम आती है ,
हर उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील होने लगती है
ख्वाब टूटना शुरू हो जाते हैं
सपने बिखरने लगते हैं
और दिल को यह समझाने लगते हैं
ऐसा भी होता है ------ऐसा भी होता है
रात होते होते एक बार फिर
एक नई सुबह का फिर से इंतज़ार करते हैं
फिर से नए ख्वाब बुनने के लिए
सपनो को पूरा करने के लिए
कुच्छ इस तरह
एक नई सुबह के इंतज़ार में
एक अनदेखी खुशी के इंतज़ार में
हम जिंदगी गुजार देते हैं
जब भी उठते हैं एक अनदेखी खुशी को
पाने की चाहत में इंतज़ार करते हैं
सपनो का बुनना शुरू करते हैं
ख्वाबों में जीना शुरू करते हैं
ख्यालों में पाने की तमन्ना होती है
दिल इसी अहसास में खुश रहता है
मगर,
जब शाम आती है ,
हर उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील होने लगती है
ख्वाब टूटना शुरू हो जाते हैं
सपने बिखरने लगते हैं
और दिल को यह समझाने लगते हैं
ऐसा भी होता है ------ऐसा भी होता है
रात होते होते एक बार फिर
एक नई सुबह का फिर से इंतज़ार करते हैं
फिर से नए ख्वाब बुनने के लिए
सपनो को पूरा करने के लिए
कुच्छ इस तरह
एक नई सुबह के इंतज़ार में
एक अनदेखी खुशी के इंतज़ार में
हम जिंदगी गुजार देते हैं
शुक्रवार, 20 जून 2008
इसलिए बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है
कहीं बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है
हमने भी चाहा कोई सिर्फ़ हमें प्यार की हद तक चाहे
मगर प्यार सब का नसीब नही होता
चाहत पैदा तो नही की जा सकती
शायद हम ही न थे इस काबिल किसी की चाहत बन सकते
प्यार की किस्मत में सिर्फ़ रुसवाई ही होती है
कोई होता जो सिर्फ़ हमें चाहता
सिर्फ़ हमें................
उसके आगे रिश्ता न चाहता
मगर किसी की चाहत के काबिल बनना आसान नही होता
इसलिए बहुत गहरे कुछ दरक गया है
कांच से भी नाजुक है जो
ऐसे दिल को कैसे कोई समझाए
सब कुछ मिला इसे मगर
सिर्फ़ दिल को चाहने वाला न मिला
कुछ अपनी कहने वाला
कुछ इसकी सुनने वाला न मिला
इसलिए बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है
हमने भी चाहा कोई सिर्फ़ हमें प्यार की हद तक चाहे
मगर प्यार सब का नसीब नही होता
चाहत पैदा तो नही की जा सकती
शायद हम ही न थे इस काबिल किसी की चाहत बन सकते
प्यार की किस्मत में सिर्फ़ रुसवाई ही होती है
कोई होता जो सिर्फ़ हमें चाहता
सिर्फ़ हमें................
उसके आगे रिश्ता न चाहता
मगर किसी की चाहत के काबिल बनना आसान नही होता
इसलिए बहुत गहरे कुछ दरक गया है
कांच से भी नाजुक है जो
ऐसे दिल को कैसे कोई समझाए
सब कुछ मिला इसे मगर
सिर्फ़ दिल को चाहने वाला न मिला
कुछ अपनी कहने वाला
कुछ इसकी सुनने वाला न मिला
इसलिए बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है
गुरुवार, 19 जून 2008
आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है
आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है
हर किसी के लिए जीती है और मरती है
कभी उफ़ नही करती फिर भी न जाने क्यूँ
हर किसी की निगाह में कसूरवार होती है
कोई जुर्म न करके भी हर सज़ा भोगती है वो
ख़ुद को तबाह करके भी कुछ नही पाती है वो
प्यार के दो लफ्जों को तरसती है वो
कभी बहन बनकर तो कभी पत्नी बनकर
कभी बेटी बनकर तो कभी माँ बनकर
पल पल मरती है वो
हर लम्हा सिसकती है वो
क्या कभी मिल पायेगी उसे अपनी हस्ती
क्या कभी ख़ुद को दिला पायेगी सम्मान वो
एक ऐसे समाज में जो हर पल बदलता है?
नारी आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
उसकी जगह आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
हर किसी की नज़र आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी
कहीं कुछ नही बदला और न ही कभी बदलेगा
यह समाज जैसा है वैसा ही रहेगा
नारी का जीवन भी जैसा था वैसा ही रहेगा
हर किसी के लिए जीती है और मरती है
कभी उफ़ नही करती फिर भी न जाने क्यूँ
हर किसी की निगाह में कसूरवार होती है
कोई जुर्म न करके भी हर सज़ा भोगती है वो
ख़ुद को तबाह करके भी कुछ नही पाती है वो
प्यार के दो लफ्जों को तरसती है वो
कभी बहन बनकर तो कभी पत्नी बनकर
कभी बेटी बनकर तो कभी माँ बनकर
पल पल मरती है वो
हर लम्हा सिसकती है वो
क्या कभी मिल पायेगी उसे अपनी हस्ती
क्या कभी ख़ुद को दिला पायेगी सम्मान वो
एक ऐसे समाज में जो हर पल बदलता है?
नारी आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
उसकी जगह आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
हर किसी की नज़र आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी
कहीं कुछ नही बदला और न ही कभी बदलेगा
यह समाज जैसा है वैसा ही रहेगा
नारी का जीवन भी जैसा था वैसा ही रहेगा
शनिवार, 14 जून 2008
अहसास
हर गम दुनिया में सभी को नसीब नही होता
कोई चाहने वाला दिल के करीब नही होता
मुस्कुराते हम भी हर महफ़िल में ज़माने की
गर किसी का दिया दर्द दिल के करीब नही होता
यह कहाँ ले आई तकदीर आज मुझे
की अपना साया भी आज नज़र आता नही
किसी और को अब क्या चाहेंगे
जबकि अपने आप को भी चाह जाता नही
हर सुबह मेरी अँधेरी हो गई
हर शाम मेरी कहीं खो गई
कहाँ गए वो मदमस्त दिन
खो गया कहीं अल्हड़पन
ज़िंदगी मेरी गम की शाम हो गई
हर रात मेरी परेशां हो गई
यूं तो होती हूँ हर वक्त ही तनहा
फिर भी तन्हाई मेरी तनहा हो गई
दिल जो एक बार टूटा टूटता ही चला गया
तेरा प्यार जो मुझसे rootha तो toothta ही चला गया
ऐ खुदा मेरे हिस्से की सब खुशी उन्हें दे दे
उनके हिस्से के सभी गम मुझे दे दे
मेरे नसीब की महफिलें हों उन्हें नसीब
उनके नसीब की तन्हैयाँ भी मुझे दे दे
तनहाइयों की महफिलें सज़ा लेंगे हम
वीरानियों में दिल बहला लेंगे हम
मगर तुझसे खुशी न मांगेंगे कभी
अपनी हर खुशी भी तुझपे लुटा देंगे हम
तेरे नाम पे यह ज़िंदगी लुटा देंगे हम
ऐसी मौत को हंसकर गले लगा लेंगे हम
ग़मों का काफिला है पीछे मेर यह पता है उसे
फिर भी जहाँ का हर गम दे गया है मुझे
मुझे ज़िंदगी मिली आंसू बनकर
हर गम मिला ज़ख्म बनकर
बेरुखी मिली दर्द में ढलकर
प्यार भी मिला तो नफरत बनकर
दूरियां इतनी न बढाओ की फिर पास न आ सकें
गर पास आयें तो नज़रें मिला न सकें
नज़रें मिला भी लें तो एक दूसरे को अपना भी न सकें
इसलिए तोड़ दो यह बंधनों की दीवार,जिसके पार हम जा सकें
ज़िंदगी तड़प रही थी किसी की
मौत हंस रही थी उसकी
ज़िंदगी ने चाह मिल जाए मौत ही
मगर उसने भी साथ न दिया ज़िंदगी का
कितनी मजबूर थी ज़िंदगी जीने के लिए
तड़प के आगोश में जलने के लिए
बहुत तरसा था यह दिल तनहाइयों के लिए कभी
अब घेरा है तन्हैयेओं ने इस कदर की फुरसत नही महफिलें सजाने की
कोई चाहने वाला दिल के करीब नही होता
मुस्कुराते हम भी हर महफ़िल में ज़माने की
गर किसी का दिया दर्द दिल के करीब नही होता
यह कहाँ ले आई तकदीर आज मुझे
की अपना साया भी आज नज़र आता नही
किसी और को अब क्या चाहेंगे
जबकि अपने आप को भी चाह जाता नही
हर सुबह मेरी अँधेरी हो गई
हर शाम मेरी कहीं खो गई
कहाँ गए वो मदमस्त दिन
खो गया कहीं अल्हड़पन
ज़िंदगी मेरी गम की शाम हो गई
हर रात मेरी परेशां हो गई
यूं तो होती हूँ हर वक्त ही तनहा
फिर भी तन्हाई मेरी तनहा हो गई
दिल जो एक बार टूटा टूटता ही चला गया
तेरा प्यार जो मुझसे rootha तो toothta ही चला गया
ऐ खुदा मेरे हिस्से की सब खुशी उन्हें दे दे
उनके हिस्से के सभी गम मुझे दे दे
मेरे नसीब की महफिलें हों उन्हें नसीब
उनके नसीब की तन्हैयाँ भी मुझे दे दे
तनहाइयों की महफिलें सज़ा लेंगे हम
वीरानियों में दिल बहला लेंगे हम
मगर तुझसे खुशी न मांगेंगे कभी
अपनी हर खुशी भी तुझपे लुटा देंगे हम
तेरे नाम पे यह ज़िंदगी लुटा देंगे हम
ऐसी मौत को हंसकर गले लगा लेंगे हम
ग़मों का काफिला है पीछे मेर यह पता है उसे
फिर भी जहाँ का हर गम दे गया है मुझे
मुझे ज़िंदगी मिली आंसू बनकर
हर गम मिला ज़ख्म बनकर
बेरुखी मिली दर्द में ढलकर
प्यार भी मिला तो नफरत बनकर
दूरियां इतनी न बढाओ की फिर पास न आ सकें
गर पास आयें तो नज़रें मिला न सकें
नज़रें मिला भी लें तो एक दूसरे को अपना भी न सकें
इसलिए तोड़ दो यह बंधनों की दीवार,जिसके पार हम जा सकें
ज़िंदगी तड़प रही थी किसी की
मौत हंस रही थी उसकी
ज़िंदगी ने चाह मिल जाए मौत ही
मगर उसने भी साथ न दिया ज़िंदगी का
कितनी मजबूर थी ज़िंदगी जीने के लिए
तड़प के आगोश में जलने के लिए
बहुत तरसा था यह दिल तनहाइयों के लिए कभी
अब घेरा है तन्हैयेओं ने इस कदर की फुरसत नही महफिलें सजाने की
शुक्रवार, 13 जून 2008
खामोश निगाहों की जुबान हैं आंसू,
दिल पर किसी ज़ख्म का निशाँ हैं आंसू,
यूं टू हसरतों के जज्ब होने का नाम हैं आंसू,
फिर भी आँख से न dhalakne का नाम हैं आंसू।
उदास आंखों से आंसू नही गिरते हैं,
यह टू मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं।
दर्द में मैंने जिसको भी करीब पाया था
आंसू बहता वो मेरा ही साया था
काँटों भरी राह का बाम है ज़िंदगी,
दर्द में सिमटी हर शाम का नाम है ज़िंदगी,
नफरतों के जहाँ में हंसने का नाम है ज़िंदगी,
दिन के उजालों में जलने का नम है ज़िंदगी,
रात के वीरानों में भटकने का नाम है ज़िंदगी,
असल में फूलों से बचकर चलने का नाम है ज़िंदगी।
बहारों का आँचल नही है हर किसी के लिए
पतझड़ का दमन नही है हर किसी के लिए
बहारों में फूल खिलते हैं,दिल भी मिलते हैं
फिर कभी न मिलने के लिए,पतझड़ में दिल बिचादते एन।
ऐ अश्कों जज्ब हो जाओ आखों की कोरों में
तुम्हें नही दी इजाज़त बाहर निकलने की ज़माने ने।
ज़ख्म कागज़ पर लिखकर , दर्द दिल का मिटा लेते हैं
अपनी तकदीर से रु-बी-रु होकर ख़ुद को जीने की सज़ा देते एन।
डूब गया हूँ ग़मों में कुछ इस कदर
की दरिया-ऐ-जिंदगानी अब पार नही होती
मैं टू वो माझी हूँ जिसे तलाश है एक कश्ती की
और यह तलाश है की ख़त्म नही होती।
दिल के टूटने की चटख बहुत दूर तक गई
मगर आवाज़ सुनने वाला रह में कोई न था
दिल की आवाज़ सुन रही थी में
खामोश वातावरण में जी रही थी में
न जाने यह कैसा तूफ़ान आ गया
भा में ज़िंदगी की कश्ती फंस गई है
न डूब रही है और न निकल रही है
साहिल भी साथ है मगर किनारे की तलाश है
आज ज़िंदगी बन गई है ऐसा पिंजरा
जिसमें बंद पंछी पंख फद्फादा भी नही सकता
जीने की इच्छा हो चुकी है ख़त्म
सिर्फ़ जीने की रस्म निभाए जा रही हूँ मैं
हँसी का रंग भी बदल चुका है अब
सिर्फ़ खोखले अंदाज़ मैं हँसे जा रही हूँ में
दिल से टू टूट चुकी थी बहुत पहले ही
अब टू और टूटने के लिए जिए जा रही हूँ में
दिल पर किसी ज़ख्म का निशाँ हैं आंसू,
यूं टू हसरतों के जज्ब होने का नाम हैं आंसू,
फिर भी आँख से न dhalakne का नाम हैं आंसू।
उदास आंखों से आंसू नही गिरते हैं,
यह टू मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं।
दर्द में मैंने जिसको भी करीब पाया था
आंसू बहता वो मेरा ही साया था
काँटों भरी राह का बाम है ज़िंदगी,
दर्द में सिमटी हर शाम का नाम है ज़िंदगी,
नफरतों के जहाँ में हंसने का नाम है ज़िंदगी,
दिन के उजालों में जलने का नम है ज़िंदगी,
रात के वीरानों में भटकने का नाम है ज़िंदगी,
असल में फूलों से बचकर चलने का नाम है ज़िंदगी।
बहारों का आँचल नही है हर किसी के लिए
पतझड़ का दमन नही है हर किसी के लिए
बहारों में फूल खिलते हैं,दिल भी मिलते हैं
फिर कभी न मिलने के लिए,पतझड़ में दिल बिचादते एन।
ऐ अश्कों जज्ब हो जाओ आखों की कोरों में
तुम्हें नही दी इजाज़त बाहर निकलने की ज़माने ने।
ज़ख्म कागज़ पर लिखकर , दर्द दिल का मिटा लेते हैं
अपनी तकदीर से रु-बी-रु होकर ख़ुद को जीने की सज़ा देते एन।
डूब गया हूँ ग़मों में कुछ इस कदर
की दरिया-ऐ-जिंदगानी अब पार नही होती
मैं टू वो माझी हूँ जिसे तलाश है एक कश्ती की
और यह तलाश है की ख़त्म नही होती।
दिल के टूटने की चटख बहुत दूर तक गई
मगर आवाज़ सुनने वाला रह में कोई न था
दिल की आवाज़ सुन रही थी में
खामोश वातावरण में जी रही थी में
न जाने यह कैसा तूफ़ान आ गया
भा में ज़िंदगी की कश्ती फंस गई है
न डूब रही है और न निकल रही है
साहिल भी साथ है मगर किनारे की तलाश है
आज ज़िंदगी बन गई है ऐसा पिंजरा
जिसमें बंद पंछी पंख फद्फादा भी नही सकता
जीने की इच्छा हो चुकी है ख़त्म
सिर्फ़ जीने की रस्म निभाए जा रही हूँ मैं
हँसी का रंग भी बदल चुका है अब
सिर्फ़ खोखले अंदाज़ मैं हँसे जा रही हूँ में
दिल से टू टूट चुकी थी बहुत पहले ही
अब टू और टूटने के लिए जिए जा रही हूँ में
मंगलवार, 10 जून 2008
मेरा घर
विरानियाँ हैं घर मेरा
तन्हैयाँ हैं साथी
और गम हैं पड़ोसी
दिल कभी परेशां कैसे हो
जब ऐसा सुखद साथ हो
कोई खुशी दमन को छुए कैसे
जब हर तरफ़ रंजो गम की बरसात हो
मेरे घर में हमेशा दर्द का पहरा रहता है
अश्कों से हमेशा दामन भीगा रहता है
यह तो वो हरियाली है
जो कभी मुरझाती नही
ऐसी ब्हार है जो
आकर कभी जाती नही
तन्हैयाँ हैं साथी
और गम हैं पड़ोसी
दिल कभी परेशां कैसे हो
जब ऐसा सुखद साथ हो
कोई खुशी दमन को छुए कैसे
जब हर तरफ़ रंजो गम की बरसात हो
मेरे घर में हमेशा दर्द का पहरा रहता है
अश्कों से हमेशा दामन भीगा रहता है
यह तो वो हरियाली है
जो कभी मुरझाती नही
ऐसी ब्हार है जो
आकर कभी जाती नही
रविवार, 8 जून 2008
दर्द -ऐ - दिल
दिल के टूटने की आवाज़ वो सुनकर भी नही सुनता ,
सब कुछ समझ कर भी वो कुछ भी नही समझता,
किसी के दिल पर क्या बीती है ----वो जानता है ,
इतना भी नासमझ नही ------फिर क्यों वापस बुलाता नही ,
दर्द जब हद से बढ़ जाएगा वो तब भी न वापस आएगा ,
जब हम न रहेंगे -------यह जानकर भी ,
वो हमको न वापस बुलाएगा।
सब कुछ समझ कर भी वो कुछ भी नही समझता,
किसी के दिल पर क्या बीती है ----वो जानता है ,
इतना भी नासमझ नही ------फिर क्यों वापस बुलाता नही ,
दर्द जब हद से बढ़ जाएगा वो तब भी न वापस आएगा ,
जब हम न रहेंगे -------यह जानकर भी ,
वो हमको न वापस बुलाएगा।
इन्सान
आज इन्सान सिर्फ़ अपनी सोच और अपने लिए ही जीता है । उसे फर्क नही पड़ता की कोई क्या सोचता है । उसे किसी की चाहत से कोई मतलब नही । अपने लिए जीना और सिर्फ़ अपने मन की सुनना और करना सिर्फ़ इतना चाहता है। क्या यही है ज़िंदगी की सच्चाई?कहीं कोई प्यार नही,किसी की इच्छा का सम्मान नही। रिश्ते भी सिर्फ़ अपनी जरुरत के लिए नीभाना फिर भूल जाना.........क्या यही इंसान है? क्यों इन्सान की सोच इतनी मतलबी हो गई है ?
kyun
मौसम क्यों रंग बदलता है ,ज़िंदगी क्यों हर पल बदलती है,
ज़ख्म क्यों बार बार मिलते हैं ,दिल क्यों बार बार टूटता है,
दिल क्यों नही pratirodh कर पाता ,अश्क क्यों जज्ब हो जाते हैं ,
वक्त क्यों बदलता नही , किस्मत को तरस क्यों आता नही ,
क्यों ख़ुद को समझ पाते नही ,क्यों किसी को समझा पाते नही ,
क्यों यह ग़मों का मौसम ठहर गया है ,इसे दूसरा घर क्यों नज़र आता नही ।
ज़ख्म क्यों बार बार मिलते हैं ,दिल क्यों बार बार टूटता है,
दिल क्यों नही pratirodh कर पाता ,अश्क क्यों जज्ब हो जाते हैं ,
वक्त क्यों बदलता नही , किस्मत को तरस क्यों आता नही ,
क्यों ख़ुद को समझ पाते नही ,क्यों किसी को समझा पाते नही ,
क्यों यह ग़मों का मौसम ठहर गया है ,इसे दूसरा घर क्यों नज़र आता नही ।
शनिवार, 7 जून 2008
दर्द
मैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
हर गम को भी मुस्कुराते देखा है
हर सुबह में एक उदासी देखी है
हर शाम में एक खुशी भी देखी है
हर चुभते कांटे में एक दर्द को पलते देखा है
हर खामोश nigaah में एक आंसू को जलते देखा है
हर खामोश दीवार में kisi राज़ को दफ़न देखा है
हर मासूम चेहरे में एक खामोश मुहब्बत देखी है
पर हर मुहब्बत को परवान पे न चढ़ते देखा है
इस बेदर्द duniya को हर आह पर हँसते देखा है
हर ज़ख्म को यहाँ sirf नासूर बनते देखा है
मैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
हर गम को भी मुस्कुराते देखा है
हर सुबह में एक उदासी देखी है
हर शाम में एक खुशी भी देखी है
हर चुभते कांटे में एक दर्द को पलते देखा है
हर खामोश nigaah में एक आंसू को जलते देखा है
हर खामोश दीवार में kisi राज़ को दफ़न देखा है
हर मासूम चेहरे में एक खामोश मुहब्बत देखी है
पर हर मुहब्बत को परवान पे न चढ़ते देखा है
इस बेदर्द duniya को हर आह पर हँसते देखा है
हर ज़ख्म को यहाँ sirf नासूर बनते देखा है
मैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
बुधवार, 28 मई 2008
पहचान औरत की
क्या औरत की ज़िंदगी हमेशा काँटों भरी ही रहेगी?हर औरत एक मुकम्मल जहाँ चाहती है मगर क्या उसे कभी mil पाता है उसका जहाँ?क्यों हर बार उसके साथ ही ऐसा क्यों होता है?एक औरत को उसका घर कभी नही milta चाहे क्यों न उसे सारी umra घर की मालकिन कहा जाए मगर क्या वास्तव में वो कभी घर की मालकिन बन पाती है?
आज हर जगह कम या ज्यादा औरत की यही हालत है.उसे हर जगह यही अहसास करवाया जाता है की वो एक औरत है तो चाहे पित के घर रहे या pita के हर काम के liye आज भी औरत को यही ahssas करवाया जाता है की जब वो अपने घर चली जाए तब जो चाहे करे मगर उसे ta-umra यह समझ नही आता की उसका घर कौन सा है kyunki pita कहते हैं की अपने pati के घर जो चाहे करना और जब pati के घर हो तो वो कहते हैं की pita के घर यह kiya कभी .ऐसे में कोई बताये की औरत का घर कौन सा है?क्या उसकी अपनी कोई शख्सियत नही होती ?आज भी कितना ही पढ़ लिख जाए मगर उसके नसीब में औरत होने का ठप्पा उसे कुच्छ भी अपनी मरजी से न करने के लिए क्यों मजबूर करता है?आज दुनिया चाहे कहीं भी पहुँच गई हो मगर इंसान की सोच आज भी वो ही है.purush आज भी नही बदला . उसकी सोच और उसकी मानसिकता आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी .ऐसे में कैसे औरत ख़ुद को समाज में sthapit करे ?लोग कह सकते हैं की अपने हक के liye लड़े अपनी बात कहे मगर एक औरत का दर्द सिर्फ़ एक औरत ही समझ सकती है .आज औरत को घर और बाहर सब देखना होता है और अपनी गृहस्थी भी .ऐसे में अगर वो अपने हक के liye लड़ती है तो घर छूटता है जिसके liye उसने सारी ज़िंदगी दे दी और न लड़े तो hashra वोही होता है जो है आज भी .तो ऐसे में वो क्या करे,क्या कभी इस purushmay समाज में क्या कभी उसे भी वो मुकाम मिल पायेगा जिसकी वो हक़दार है?
आज हर जगह कम या ज्यादा औरत की यही हालत है.उसे हर जगह यही अहसास करवाया जाता है की वो एक औरत है तो चाहे पित के घर रहे या pita के हर काम के liye आज भी औरत को यही ahssas करवाया जाता है की जब वो अपने घर चली जाए तब जो चाहे करे मगर उसे ta-umra यह समझ नही आता की उसका घर कौन सा है kyunki pita कहते हैं की अपने pati के घर जो चाहे करना और जब pati के घर हो तो वो कहते हैं की pita के घर यह kiya कभी .ऐसे में कोई बताये की औरत का घर कौन सा है?क्या उसकी अपनी कोई शख्सियत नही होती ?आज भी कितना ही पढ़ लिख जाए मगर उसके नसीब में औरत होने का ठप्पा उसे कुच्छ भी अपनी मरजी से न करने के लिए क्यों मजबूर करता है?आज दुनिया चाहे कहीं भी पहुँच गई हो मगर इंसान की सोच आज भी वो ही है.purush आज भी नही बदला . उसकी सोच और उसकी मानसिकता आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी .ऐसे में कैसे औरत ख़ुद को समाज में sthapit करे ?लोग कह सकते हैं की अपने हक के liye लड़े अपनी बात कहे मगर एक औरत का दर्द सिर्फ़ एक औरत ही समझ सकती है .आज औरत को घर और बाहर सब देखना होता है और अपनी गृहस्थी भी .ऐसे में अगर वो अपने हक के liye लड़ती है तो घर छूटता है जिसके liye उसने सारी ज़िंदगी दे दी और न लड़े तो hashra वोही होता है जो है आज भी .तो ऐसे में वो क्या करे,क्या कभी इस purushmay समाज में क्या कभी उसे भी वो मुकाम मिल पायेगा जिसकी वो हक़दार है?
मंगलवार, 27 मई 2008
जीने का ढंग
जीना सीखना है तो फूल से सीख , सब kucchh सहना और हँसते रहना ,
हर सुबह काँटों की गोद में आँखें खोलना और phir भी मुस्कुराते रहना ,
कभी उफ़ भी न करना ,आह भी न भरना ,हर ज़ख्म पर मुस्कुराते रहना ,
क्या kismat पाई है ------- dard सहकर भी सबको मुस्कान देना ,
हर चाहत को दूसरे की खुशी में jazb कर देना ,
अपने dard का kisi को अहसास भी न होने देना,
रात भर काँटों के bistar पर गुजारना ,
और fir अगली सुबह वो ही मुस्कराहट होठों पर सजा कर रखना ,
आसान नही होता ..................................................................
सीख सके तो सीख जीने का ढंग ,
सहने का ढंग ,मुस्कुराने का ढंग ,
सबको खुशीयाँ बाँटने का ढंग
हर सुबह काँटों की गोद में आँखें खोलना और phir भी मुस्कुराते रहना ,
कभी उफ़ भी न करना ,आह भी न भरना ,हर ज़ख्म पर मुस्कुराते रहना ,
क्या kismat पाई है ------- dard सहकर भी सबको मुस्कान देना ,
हर चाहत को दूसरे की खुशी में jazb कर देना ,
अपने dard का kisi को अहसास भी न होने देना,
रात भर काँटों के bistar पर गुजारना ,
और fir अगली सुबह वो ही मुस्कराहट होठों पर सजा कर रखना ,
आसान नही होता ..................................................................
सीख सके तो सीख जीने का ढंग ,
सहने का ढंग ,मुस्कुराने का ढंग ,
सबको खुशीयाँ बाँटने का ढंग
सोमवार, 26 मई 2008
अभिव्यक्ति
aasan नही होता ख़ुद को abhivyakt करना
न जाने kitni बार ख़ुद से ही लड़ना पड़ता है
न जाने kitni बार gir gir कर संभलना पड़ता है
हर मोड़ पर एक नया फ़साना होता है
जहाँ हर कोई बेगाना होता है
क्या ऐसे में कभी ख़ुद को abhivyakt कर सकते हैं
जब ऐसी राहें हो जहाँ चलना mushkil हो
हर बार अनजानी disha हो ,अनजानी manzil
मुझे पता भी न चले कहाँ जा रही हूँ मैं
तब ख़ुद को कैसे पाऊँगी और abhivyakt कर पाऊँगी
न जाने kitni बार ख़ुद से ही लड़ना पड़ता है
न जाने kitni बार gir gir कर संभलना पड़ता है
हर मोड़ पर एक नया फ़साना होता है
जहाँ हर कोई बेगाना होता है
क्या ऐसे में कभी ख़ुद को abhivyakt कर सकते हैं
जब ऐसी राहें हो जहाँ चलना mushkil हो
हर बार अनजानी disha हो ,अनजानी manzil
मुझे पता भी न चले कहाँ जा रही हूँ मैं
तब ख़ुद को कैसे पाऊँगी और abhivyakt कर पाऊँगी
शनिवार, 24 मई 2008
शुक्रवार, 23 मई 2008
क्या कहूं
कुछ कहना है मगर समझ नही आता क्या कहूं
हर रिश्ता अजीब है हर इन्सान अजीब है
कोई कुछ नही समझता यह कौन सा मोड़ है
हर रिश्ता अजीब है हर इन्सान अजीब है
कोई कुछ नही समझता यह कौन सा मोड़ है
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