आज कुछ
ख्वाबों को
दिल की
धरती पर
बोया है
आशाओं के
बीजों को
दिल की मिटटी में
कुछ ऐसे
बो दिया
कि जैसे कोई
आशिक
अपनी महबूबा
की हसरत में
ख़ुद को
मिटा देता हो
अब इसमें
हर सपने की
एक-एक
कणिका को
खाद बनाया है
जैसे कोई
स्वर्णकार
किरच-किरच
सोने की
संभाले जाता हो
और उसमें
दिल के हर
अरमान की
बूँद - बूँद का
पानी दिया है
जैसे कोई
मूर्तिकार
अपनी शिल्प में
आखिरी हीरा
जड़ रहा हो
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी
शुक्रवार, 31 जुलाई 2009
सोमवार, 27 जुलाई 2009
यादें
कभी कभी जरूरतें याद ले आती हैं
वरना याद किसी को किसी की कब आती है
यादों में बसर किसी की तभी किया करते हैं
जब कोई किसी के दिल में घर किया करते हैं
यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजारने वाले
ऐसे चेहरे कम ही हुआ करते हैं
किसी की याद में जीने मरने वाले
न जाने किस मिटटी के बना करते हैं
यादों की दहलीज पर पाँव रखते ही
न जाने कितने नश्तर सीने में चुभा करते हैं
शाम होते ही यादों की अर्थी सजा लेते हैं
रात भर यादों की चिता में जला करते हैं
वरना याद किसी को किसी की कब आती है
यादों में बसर किसी की तभी किया करते हैं
जब कोई किसी के दिल में घर किया करते हैं
यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजारने वाले
ऐसे चेहरे कम ही हुआ करते हैं
किसी की याद में जीने मरने वाले
न जाने किस मिटटी के बना करते हैं
यादों की दहलीज पर पाँव रखते ही
न जाने कितने नश्तर सीने में चुभा करते हैं
शाम होते ही यादों की अर्थी सजा लेते हैं
रात भर यादों की चिता में जला करते हैं
रविवार, 19 जुलाई 2009
बिना कारण ही
बिना कारण भी
दिल उदास होता है
बिना कारण भी
कोई आस - पास होता है
कभी ख्यालों में
दस्तक देता है
कभी ख्वाबों में
दिखाई देता है
बिना कारण भी
नज़रों को धोखा होता है
पलकों की चिलमन में
बिना कारण भी
कोई क़ैद रहता है
पलकों के गिरने उठने की गति
सांसों की डोर ठहरा जाती है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है
साँसे थम सी जाती हैं
नब्ज़ भी रुकने लगती है
मगर बिना कारण
तब भी दिल धड़कता रहता है
किसी की आहट पर
बिना कारण ही
भटकता रहता है
कभी जज़्बात लरजने लगते हैं
कभी अरमान बहकने लगते हैं
बिना कारण ही
कभी जीवन महकने लगता है
कई बार ऐसा भी होता है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है
दिल उदास होता है
बिना कारण भी
कोई आस - पास होता है
कभी ख्यालों में
दस्तक देता है
कभी ख्वाबों में
दिखाई देता है
बिना कारण भी
नज़रों को धोखा होता है
पलकों की चिलमन में
बिना कारण भी
कोई क़ैद रहता है
पलकों के गिरने उठने की गति
सांसों की डोर ठहरा जाती है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है
साँसे थम सी जाती हैं
नब्ज़ भी रुकने लगती है
मगर बिना कारण
तब भी दिल धड़कता रहता है
किसी की आहट पर
बिना कारण ही
भटकता रहता है
कभी जज़्बात लरजने लगते हैं
कभी अरमान बहकने लगते हैं
बिना कारण ही
कभी जीवन महकने लगता है
कई बार ऐसा भी होता है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
ज़िन्दगी तू एक अबूझ पहेली है
ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है
जितना सुलझाओ
उतनी उलझती है
कभी पास लगती है
तो कभी दूर
इतनी दूर
कि जिसका
पार नही मिलता
ज़िन्दगी
तू एक ख्वाब है
कभी सब सच लगता है
तो कभी ख्वाब सी
टूटती बिखरती है
ज़िन्दगी
तू एक मौसम है
कभी बसंत सी महकती है
तो कभी शिशिर सी
जकड़ती है
कभी सावन सी
रिमझिम बरसती है
तो कभी ग्रीष्म सी
दहकती है
ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए
ज़िन्दगी
तू सिर्फ़ ज़िन्दगी है
न ख़ुद जीती है कभी
न रूकती है कभी
बस सिर्फ़ और सिर्फ़
चलती ही रहती है
एक अनदेखी
अनजानी
दिशा की ओर
मंजिल की तलाश में
और मंजिल
रेगिस्तान में पानी के
चश्मे की तरह
बस कुछ दूर और
कुछ दूर और
दिखाई देती है
मगर
न रेगिस्तान में
कभी पानी मिलता है
और न ही कभी
ज़िन्दगी को मंजिल
सच ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है
तू एक अबूझ पहेली है
जितना सुलझाओ
उतनी उलझती है
कभी पास लगती है
तो कभी दूर
इतनी दूर
कि जिसका
पार नही मिलता
ज़िन्दगी
तू एक ख्वाब है
कभी सब सच लगता है
तो कभी ख्वाब सी
टूटती बिखरती है
ज़िन्दगी
तू एक मौसम है
कभी बसंत सी महकती है
तो कभी शिशिर सी
जकड़ती है
कभी सावन सी
रिमझिम बरसती है
तो कभी ग्रीष्म सी
दहकती है
ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए
ज़िन्दगी
तू सिर्फ़ ज़िन्दगी है
न ख़ुद जीती है कभी
न रूकती है कभी
बस सिर्फ़ और सिर्फ़
चलती ही रहती है
एक अनदेखी
अनजानी
दिशा की ओर
मंजिल की तलाश में
और मंजिल
रेगिस्तान में पानी के
चश्मे की तरह
बस कुछ दूर और
कुछ दूर और
दिखाई देती है
मगर
न रेगिस्तान में
कभी पानी मिलता है
और न ही कभी
ज़िन्दगी को मंजिल
सच ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है
रविवार, 12 जुलाई 2009
दिल की खोज
उदास है दिल
न जाने क्यूँ
किसे खोजता है
किसकी तलाश है
शायद ये भी अब
किसी गहरे
सागर में डूब
जाना चाहता है
शायद ये भी
सागर की तलहटी में
छुपे किसी अनमोल
मोती की तलाश में है
या फिर शायद
ये भी सागर के अंतस की
अनन्त गहराई में
खो जाना चाहता है
जहाँ खुद को पा सके
कुछ पल अपने लिए
सुकून के खोज सके
आख़िर दिल दिल ही है
कब तक सब कुछ झेलेगा
कभी तो खुद को भी टटोलेगा
कभी तो अपने को भी खोजेगा
इस दिल की पीड़ा को
कोई क्या समझेगा
दिल भी आख़िर दिल ही है
कभी तो जीना सीखेगा
कब तक खिलौना बन भटकेगा
अब तो खुद के लिए भी
एक किनारा ढूंढेगा
कहीं तो ठोर पायेगा
और तब शायद
उसका वजूद भी
उसमें ही सिमट जाएगा
न जाने क्यूँ
किसे खोजता है
किसकी तलाश है
शायद ये भी अब
किसी गहरे
सागर में डूब
जाना चाहता है
शायद ये भी
सागर की तलहटी में
छुपे किसी अनमोल
मोती की तलाश में है
या फिर शायद
ये भी सागर के अंतस की
अनन्त गहराई में
खो जाना चाहता है
जहाँ खुद को पा सके
कुछ पल अपने लिए
सुकून के खोज सके
आख़िर दिल दिल ही है
कब तक सब कुछ झेलेगा
कभी तो खुद को भी टटोलेगा
कभी तो अपने को भी खोजेगा
इस दिल की पीड़ा को
कोई क्या समझेगा
दिल भी आख़िर दिल ही है
कभी तो जीना सीखेगा
कब तक खिलौना बन भटकेगा
अब तो खुद के लिए भी
एक किनारा ढूंढेगा
कहीं तो ठोर पायेगा
और तब शायद
उसका वजूद भी
उसमें ही सिमट जाएगा
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
शब्दों का आमंत्रण
शब्दों के आमंत्रण पर
मैं बिन डोर
खिंची चली आती हूँ
शब्दों के सागर में फिर
बिन पतवार
नाव चलाती हूँ
कभी डूबती हूँ
कभी उतराती हूँ
तो कभी शब्दजाल के
भंवर में फंस जाती हूँ
शब्दों की आँख मिचोनी में
कभी शब्द विलीन हो जाते हैं
तो कभी मैं कहीं खो जाती हूँ
फिर शब्द खोजते हैं मुझको
और मैं शब्दों की चादर
ओढ़ सो जाती हूँ
शब्दों के संसार में
बिन पहचाने
शब्दों को खोजने जाती हूँ
शब्दों की गहन भाषा को
मैं बिन जाने भी
जान जाती हूँ
कभी शब्द मेरे हो जाते हैं
कभी मैं शब्दों की हो जाती हूँ
कभी शब्द मुझको छूते हैं
कभी मैं शब्दों में खो जाती हूँ
इस शब्दों के अनोखे खेल में
मैं शब्दों से लाड लड़ती हूँ
शब्दों के मीठे आमंत्रण पर मैं
बिन डोर खिंची चली आती हूँ
मैं बिन डोर
खिंची चली आती हूँ
शब्दों के सागर में फिर
बिन पतवार
नाव चलाती हूँ
कभी डूबती हूँ
कभी उतराती हूँ
तो कभी शब्दजाल के
भंवर में फंस जाती हूँ
शब्दों की आँख मिचोनी में
कभी शब्द विलीन हो जाते हैं
तो कभी मैं कहीं खो जाती हूँ
फिर शब्द खोजते हैं मुझको
और मैं शब्दों की चादर
ओढ़ सो जाती हूँ
शब्दों के संसार में
बिन पहचाने
शब्दों को खोजने जाती हूँ
शब्दों की गहन भाषा को
मैं बिन जाने भी
जान जाती हूँ
कभी शब्द मेरे हो जाते हैं
कभी मैं शब्दों की हो जाती हूँ
कभी शब्द मुझको छूते हैं
कभी मैं शब्दों में खो जाती हूँ
इस शब्दों के अनोखे खेल में
मैं शब्दों से लाड लड़ती हूँ
शब्दों के मीठे आमंत्रण पर मैं
बिन डोर खिंची चली आती हूँ
बुधवार, 1 जुलाई 2009
उन्हें शिकायत है हमसे
उन्हें शिकायत है हमसे
ख़ुद ही ज़ख्म देते हैं
ज़ख्मों पर मरहम नही
नमक छिड़कते हैं
टीस उठने पर
आह भी करने नही देते
आँख में आंसू आने पर
टपकने भी नही देते
फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
कभी बेवफाई का
इल्जाम लगाते हैं
मगर ख़ुद ही
वफ़ा की गली से
कभी गुजरे नही
रंग वफ़ा के
होते हैं क्या
उनमें भी जो न डूबे कभी
और फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
अपना हाल-ए-दिल
बयां कर जाते हैं
किसी के दिल पर
क्या गुजरी
ये भी न जाना कभी
उसके दिल का हाल
जाने बिना
उसके दर्द को
और बढ़ा जाते हैं
फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
सिर्फ़ अपने लिए
जीते हैं जो
अपनी ही चाहत को
जानते हैं जो
किसी की भावनाओं को
न समझें जो
चाहत जिसके लिए
खुदगर्जी का
इक व्यापार हो
पग-पग पर
आहत कर दे जो
होठों की हंसीं
को भी सीं दे जो
और उस पर
उफ़ भी न करने दे जो
अंतःकरण में भी
न सिसकने दे जो
मर - मरकर भी
जो न जीने दे
उस पर भी
इल्जाम हो ये
कि
उन्हें शिकायत है हमसे
ख़ुद ही ज़ख्म देते हैं
ज़ख्मों पर मरहम नही
नमक छिड़कते हैं
टीस उठने पर
आह भी करने नही देते
आँख में आंसू आने पर
टपकने भी नही देते
फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
कभी बेवफाई का
इल्जाम लगाते हैं
मगर ख़ुद ही
वफ़ा की गली से
कभी गुजरे नही
रंग वफ़ा के
होते हैं क्या
उनमें भी जो न डूबे कभी
और फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
अपना हाल-ए-दिल
बयां कर जाते हैं
किसी के दिल पर
क्या गुजरी
ये भी न जाना कभी
उसके दिल का हाल
जाने बिना
उसके दर्द को
और बढ़ा जाते हैं
फिर भी
उन्हें शिकायत है हमसे
सिर्फ़ अपने लिए
जीते हैं जो
अपनी ही चाहत को
जानते हैं जो
किसी की भावनाओं को
न समझें जो
चाहत जिसके लिए
खुदगर्जी का
इक व्यापार हो
पग-पग पर
आहत कर दे जो
होठों की हंसीं
को भी सीं दे जो
और उस पर
उफ़ भी न करने दे जो
अंतःकरण में भी
न सिसकने दे जो
मर - मरकर भी
जो न जीने दे
उस पर भी
इल्जाम हो ये
कि
उन्हें शिकायत है हमसे
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