अरुण शर्मा अनंत ने बड़े प्यार और मान सम्मान से जब सन्निधि में एक गुलमोहर का फूल मेरे हाथ में दिया तो उसकी खुश्बू में सराबोर हुए बिना कैसे रहा जा सकता था और मैं भी भीग गयी उस की खुश्बू में और जब बाहर निकली तो ये प्रतिक्रिया उभरी :
"गुलमोहर" नाम ही काफी है ना महकाने को मन का कोना कोना और फिर जब पुष्प गुच्छ सिर्फ गुलमोहर का ही बना हो तो खुश्बू का चहूँ ओर फैलना लाज़िमी है। ३० कवि और सभी के अहसासों को एक सूत्र में पिरो कर इस तरह पेश करना कि लगे वो मुक्त भी है और साथ भी। गहरी संवेदनाओं का पानी जब हिलोर भरता है तभी वहाँ कहीं न कहीं कोई गुलमोहर खिलता है , महकता है , सुवासित करता है। सभी कवियों का अपना आकाश है , अपने पंख हैं , अपनी उड़ान है। सभी स्पंदित हैं भावों की झंकार से तभी तो कहीं प्रेम तो कहीं पीड़ा दृष्टिगोचर हो रही है। कहीं आस की भोर है तो कहीं विषाद की सांझ , कहीं उम्र की सिमटती लकीर है तो कहीं एक मुट्ठी में सारा आसमान। जिनकी महक, पीड़ा और संवेदना आपको इन पंक्तियों में देखने को मिलेंगी :
"ये हव्वा की बतियाना हैं
बुनती रहती हैं एक श्रृंखला अनंत
"वंश" तो एक "पुल्लिंग" शब्द है
मैं नहीं मानती !मैं नहीं मानती !मैं नहीं मानती "
चंद पंक्तियाँ और पीढियों की वेदना का स्वर प्रस्फ़ुटित कर देना ही तो कवि के काव्य की विद्वता है ।
"क्या मन का मेटाबोलिज्म इतना कमज़ोर है ?"
ज़िन्दगी में सारी पीडा सिर्फ़ मन की तो होती है और उसे बहुत ही संजीदगी से पेश किया गया है इस कविता में
"कानून और पुलिस पर आस्था ! / कैसा मज़ाक करते हैं ? / दरिंदगी का यह नंगा नाच / डर / क्या यही नियति रह जायेगी ? "
इस सत्य को कैसे नकार सकते हैं जिससे रोज दो चार होते हैं ।
"दिए नारी को दर्द इतने / हिसाब नहीं / या खुदाया तेरा जवाब नहीं "
कितना दर्द से लबरेज़ हुयी होगी तभी तो ये आह दिल से निकली होगी जो खुदा को भी कटघरे में खडा करना पडा होगा ।
"अभिभावक कर्जे की किश्तों में पीस रहा / पर उनके लख्ते जिगर बेखबर हैं / यौवन के नशे में डूबे हुए को / क्या मैं " ईदगाह " पढ़वाऊँ मुंशी जी "
ओह! सत्य के जैसे किसी ने कपडे उतार दिये हों और भरे बाज़ार वस्त्रहीन कर दिया हो , समाजिक स्थिति , विडंबनाओं का सम्पूर्ण चित्रण है ये कविता
"बुजुर्ग ऐसा सोना , जो अपनी अहमियत / वक्त पड़ने पर बताता है / पर कितना निर्मम है ना ? "
हम जानते भी हैं पर जाने क्यों मानना नहीं चाहते जाने कैसी और किस भागदौड में उलझे हैं उसी पर कुठाराघात करती है ये कविता
"श्वेत आत्मा सा श्वेत दुपट्टा / और / उस पर पक्का रंग "
सोच के उच्च स्तर को प्रमाणित करती पंक्तियाँ साथ ही ज़िन्दगी को परिभाषित कर देना ही काव्य की पहली शर्त होती है जिसमें कवि सफ़ल हुये हैं
"लगे न नज़र ज़माने की तुमको / घूंघट को थोडा सा सरकाए रखना "
"प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा" जैसा अहसास समाया है जहाँ मोहब्बत तो झलक ही रही है साथ ही एक परंपरा को भी स्थान मिला है
"शायद प्यार।/ अँधा नहीं , मौन होता है "
प्यार की इससे बेहतर और क्या परिभाषा होगी एक नया अर्थ दे दिया कवि ने प्रेम को यही तो प्रेम की ऊँचाइयाँ हैं जो सत्य है जब आप प्रेम की पराकाष्ठा पर पहुँचते हो तो मौन हो जाते हो और प्रेम रस मे छके होने पर सिर्फ़ मौन के सागर में हिलोरे लेते हो मगर वाणी शब्दहीन हो जाती है ……आहा! ये है आल्हादिक प्रेम जिसके लिये कवि प्रशंसा के पात्र हैं ।
"एक लड़की के लिए प्रेम पत्र / किसी देवता से कम नहीं होता "
कहीं से भी नहीं लगता कि कवितायें परिपक्व नहीं , हर कवि की अपनी सोच और अपने विचार जब ह्रदय के चूल्हे पर पके तो देखिये कितनी खूबसूरती से उभरे कि पाठक को अपने साथ बहा ले गये ।
"कब्रिस्तान में / सबसे अलग तरह की कब्र / हिजड़ों की होती है "
ये है दूरदृष्टि , एक परिपक्व सोच की सशक्त पहचान , जिसे हम देखकर भी अनदेखा करते हैं ,जहाँ अंत है वहीं से शुरुआत की है कविता ने और ये है कवि के भावों का रेला जो बहा ले जाता है अपने साथ और सोचने को मजबूर कर दे तो समझिये लेखन सफ़ल हुआ जिसमें कवि सफ़ल हुये हैं ।
"भाई की बिटिया के मुताबिक़ / चौराहा अब बड़ा हो गया है / कहती है , मैं भी बड़ी हो गयी हूँ "
चौराहे से बेटी के बडे होने का बिम्ब अपने आप में बेजोड है जो गहरी सोच को इंगित करता है।
"एक और नारी / एक और अपना / एक और रेप / वहशी यह समाज / कौन बचाये "
रिश्तों की दहलीज पर कडा प्रहार करती कविता एक कटु सत्य को उजागर करती है और प्रश्नचिन्ह भी खडा करती है कि क्या अब पुनर्मूल्यांकन का समय आ गया है ?
"और मेरा दर्द, मेरे भीतर / हाथ पाँव मरने को बाध्य है "
दर्द की इंतेहा का इससे सटीक चित्रण और क्या होगा भला जहाँ शब्द सब चुकता हो जायें और सोच वहीं उसी चौखट पर बैठ जाये कि अब किधर जाऊँ अन्दर या बाहर ।
और अब अरुण की रचनाओं पर एक नज़र :
छंदबद्ध रचनायें लिखना अरुण के लेखन का सौंदर्य है जो उसकी सभी रचनाओं में छलकता है फिर चाहे शायरी हो , दोहे , गीत या ग़ज़ल। चंद शब्दों में मारक शब्दों का समावेश उसकी विशेषता है। गहन भाव गहन अर्थ समेटे रचनायें मन को छू जाती हैं जिसकी बानगी देखते ही बनती है कुछ इस तरह :
माँ तेरी महिमा अगम , कैसे करूँ बखान
सम्भव परिभाषा नहीं , सम्भव नहीं विधान
कोमलता भीतर नहीं , नहीं जिगर में पीर
बहुत दुश्शासन हैं यहाँ , इक नहीं अर्जुन वीर
ठग बैठा पोषक में , बना महात्मा संत
अपनी झोली भर रहा , कर दूजे का अंत
कभी सच्ची मोहब्बत को, दीवाने दिल नहीं पाते
यहाँ पत्थर बहुत रोया , वहाँ आंसू नहीं आते
तालियों की गड़गड़ाहट , संग बजीं सीटियां
देश का नेता हमारा , यूं शहर बदल गया
दोस्तों मेरी भी एक सीमा है इसलिये सबकी सब रचनायें तो उद्धृत कर नहीं सकती थी बस कुछ रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ लेकर अपने भावों को समन्वित किया है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि बाकी रचनाओं में कोई कमी है । सभी रचनाकार एक से बढकर एक हैं जिनकी रचनायें ह्रदय को छूती हैं ।
हिन्द युग्म से प्रकाशित इस काव्य संग्रह को संपादक द्वय अंजू चौधरी और मुकेश कुमार सिन्हा ने अपने संपादन में निकाला है जिसमे ३० कवियों को सम्मिलित किया गया है। सभी की रचनायें ज़िन्दगी के अनुभवों , पीड़ा और वेदना का सम्मिश्रण हैं। गुलमोहर के सभी कवियों को मेरी शुभकामनाएँ कि गुलमोहर सा उनका लेखन महकता रहे और अपनी सुरभि से सभी को सुवासित करता रहे।
नवोदितों को लेकर संग्रह निकालना साथ ही उनकी प्रतिभा का सही आकलन कर उन्हें एक जमीन प्रदान करना एक सराहनीय कदम है जिसमें संपादक द्वय सफ़ल रहे हैं । गुलमोहर के विमोचन पर जब नवोदितों की खुशी से दमकता चेहरा देखा तो उस प्रसन्नता का आकलन शब्दों में करना संभव ही नहीं इसलिये बस यही कह सकती हूँ " संभावनाओं की जमीन पर फ़सल लहलहाने को तैयार है बस जरूरत है तो सिर्फ़ उनके प्रयास को सराहने और बढावा देने की ।" जो भी ये पुस्तक पढने के इच्छुक हों तो यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं :