जब से सिन्धी भाषा को लिपि का दर्ज़ा मिला सिन्धी लेखकों , कवियों ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया क्योंकि मानवीय संवेदनाएं किसी भाषा किसी लिपि की मोहताज नहीं होती वो तो सबकी सांझी होती हैं और उसी विरासत को साँझा करने के लिए इक कदम हम सबकी सुपरिचित मुंबई में रहने वाली देवी नागरानी ने उठाया और सिन्धी साहित्य का भाषानुवाद करके एक अमूल्य कृति हम तक पहुंचाई क्योंकि किसी भी सभ्यता की पहचान उसकी भाषा उसकी संस्कृति से परिचित होना है और उससे उसकी संवेदनाओं से परिचित कराकर देवी नागरानी ने अभूतपूर्व योगदान दिया है . यूं तो कहानियां न जाने कितनी लिखी गयीं ,पढ़ी गयी और कभी कभी लगता है जैसे सब में एकरसता सी ही तो है और यदि उस एकरसता में दो बूँद विभिन्नता की पड जाएँ तो स्वाद द्विगुणित हो जाता है और उसी को रूप देती ये कहानियां मन के किसी छोर पर कहीं चोट करती हैं तो कहीं सवाल खड़े करती हैं तो कहीं मन की मिटटी को भिगोती है.
"वो जहाँ -ये मन"कहानी एक गाँठ को अंतस में बाँधकर पूरा जीवन जीने वाली एक ऐसी गृहिणी का चित्रण है जिसे सबक एक अनपढ़ पढ़ा जाती है कि ज़िन्दगी को कैसे जीना चाहिए . एक दिशा देती कहानी मन की गुत्थियों की उलझन और साथ में सहज प्रवाह मन को बाँधता है और लेखक की भावनाओं से जोड़ता भी है . एक ग्रंथि कैसे पूरे जीवन पर हावी रहती है और अंत में जब टूटती है तो बेशक आकाश से बादल तो छंट जाते हैं मगर हाथ खाली ही रह जाते है .
मासूम यादें कहानी जात पांत, उंच नीच की दीवार को भेदती हुई , कैसे जात पांत के बीज जो संस्कारों के साथ लहू में भी पैबस्त होते हैं वो अन्दर तक कचोटते हैं मगर मानवीय संवेदनाएं और ममता का आँचल कब इन दीवारों को मानता है और ढहा देता है हर कुसंस्कारी रीति को मगर तब भी हासिल क्या होता है --------ये प्रश्न उठती कहानी अपने पीछे न जाने कितने सवाल छोड़ जाती है .
देवी नागरानी द्वारा लिखित और मैं बड़ी हो गयी नारी जीवन की दशा को दर्शाती एक कहानी क्या घ-र घर की हकीकत है ऐसी हकीकत जिसे नकारा नहीं जा सकता . कैसे एक लड़की जिसने जाना ही नहीं होता कि क्या जीवन है , क्या जीवन के सन्दर्भ हैं . जिसने सिर्फ आज़ाद परिंदों सा आकाश में उड़ना ही सी्खा होता है जिसमें एक क्रांतिकारी बीज भी दफ़न होता है जो समय- समय पर सर उठाता अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी जानता है और कुरीतियों को तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध भी होता है .एक ऐसी लड़की जो सब देखती है , सब जानती है और समझती भी है और ज़िन्दगी की कडवी सच्चाइयों से नज़र भी मिलाती है मगर मासूमियत के खोल में अपनी आज़ादी के साथ जीना चाहती है . वो जानती है कि पितृ सत्तात्मक समाज की हकीकतें ,माँ होने की मजबूरी , दूसरी स्त्री से सम्बन्ध के अर्थ और बचपन में ही स्वयं का दोहन बता जाता है कैसे ऐसे माहौल में लड़कियाँ जल्दी बड़ी हो जाती हैं या कहो कब किस क्षण बड़ी हो जाती हैं पता ही नहीं चलता या कौन सी घटना उनसे उनकी मसूमियत छीन लेती है और एक स्त्री बना देती है पता ही नहीं चलता .उनका वो बचपन, वो मासूमियत , वो चंचलता कब खो जाती है और वो एक लड़की से गंभीर सोच वाली स्त्री बन जाती है सिर्फ एक घटना के घटित होने से शायद यही त्रासदी है . मुस्कान और ममता , निष्काम प्रेम और ममता की जीती जगती मिसाल है कैसे एक पल की ख़ुशी पर एक माँ अपना सब कुछ कुर्बान कर देती है.
"पीड़ा मेरी ज़िन्दगी" प्रेम के अपूर्ण रहने के अहसास में ही पूर्णता पाने की एक मिसाल है एक नयी लकीर खींचने का प्रयास है जहाँ प्रेमी और प्रेमिका अपूर्णता में पूर्णता चाहते हुए भी प्रेमिका के आगे नतमस्तक होकर खुद अपूर्ण रह जाता है और ज़िन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हो जाता है .
"कहानी और किरदार" ज़िन्दगी और कहानी की हकीकत को दर्शाती एक ऐसी कहानी है जिसमे असफल प्रेम को सामने देख सही निर्णय लेना कितना दूभर होता है उसका काफी जहीनता से चित्रण किया गया है .
पैंतीस रातें छत्तीस दिन विस्वास अविश्वास की नींव पर छली उस औरत का आंसू है जहाँ दोष न होते हुए भी सजा मुक़र्रर हुआ करती है जहाँ छले जाने पर सिसकी न भरने का फरमान जारी हुआ करता है इस पितृ सत्तात्मक समाज में ?
जीने की कला देवी नागरानी द्वारा लिखित एक ऐसा दस्तावेज है जो वास्तव में निराशा में भी आशा का संचार करती है , जीवन जीने का उसे देखने का एक नजरिया देती है कैसे खुद से और ज़िन्दगी से प्यार किया जाए . जो इन पंक्तियों में उदधृत हुयी हैं -------------"पूर्णिका का शरीर रुपी तन ,मन मयूर रुपी आत्मा एक लय, एक ताल पर ज़िन्दगी के सुर ताल पर नृत्य करते सांसों का साथ निभाते. आत्मा भी कभी मरा करती है ! अगर यही तो उसका आवरण बना शारीर कैसे कुम्हला सकता है जिसमे ऐसी अमर आत्मा वास करती है जो सांसों के साज पर रक्स करती है हर पल , हर क्षण , दिन रात , आड़ जुगाड़ से ........."
"हम सब नंगे हैं " एक चीत्कार , सत्य को बेनकाब करती एक चीख जो जब सामने आई तो खुद से भी नज़र मिलाना शर्मनाक हुआ .
"मेरी कहानी सुनना चाहोगे?कहानी एक नहीं है , मेरी सौ सौ कहनियाँ हैं . मैं अकेली तो नहीं हूँ , मेरी जैसी और भी हैं .हमारी ये कहानियां आप जैसे मर्दों की बदसूरती की कहानियां हैं , आपकी नंगी वहशत की कहानियां हैं "
एक ऐसा शर्मनाक सच है जो समाज के शापित चेहरे पर उसकी विभत्सता को दर्शाता है और ढीठ सा ठठाता है मगर नज़र नहीं झुकाता .
"जो वस्त्र स्त्री की हया को ढांपने के साधन हैं उसको भी अगर आप मर्द उसकी ही मौत का सामान बना देते हो तो फिर वह नारी वस्त्र पहने ही क्यों?"
एक तमतमाता तमाचा मारता प्रश्न छोडती है समाज के चेहरे पर ये कहानी .
छोटा दुःख बड़ा दुःख मानवीय जीवन में घटित होती छोड़ी बड़ी घटनाओं के साथ जीवन जीने की जद्दोजहद है कैसे एक तल्खी सोच पर हावी होती है एक पल में और दूसरे ही पल किसी और बड़े कारण से उस तल्खी का नामो निशान भी नहीं रहता ज़िन्दगी में . बस इसी का सामंजस्य है इस कहानी में छोटी बातें कोई महत्त्व नहीं रखतीं किसी बडी घटना के आगे।
क़र्ज़ की दरख्वास्त सरकारी काम काज के ढर्रे का बयां है जिससे हर कोई बचना चाहता है जैसा कि कहानी का नाम खुद स्पष्ट कर रहा है ..संवेदनहीन खुरदरे चेहरों पर लकीरें नहीं उभरा करतीं .
देवी नागरानी की नयी माँ रिश्तों की पैंठ को दर्शाती वो जीवन का कटु सत्य है जिससे न जाने कितनी मासूमों के जीवन के सुनहरी पलों को लील लिया है मगर फिर भी आपसी समझ या विश्वास का वातावरण न मुहैया हुआ है मगर इस कहानी में उसी को तोडा गया है और नयी माँ में माँ को एक सखी का रूप दिया गया है वर्ना तो मजबूरी में कम उम्र में शादी , अपने से बड़ी उम्र के बच्चों की माँ बनना आम रवायत सी रही है और उसी को एक नया मोड़ दिया है नयी माँ में .
दस्तावेज विभाजन की दास्ताँ को बयां करता दस्तावेज है जहाँ अब भी कहीं न कहीं रिश्तों की गर्माहट और संवेदनशीलता जिंदा है .
"और गंगा बहती रही" ............समाज की वीभत्सता का नंगा नाच है जहाँ विश्वास का पग पग पर बलात्कार होता रहा . "न राम मिला न रहीम और गंगा हो गयी महामहिम " वाला हाल बयां करती एक खामोश चीत्कार जो कब पाप धोते धोते खुद ही गंदली हो गयी .
"जुलूस" हर युग में नेता की नेतागिरी का मापदंड बना फिर चाहे वो किसी अपने की लाश पर ही क्यों न निकाला जाये इन तथा कथितों का ईमान तो सिर्फ कुर्सी की गद्दी से चिपका होता है जिसे भुनाने के लिए वो कोई भी हद पार कर सकते हैं .
"बिजली कौंध उठी " आज की पीढ़ी के चरित्र हनन का जीता - जागता उदाहरण है जिसमें बुजुर्गों के लिए कोई जगह नहीं यदि है तो सिर्फ एक बोझ की तरह .
जियो और जीने दो में देवी नागरानी ने एक ऐसे रूप का दर्शन दिया है जिसे प्रेम का नाम तो दिया मगर प्रेम में बंधन स्वीकार नहीं, कभी कभी किसी के लिए वो मानसिक सांत्वना , दो पल का सुकून होता है तो किसी के लिए जीवन भर का साथ और यदि एक मोड़ पर पहुँचने के बाद पता चले तो लगता है जैसे ठगे गए सब कुछ बिखर गया यहाँ तक कि अपना अस्तित्व भी . प्रेम की अवधारणायें बड़ी विचित्र होती हैं जियो और जीने दो कहना जितना आसान लगता है निभाना उतना ही मुश्किल.
जेल की डायरी फिर समाज के स्याह चेहरे को उजागर करती जुर्म की काली दास्ताँ है जो सामने हो हमेशा वो ही सच नहीं होता और परदे के पीछे की हकीकतें बेहद भयावह होती हैं जिन्हें यदि जानना हो तो नकाब हटाने पड़ते हैं जो सीधे तेज़ाब से चेहरे पर छलकते हैं और आत्मा को जलाकर राख कर देते हैं ऐसी विभत्सता की दास्ताँ है जेल की डायरी जो यदि खुद पढो तो जानोगे दर्द और जुर्म की इन्तहा क्या होती है और क्यों होती है .
सच्चा पाकिस्तानी दो मजहब और दो देशों की सरहदों पर दस्तक देती एक बुजुबान है जो मुखर होना चाहती है मगर संगीनों के साये तले आवाज़ पर भी बेड़ियाँ डली हैं और शब्दों पर पहरे .
"बारूद " जिस्म की वो कब्रगाह है जिसमे पड़ा बारूद उम्र भर चाहे कितना भी सुलगा मगर विस्फोट नहीं हुआ मगर स्त्री तो स्त्री होती है आखिर कब तक , कैसे और किसके सहारे खुद को बचा सकती है विस्फोट तो होकर ही रहा फिर चाहे किसी के सपनों का आशियाँ हमेशा के लिए उजड़ गया .
इस संग्रह की सभी कहानियां ज्यादातर समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और एक प्रश्न हर बार समाज के चेहरे पर जड़ रही हैं उत्तर की दरकार में . एक सशक्त कहानी संग्रह जो हिंदी भाषा से इतर भी एक पहचान बनाये है और अपने छोटे रूप में भी पहचान छोड़ने में कामयाब है . हर कहानी खुद एक कहानी बोलती है जो कहीं न कहीं आत्मा को झकझोरती है और इन्हें हिंदी में अनुवाद करके देवी नागरानी ने हिंदीभाषियों पर एक उपकार किया है जो समाज की विसंगियों का दर्शन कराता है और बताता है तस्वीर हर रूप में , हर युग में , हर देश , हर काल में एक सी ही है फिर चाहे धर्म , जाति या भाषा अलग क्यों न हों।
इस कहानी संग्रह के लिए उन्हें अक्षर शिल्पी पुरस्कार महात्मा गाँधी शांति प्रतिष्ठान में 12 मार्च को प्रदान किया गया जिसकी साक्षी मैं भी रही जिसने गौरान्वित किया कि हम ऐसी शख्शियत के साथ खड़े हैं जिनकी न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी एक उच्च स्थान और पहचान है. 150 रुपये की ये किताब आप इस पते से प्राप्त कर सकते हैं :
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देवी नागरानी
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