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शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

कौन रुकता है किसी के लिये

जाओ 
कौन रुकता है 
किसी के लिए
बहता पानी 
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए
फिर चाहे 
संवेदनाओं के हों 
या आवेगों के
भावनाओं के हों
या संवेगों के
हर कोई 
बह रहा है
फिर चाहे 
वक्त ही
क्यूँ ना हो 
कब किसके 
लिए ठहरा है
तो फिर
कैसे तुमसे 
उम्मीद करूँ
एक आस धरूँ
कि तुम 
रुकोगे 
मेरे लिए

26 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वन्दना जी
.....संवेदनाओं को सुंदरता से अभिव्यक्त करती प्रभावशाली कविता।

संजय भास्‍कर ने कहा…

कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कोई नहीं रुकता किसी के लिए
उम्मीद नहीं
पर रुक के तो देखो
ज़िन्दगी एक मायने ले लेगी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

न कुछ रुका है और न ही रुकेगा ...बहुत गहन बात कह दी है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

मन को समझाने के लिये यह एक प्रयास है अन्यथा प्रिय से अपेक्षाएं कहाँ मिटती हैं । इसलिये पीडा भी अन्तहीन होती है ।...खैर कविता अच्छी है ।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

"कैसे तुमसे
उम्मीद करूँ
एक आस धरूँ
कि तुम
रुकोगे
मेरे लिए" वंदना जी भाव के प्रवाह की तरह बहती कविता मुझे भी बहा ले गई..जितनी कविता में है.. और जो कविता से परे है.. लेकिन कोई ना कोई रुकता है किसी ना किसी के लिए.. नदिया बाँधी नहीं जाती लेकिन कहीं कोई समंदर रुका तो रहता है नदी की आस में .. सुंदर कविता..फिर भी कविता में आशावाद डालिए..

बेनामी ने कहा…

bahut hi khubsurat rachna...

मनोज कुमार ने कहा…

आप एक समर्थ सर्जक हैं। ........ कविता काफी अर्थपूर्ण है! बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

फ़ुरसत में …बूट पॉलिश!, करते देखिए, “मनोज” पर, मनोज कुमार को!

कुमार संतोष ने कहा…

बहुत सुंदर रचना मुदिता जी !
बधाई !

M VERMA ने कहा…

जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
यह प्रवाह रूके न रूके पर संग तो ले चले.
सुन्दर रचना

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर रचना ! जीवन का सत्य है बहाव ... सैल !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है .. कोई किसी के लिए नही रुकता ... विरले ही होते हैं जो ऐसा करते हैं ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है .. कोई किसी के लिए नही रुकता ... विरले ही होते हैं जो ऐसा करते हैं .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
बहता पानी
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए..
--
जमीन से जुड़ी इस शाश्वत रचना के लिए
बधाई स्वीकार करें!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आस रहेगी, प्यास रहेगी।
आ जाना तुम, साँस रहेगी।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

साथ साथ बहो
तो
पा ही लेंगे
मंजिल
जो ठहर गए
एक जगह
तो सड़
जाएंगे ।

Asha Lata Saxena ने कहा…

आपने बिल्कुल सत्य कहा है कोई किसी के लिए नहीं रुकता |अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई |
आशा

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत खूब .....!!
पानी अगर बहे नहीं तो सड़ने लगता है
मैं सदना नहीं चाहती
बहना चाहती हूँ ...
सरल...निश्छल ....निर्मल .....

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी रचना ।

अजय कुमार ने कहा…

सच है ,कोई किसी के लिये नहीं रुकता ।

अजय कुमार ने कहा…

सच है ,कोई किसी के लिये नहीं रुकता ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शानदार!



जाओ
कौन रुकता है
किसी के लिए
बहता पानी
कब ठहरा है
किसी के लिए
प्रवाह कब रुके हैं
किसी के लिए..

deepti sharma ने कहा…

ये तो सच है कोई नही रुकता किसी के लिए

ये ही होता है

बहुत सही कहा आपने

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana

ek dard ubhar kar aaya hai , antim panktiyo me ... bahut hi prabhaavshaali .. ek seedhi sacchi baat kah di aapne .. lekin kuch prem aise bhi hote hai ..jo rukte hai kabhi kabhi ,.umr bhar...

Satish Saxena ने कहा…

लगता है इस खूबसूरत रचना मैंने लिखी हो ....वेदना का कौन समझना चाहता है ...?