आज तो बेटी कहती है…………
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मै जिसे लाऊँ बस
उसे स्वीकार कर लेना
पैसे ,स्टेट्स ,रूप बिना
क्या कोई स्थान मिलता है
जैसे कन्या के पिता की
जायदाद देखकर उसे
स्वीकारा जाता है
ऐसे ही
अब तो वर का सिर्फ़
बैंक बैलेंस से चयन होता है
गर खुद ढूँढ कर लाओ तो
याद ये कर लेना
बेटी हूँ कोई ढोर डंगर नही
किसी के गले भी मढ दोगे
अब तो जो मेरे मन को भायेगा
वो ही जीवनसाथी बन पायेगा
जरूरत नही किसी से कहने की
किसी की सुनने की
बेटी हूँ तो क्या हुआ
किसी से कम नही
जो जो शर्त वो बतलाये
वो ही तुम भी दोहरा देना
गर तुम ना कह पाओ तो
मुझको बतला देना
जरूरत नही किसी के आगे
सिर झुकाने की
कोई बोझ नही हूं तुम पर
गर्व से सिर ऊँचा कर लेना
जब भी बेटी का कोई नाम ले
कह देना --हाँ बेटी का बाप हूँ
अब दान नही देता हूँ
बराबर का रिश्ता करता हूँ
जो भी आकाँक्षाये तुम्हारी है
उनसे कम मेरी बेटी की भी नही
गर बराबर का मिले कोई
तभी बात तुम कर लेना
वरना बाबा तुम ही
रिश्ता तोड देना
मानसिकता को अब
बदलना होगा
नयी पहल करनी होगी
गर तुम ना कर पाओ तो
मुझे बतला देना
मै स्वंय कदम उठा लूँगी
मगर अब ना किसी के आगे
किसी बात पर सर तुम्हारा
न झुकने दूँगी
मै भी वो सब देखूँगी
वो सब चाहूँगी
जो हर बेटे वाला चाहता है
जो गुण अवगुण
रोक टोक लडकी पर
लगाये जाते हैं
मै भी वैसा ही कर दूँगी
मगर अब न तुम्हारी पगडी
किसी के पैरो मे रखने दूँगी
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मानसिकता को अब बदलना होगा
नया इतिहास रचना होगा
वक्त के सीने पर
स्वर्णाक्षरो से लिखना होगा
बेटी किसी से कम नही
ये तुम्हे भी समझना होगा
दुनिया को भी समझाना होगा
दस्तूरों को बदलना होगा
रूढियों को तोडना होगा
तभी सैलाब आयेगा
तभी इंकलाब आयेगा
फिर ना कोई बेटी
दहेज की बलि चढ पायेगी
ना ही परम्पराओं के नाम पर
कुर्बान की जायेगी
शायद भ्रूण हत्यायें
भी रुक जायेंगी
और फिर
नयी आशायें झिलमिलायेंगी
इक नये युग का अवतार होगा
और बेटियाँ माथे का
तिलक बन जायेंगी
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मै जिसे लाऊँ बस
उसे स्वीकार कर लेना
पैसे ,स्टेट्स ,रूप बिना
क्या कोई स्थान मिलता है
जैसे कन्या के पिता की
जायदाद देखकर उसे
स्वीकारा जाता है
ऐसे ही
अब तो वर का सिर्फ़
बैंक बैलेंस से चयन होता है
गर खुद ढूँढ कर लाओ तो
याद ये कर लेना
बेटी हूँ कोई ढोर डंगर नही
किसी के गले भी मढ दोगे
अब तो जो मेरे मन को भायेगा
वो ही जीवनसाथी बन पायेगा
जरूरत नही किसी से कहने की
किसी की सुनने की
बेटी हूँ तो क्या हुआ
किसी से कम नही
जो जो शर्त वो बतलाये
वो ही तुम भी दोहरा देना
गर तुम ना कह पाओ तो
मुझको बतला देना
जरूरत नही किसी के आगे
सिर झुकाने की
कोई बोझ नही हूं तुम पर
गर्व से सिर ऊँचा कर लेना
जब भी बेटी का कोई नाम ले
कह देना --हाँ बेटी का बाप हूँ
अब दान नही देता हूँ
बराबर का रिश्ता करता हूँ
जो भी आकाँक्षाये तुम्हारी है
उनसे कम मेरी बेटी की भी नही
गर बराबर का मिले कोई
तभी बात तुम कर लेना
वरना बाबा तुम ही
रिश्ता तोड देना
मानसिकता को अब
बदलना होगा
नयी पहल करनी होगी
गर तुम ना कर पाओ तो
मुझे बतला देना
मै स्वंय कदम उठा लूँगी
मगर अब ना किसी के आगे
किसी बात पर सर तुम्हारा
न झुकने दूँगी
मै भी वो सब देखूँगी
वो सब चाहूँगी
जो हर बेटे वाला चाहता है
जो गुण अवगुण
रोक टोक लडकी पर
लगाये जाते हैं
मै भी वैसा ही कर दूँगी
मगर अब न तुम्हारी पगडी
किसी के पैरो मे रखने दूँगी
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मानसिकता को अब बदलना होगा
नया इतिहास रचना होगा
वक्त के सीने पर
स्वर्णाक्षरो से लिखना होगा
बेटी किसी से कम नही
ये तुम्हे भी समझना होगा
दुनिया को भी समझाना होगा
दस्तूरों को बदलना होगा
रूढियों को तोडना होगा
तभी सैलाब आयेगा
तभी इंकलाब आयेगा
फिर ना कोई बेटी
दहेज की बलि चढ पायेगी
ना ही परम्पराओं के नाम पर
कुर्बान की जायेगी
शायद भ्रूण हत्यायें
भी रुक जायेंगी
और फिर
नयी आशायें झिलमिलायेंगी
इक नये युग का अवतार होगा
और बेटियाँ माथे का
तिलक बन जायेंगी
34 टिप्पणियां:
बेटी के पिता से किये संवादों ने मन मोह लिया...बहुत ही शसक्त रचना...बधाई...
नीरज
बेटियों की स्वतंत्रता की सुंदर प्रस्तुति।
सच में बेटियां जब निर्णय लेने की आजादी पाएंगी तब शायद महिला दिवस की सार्थकता साबित हो।
अच्छी रचना।
महिला दिवस की शुभकामनाएं।
इसे भी पढें और अपने विचारों से अवगत कराएं।
http://atulshrivastavaa.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
महत्वपूर्ण दिन अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को सुगना फाऊंडेशन जोधपुर की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ..
बहुत खूब ...सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत खूब.... आज समाज को इसी तेवर की ज़रूरत है.
----देवेन्द्र गौतम
बदलते मूल्य और संस्कार पर गहरी कटाक्ष है यह कविता... आज महिला दिवस पर इस कविता का महत्व और भी बढ़ गया है.. बेहतरीन !
बहुत सशक्त रचना पेश की है आपने वन्दना जी!
महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
बहुत बढ़िया...बहुत ही जोशभरी...आशावादी रचना
महिलाओं को सशक्त होना चाहिए...अधिकारों में साथ ही साथ अपने कर्तव्यों और आचरण में भी..
उन्हें जननी का स्थान प्राप्त है इसलिए उम्मींदे स्वतः बढ़ जाती हैं..
आज की नयी पीढ़ी की महिला कहीं न कहीं कुछ स्थानों पर आचरण से भटकती प्रतीत होती है.इसे भी सशक्त बनाने की जरुरत है...
शायद ये अनपात पुरुषों का ज्यादा हो मगर आज बात महिला शशक्तिकरण की हो रही है...
कविता तो हर बार की तरह मधुर और भावनात्मक है..
बधाइयाँ
आज तो बेटी कहती है…………
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मै जिसे लाऊँ बस
उसे स्वीकार कर लेना
great !!!!
very very great !!!
हम भी बेटी का समर्थन करते हैं। पर बेटी की कही बात एक बार में ही समझ में आ जानी चाहिए। ताकि उसे उसी बात को बार बार न कहना पड़े।
बहुत सुन्दर बात कही है आपने ... सशक्त रचना !
अच्छा कदम होगा बशर्ते बच्चे बस समझदारी से कदम उठायें, बाप को तो इन सब झंझटों से मुक्ति मिलेगी !
वंदना जी,
बहुत ही सुन्दर.....इस नयी मानसिकता की ही आवश्यकता है इस दौर में......बहुत ही बढ़िया लगी......
मुझे लगा इस शीर्षक से कोई नया तेलिविसिओं धारावाहिक भी बन सकता है ................बाबा वर तुम मत ढूँढना ..... :-)
बहुत ही बढ़िया कविता.
सादर
वैवाहिक सम्बन्ध अति मधुर सम्बन्ध है.इस की गरिमा को दोनों ही पक्षों द्वारा सावधानी और शालीनतापूर्वक निभाया जाना चाहिए.किसी भी प्रकार से किसी एक पक्ष की कटुता भी कड़वाहट उत्पन्न कर देती है.बेटा-बेटी दोनों बराबर हैं.अक्सर बेटे वाले अति करते दीखते हैं जो स्वीकार नहीं की जानी चाहिए.आपने ठीक ही कहा कि
"बेटी हूँ कोई ढोर डंगर नही
किसी के गले भी मढ दोगे
अब तो जो मेरे मन को भायेगा
वो ही जीवनसाथी बन पायेगा"
बहुत सुंदर कविता। बेटियों को यह स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए।
वर्ष का प्रत्येक दिन मातृशक्ति के पूजन का दिन हो।
सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं।
सुपर्ब!! वाह!!
बहुत गहन रचना..
बहुत उम्दा...
महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
बेटियों को भी भाल का चन्द्र बनना होगा।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
आज के दिन को सार्थक करती रचना।
बेहद सुन्दर अभिव्यक्तियों से भरी कविता, इस महिला दिवस से शुरू होकर सदियों तक आपकी कलम के जौहर यू ही बिखरते रहें इन्ही शुभकामनाओ के साथ
आज तो बेटी कहती है…………
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मै जिसे लाऊँ बस
उसे स्वीकार कर लेना
ekdam sahi ,disha badal gayi hai hawao ki kya kare ,badhai mahila divas ki aapko .
बदलते समय के साथ चलने की आशा और प्रेरना देती रचना के लिये बधाई।
लाजवाब है संवाद .... सच है आज न पिता और न बेटी, किसी को झुकने की जरूरत नहीं है ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति..:)
वन्दना जी, पहली बार आपके ब्लाग पर आई हूँ, पर आपकी रचनाओं नें मन मोह लिया। काश बेटियों की आवाज हर पिता को सुनाई दे..........
रचनाकार पर आकर मेरी कविता पढ़ने और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद..।
bitiya ho gai sayani.
sach ho uski waani
आज ऐसी सोच ही दहेज जैसी समस्यायों से मुक्ति दिला सकती है ..
kafi achhi hai aapki laenain bilkul aaj k waqt ki soch lagti hain kash aisa haqeet ho pata par hoga kabi to hoga
kafi achhi hai aapki laenain bilkul aaj k waqt ki soch lagti hain kash aisa haqeet ho pata par hoga kabi to hoga
kafi achhi hai aapki laenain bilkul aaj k waqt ki soch lagti hain kash aisa haqeet ho pata par hoga kabi to hoga
kafi achhi hai aapki laenain bilkul aaj k waqt ki soch lagti hain kash aisa haqeet ho pata par hoga kabi to hoga
होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
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