स्वादहीन फ़ीका बासी खाना लगती है ज़िन्दगी
जब तक कि रूह के चौबारे पर ना उतरती है ज़िन्दगी
ये सब्ज़ियों के पल पल बदलते स्वाद मे उतरती है ज़िन्दगी
जब तक कि आत्मिक स्वाद को ना चखती है ज़िन्दगी
ये देवताओं सा अच्छा बुरा फ़ल देती है ज़िन्दगी
जब तक कि देवाधिदेव से ना मिलती है ज़िन्दगी
ये दिवास्वप्न सा भ्रमित करती है ज़िन्दगी
जब तक कि समाधिस्थित ना होती है ज़िन्दगी
ये अवसान मे भी बहुत उलझती है ज़िन्दगी
जब तक कि गरल को भी न अमृत समझती है ज़िन्दगी
ये भोर को भी अवसान समझती है ज़िन्दगी
जब तक कि जीने का मर्म ना समझती है ज़िन्दगी
ये संसार के झूठे मायाजाल मे उलझती है ज़िन्दगी
जब तक कि नीम के औषधीय गुण ना समझती है ज़िन्दगी
33 टिप्पणियां:
जब तक रूह के चौबारे पर ना उतरती है जिन्दगी ...
बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
ये सब्ज़ियों के पल पल बदलते स्वाद मे उतरती है ज़िन्दगीजब तक कि आत्मिक स्वाद को ना चखती है ज़िन्दगी
zindagi ke her canvas se gujarti rachna
Bahut khoob.
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क्या ब्लॉगिंग को अभी भी प्रोत्साहन की आवश्यकता है?
वाह....बहुत सुन्दर पोस्ट.....ये जिंदगी....बहुत खूब |
पूरी जिंदगी का दर्शन, फलसफा समझा गयी कविता.. बेहतरीन !
वाकई, जिंदगी का यह रुप भी हमें पसंद आ गया!....बहूत खूब वंदना!
स्वास्थ्य पुनः लौटता है।
फीकी जिंदगी स्वादहीन रसहीन होती है इसमें कोई शक नहीं है ... बढ़िया प्रस्तुति...
ये भोर को भी अवसान समझती है ज़िंदगी,
जब तक कि जीने का मर्म ना समझती है ज़िंदगी।
आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत यह ग़ज़ल बहुत सुंदर बन पड़ी है।
दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
ये दिवास्वप्न सा भ्रमित करती है ज़िन्दगी
जब तक कि समाधिस्थित ना होती है ज़िन्दगी
क्या बात है...सच लिखा है..ज़िन्दगी के बारे में
ये संसार के झूठे मायाजाल मे उलझती है ज़िन्दगी
जब तक कि नीम के औषधीय गुण ना समझती है ज़िन्दगी..
क्या बात है जिंदगी की आपने तो बहुत ही बखुबी परिभाषा दी है...सुंदर गुढ़ रहस्यों से भरी सुंदर रचना।
ये देवताओं सा अच्छा बुरा फ़ल देती है
ज़िन्दगीजब तक कि देवाधिदेव से ना मिलती है ज़िन्दगी...
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गजल का प्रयोग सफल रहा!
बधाई!
ये देवताओं सा अच्छा बुरा फ़ल देती है
ज़िन्दगीजब तक कि देवाधिदेव से ना मिलती है ज़िन्दगी...
--
गजल का प्रयोग सफल रहा!
बधाई!
जीवन के सफर में अनुभवों का संकलन...
जीवन के रहष्य को बड़े तरतीब से समझाने का प्रयत्न।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 12 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
ज़िन्दगी का हर रंग समेटे है आपकी रचना .....बहुत सुंदर प्रस्तुति...
जिन्दगी के विभिन्न रंग न हो गतो वो नीरस हो जाएगी..
सीधी सपाट जिन्दगी भी क्या कोई जिन्दगी होती है..
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क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??
ज़िन्दगी को नए ढंग से परिभाषित किया है आपने...बधाई स्वीकारें...
नीरज
प्रिय वंदना जी,
बहुत ही बढ़िया पोस्ट है |
उम्दा शब्दों का इस्तेमाल किये हैं
बहुत बहुत धन्यवाद|
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एक मजेदार कविता के लिए यहाँ आयें |
www.akashsingh307.blogspot.com
अरे वाह ! जीवन की गूढ़ गुत्थियों की कितनी सुन्दर मीमांसा कर डाली आपने ! आज तो दार्शनिक मूड में नज़र आ रही हैं ! गहन गंभीर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
जब तक की जीवन का मर्म नहीं समझती है जिंदगी ...
मुख्य बात यही है ....जब तक जीवन को समझा नहीं , शिकवे , शिकायतें , नाराजगी खुद से भी और उस ऊपर वाले से भी बनी रहती है ...
सुन्दर !
बहुत गहरी..
आपने तो जिंदगी को समेट लिया. बड़ा मुश्किल है आजकल इस प्रकार जिंदगी को निरख पाना.
Didi,
padkar kaafi accha lga
dhanybaad..
बेहतरीन रचना
जीवन दर्शन से रूबरू करवाती हुई
jingi ko aayina dikha diya. sunder abhivyakti.
ये सब्ज़ियों के पल पल बदलते स्वाद मे उतरती है ज़िन्दगीजब तक कि आत्मिक स्वाद को ना चखती है ज़िन्दगी
bahut hi achchhi rachna vandana ji .dil khush ho gaya .
आद्ध्यात्मिक रूप से बहुत उच्च कोटि की रचना ..पर काव्यात्मक रूप से उतना प्रभावशाली नही ...क्षमा चाहता हूँ.
ज़िन्दगी के रंग जैसे देखो वैसे ही लगते हैं सुन्दर रचना। बधाई।
ज़िन्दगी का हर रंग समेटे है आपकी रचना .....बहुत सुंदर प्रस्तुति...
लाजबाब ,बेहतरीन,उत्कृष्ट अब और क्या कहूँ ,कहा नहीं जा रहा.
'जब तक कि समाधि स्थित ना होती है जिंदगी' कहकर तो आप सभी की समाधि ही लगवा देंगीं,यदि गहराई से यह बात समझ लें तो.
एक और रहस्यवाद और दूसरी ठेठ शब्दों में जिन्दगी की कहानी कह देना, और सीधा सा जवाब जो दिल में आया लिख दिया, क्या ख़ूबसूरती है? सच में भौतिक ख़ूबसूरती के साथ दिल की ख़ूबसूरती, सच में ........... दिल का फलसफा कह दिया.
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