मौन की भाषा
अश्रुओं की वेदना
और मिलन ?
कैसे विपरीत ध्रुव
कौन से क्षितिज
पर मिलेंगे
ध्रुव हमेशा
अलग ही रहे हैं
अपने अपने
व्योम और पाताल में
सिमटे सकुचाये
मगर मिलन की आस
ये तो मिलन का
ध्रुवीकरण हो जायेगा ना
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
चलो हम चलें
शायद तब कोई
नयी कविता जन्मे
और हमें
नए आयाम दे
अश्रुओं की वेदना
और मिलन ?
कैसे विपरीत ध्रुव
कौन से क्षितिज
पर मिलेंगे
ध्रुव हमेशा
अलग ही रहे हैं
अपने अपने
व्योम और पाताल में
सिमटे सकुचाये
मगर मिलन की आस
ये तो मिलन का
ध्रुवीकरण हो जायेगा ना
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
चलो हम चलें
शायद तब कोई
नयी कविता जन्मे
और हमें
नए आयाम दे
38 टिप्पणियां:
आंसू और मौन ....एक कष्टकारक मित्रता है जो अक्सर दुर्लभ है अल्पना जी !शुभकामनायें !
विपरीत ध्रुवों का मिलन ..
गहन भाव लिए हुए सुंदर कविता
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
लीजिये वंदना जी हम तो खामोश हैं ,आपकी नई कविता के इंतजार में और आपके मेरे ब्लॉग पर आने के इंतजार में भी .शायद एक बेहतरीन टिपण्णी रच आप एक नया इतिहास रचें.
खूबसूरत कविता... प्यार के भाषा में रची गई कविता नया इतिहास गढ़ रही है...
अति सुन्दर
मौन से बहुत शब्द फूटते हैं।
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
चलो हम चलें
शायद तब कोई
नयी कविता जन्मे
और हमें
नए आयाम दे ...
बहुत ख़ूबसूरत कल्पना .... अच्छे भाव बढ़िया रचना .... बधाई
तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने ... aur yah tabhi sambhaw hai
khamoshiyan sab kuchh kah deti hai..:)
गहन भाव. सुन्दर अभिव्यक्ति.
शब्दरहित ये पोस्ट कुछ अलग सी....बहुत सुन्दर |
बहुत सुन्दर कविता...ध्रुओं के मिलन से उत्पन्न कविता का इंतजार रहेगा..
aansu jab mukhar ho jate hain...aankhon se chupchap kavita bah nikalti hai...
namskar vandana ji...kya kahun...bahut hi achhai lagi aapki kavita...
वन्दना जी अगर वर्तमान कविता लेखन की समीक्षा की जाय तो इस रचना को किसी भी प्रकार उपेक्षित नहीं किया जा सकता है. रहस्यवाद के साथ -साथ मानवीकरण और मनोसंवेदानाओं का योग समकालीन कविता में नहीं दिखता है, ये रचना सिर्फ उम्दा नहीं कही जा सकती .............अज्रसता, अनुनाद, अनुभूति ................ अनाशक्ति इन सब को मिला दें तो तब इन शब्दों की सृष्टि संभव हो सकती है. रहस्यवाद का यह रूप समकालीन कविता में एक नया प्रयोग है. लेकिन यह प्रयोग कविता को अदभुत सौन्दर्य प्रदान कर रहा है. इस प्रयोगात्मक रचना के लिए साधुवाद!
वन्दना जी अगर वर्तमान कविता लेखन की समीक्षा की जाय तो इस रचना को किसी भी प्रकार उपेक्षित नहीं किया जा सकता है. रहस्यवाद के साथ -साथ मानवीकरण और मनोसंवेदानाओं का योग समकालीन कविता में नहीं दिखता है, ये रचना सिर्फ उम्दा नहीं कही जा सकती .............अज्रसता, अनुनाद, अनुभूति ................ अनाशक्ति इन सब को मिला दें तो तब इन शब्दों की सृष्टि संभव हो सकती है. रहस्यवाद का यह रूप समकालीन कविता में एक नया प्रयोग है. लेकिन यह प्रयोग कविता को अदभुत सौन्दर्य प्रदान कर रहा है. इस प्रयोगात्मक रचना के लिए साधुवाद!
बहुत ख़ूबसूरत कल्पना|धन्यवाद|
बहुत सुंदर।
गहरे भाव लिये हे आप की यह रचना, धन्यवाद
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
Vandnaa dii...bahut hii saarthak rchnaa..pr ke bahutt se vichaar aane lge dimaag me
bahut achi rchnaa
take care
तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ ...
इसी आयाम में जन्म लेती रही कवितायेँ ...
बहुत सुन्दर !
bhavnaon ki abhivyakti man ko banchati huyi mohak lagi . sadhuvad ji
मौन के स्वर अंतस्थल तक जाते हैं
नयापन लिए हुए बहुत बढ़िया रचना!
विचारों के अम्बर को स्पर्श करती है ये रचना एक नई आस नई उड़ान लिए ......
अक्षय-मन
विचारों के अम्बर को स्पर्श करती है ये रचना एक नई आस नई उड़ान लिए ......
अक्षय-मन
ati sundar
nice
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
aise hi rachnege ithas....
नई बहार सी सुन्दर कविता
बधाई
रचना
आदरणीय वंदना जी
नमस्कार !
गहरे भाव
बहुत ख़ूबसूरत बढ़िया रचना .... बधाई
तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ ...
...
बहुत सुन्दर !शुभकामनायें !
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
वाह ... बहुत खूब ।
आपके पास मुहब्बत की गहरी समझ है आपकी अछान्दस रचनाओं में अनुभूति की प्रामाणिकता बरबस अपनी ओर खींचती है.
हर इक को नही होता इर्फ़ान मुहब्बत का,
हर इक मुहब्बत की जागीर नहीं मिलती.
आँसुओं की शिद्दत का बयान करने में अल्फ़ाज़ कहां साथ देते हैं बस मौन ही तो जो कारगर होता है.
बयान ज़ारी रहे.
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़्यादा. आमीन.
गहन भाव लिए हुए सुंदर कविता !
namaskar ji
blog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
ekdam pragatisheel kavita.. waah
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
वाह बहुत सुन्दर ....अच्छी भावाभिव्यक्ति
बहुत अच्छा
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