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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

एक नया इतिहास रचने

मौन की भाषा
अश्रुओं की वेदना
और मिलन ?
कैसे विपरीत ध्रुव
कौन से क्षितिज
पर मिलेंगे
ध्रुव हमेशा
अलग ही रहे हैं
अपने अपने
व्योम और पाताल में
सिमटे सकुचाये
मगर मिलन की आस
ये तो मिलन का
ध्रुवीकरण हो जायेगा ना
बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
चलो हम चलें
शायद तब कोई
नयी कविता जन्मे
और हमें
नए आयाम दे

38 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

आंसू और मौन ....एक कष्टकारक मित्रता है जो अक्सर दुर्लभ है अल्पना जी !शुभकामनायें !

रजनीश तिवारी ने कहा…

विपरीत ध्रुवों का मिलन ..
गहन भाव लिए हुए सुंदर कविता

Rakesh Kumar ने कहा…

बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ

लीजिये वंदना जी हम तो खामोश हैं ,आपकी नई कविता के इंतजार में और आपके मेरे ब्लॉग पर आने के इंतजार में भी .शायद एक बेहतरीन टिपण्णी रच आप एक नया इतिहास रचें.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

खूबसूरत कविता... प्यार के भाषा में रची गई कविता नया इतिहास गढ़ रही है...

राजीव तनेजा ने कहा…

अति सुन्दर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मौन से बहुत शब्द फूटते हैं।

समय चक्र ने कहा…

मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने
चलो हम चलें
शायद तब कोई
नयी कविता जन्मे
और हमें
नए आयाम दे ...

बहुत ख़ूबसूरत कल्पना .... अच्छे भाव बढ़िया रचना .... बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने ... aur yah tabhi sambhaw hai

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

khamoshiyan sab kuchh kah deti hai..:)

Kunwar Kusumesh ने कहा…

गहन भाव. सुन्दर अभिव्यक्ति.

बेनामी ने कहा…

शब्दरहित ये पोस्ट कुछ अलग सी....बहुत सुन्दर |

आशुतोष की कलम ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता...ध्रुओं के मिलन से उत्पन्न कविता का इंतजार रहेगा..

Vijuy Ronjan ने कहा…

aansu jab mukhar ho jate hain...aankhon se chupchap kavita bah nikalti hai...

namskar vandana ji...kya kahun...bahut hi achhai lagi aapki kavita...

आशुतोष पाण्डेय ने कहा…

वन्दना जी अगर वर्तमान कविता लेखन की समीक्षा की जाय तो इस रचना को किसी भी प्रकार उपेक्षित नहीं किया जा सकता है. रहस्यवाद के साथ -साथ मानवीकरण और मनोसंवेदानाओं का योग समकालीन कविता में नहीं दिखता है, ये रचना सिर्फ उम्दा नहीं कही जा सकती .............अज्रसता, अनुनाद, अनुभूति ................ अनाशक्ति इन सब को मिला दें तो तब इन शब्दों की सृष्टि संभव हो सकती है. रहस्यवाद का यह रूप समकालीन कविता में एक नया प्रयोग है. लेकिन यह प्रयोग कविता को अदभुत सौन्दर्य प्रदान कर रहा है. इस प्रयोगात्मक रचना के लिए साधुवाद!

Ashutosh Pandey ने कहा…

वन्दना जी अगर वर्तमान कविता लेखन की समीक्षा की जाय तो इस रचना को किसी भी प्रकार उपेक्षित नहीं किया जा सकता है. रहस्यवाद के साथ -साथ मानवीकरण और मनोसंवेदानाओं का योग समकालीन कविता में नहीं दिखता है, ये रचना सिर्फ उम्दा नहीं कही जा सकती .............अज्रसता, अनुनाद, अनुभूति ................ अनाशक्ति इन सब को मिला दें तो तब इन शब्दों की सृष्टि संभव हो सकती है. रहस्यवाद का यह रूप समकालीन कविता में एक नया प्रयोग है. लेकिन यह प्रयोग कविता को अदभुत सौन्दर्य प्रदान कर रहा है. इस प्रयोगात्मक रचना के लिए साधुवाद!

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत कल्पना|धन्यवाद|

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर।

राज भाटिय़ा ने कहा…

गहरे भाव लिये हे आप की यह रचना, धन्यवाद

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
Vandnaa dii...bahut hii saarthak rchnaa..pr ke bahutt se vichaar aane lge dimaag me
bahut achi rchnaa
take care

वाणी गीत ने कहा…

तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ ...
इसी आयाम में जन्म लेती रही कवितायेँ ...
बहुत सुन्दर !

udaya veer singh ने कहा…

bhavnaon ki abhivyakti man ko banchati huyi mohak lagi . sadhuvad ji

M VERMA ने कहा…

मौन के स्वर अंतस्थल तक जाते हैं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नयापन लिए हुए बहुत बढ़िया रचना!

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

विचारों के अम्बर को स्पर्श करती है ये रचना एक नई आस नई उड़ान लिए ......
अक्षय-मन

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

विचारों के अम्बर को स्पर्श करती है ये रचना एक नई आस नई उड़ान लिए ......
अक्षय-मन

बेनामी ने कहा…

ati sundar
nice
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

Dinesh pareek ने कहा…

अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

विभूति" ने कहा…

aise hi rachnege ithas....

Rachana ने कहा…

नई बहार सी सुन्दर कविता
बधाई
रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय वंदना जी
नमस्कार !
गहरे भाव
बहुत ख़ूबसूरत बढ़िया रचना .... बधाई

amrendra "amar" ने कहा…

तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ ...
...
बहुत सुन्दर !शुभकामनायें !

सदा ने कहा…

बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ

वाह ... बहुत खूब ।

subhash Bhadauria ने कहा…

आपके पास मुहब्बत की गहरी समझ है आपकी अछान्दस रचनाओं में अनुभूति की प्रामाणिकता बरबस अपनी ओर खींचती है.

हर इक को नही होता इर्फ़ान मुहब्बत का,
हर इक मुहब्बत की जागीर नहीं मिलती.

आँसुओं की शिद्दत का बयान करने में अल्फ़ाज़ कहां साथ देते हैं बस मौन ही तो जो कारगर होता है.
बयान ज़ारी रहे.
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़्यादा. आमीन.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

गहन भाव लिए हुए सुंदर कविता !

OM KASHYAP ने कहा…

namaskar ji
blog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon

दीपक 'मशाल' ने कहा…

ekdam pragatisheel kavita.. waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बस तुम भी खामोश रहो
मैं भी खामोश चलूँ
संग संग नि:संग होकर
एक नया इतिहास रचने

वाह बहुत सुन्दर ....अच्छी भावाभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा