नज़र उनकी, ज़ुबां उनकी, तअज्जुब है कि इस पर भी. नज़र कुछ और कहती है, ज़ुबां कुछ और कहती है.
आप मुहब्बत नहीं समझतीं ये ग़लत बयानी है आपकी वंदनाजी. आपकी नज़र तो कुछ और ही कहती है. अगर आपको मुहब्बत की समझ नहीं होती तो इतनी गहराई से आप इस जज़्बे बयान नहीं कर सकती थी. मैने इस से पूर्व की अपनी टिप्पणी में आपकी इस समझ को सराहा था ऐसा कैसे हो सकता है?
बकौले मीरतकी मीर,
सारे आलम पे हूँ मैं छाया हुआ, मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.
किसी को कैसे अपना बनाया जाता है सिखा दे कोई हमे तो हर किसी ने हर कदम धोखा ही दिया .. झूठी जिंदगियां जीने की दौर में इतने साफगोई वंदना जी ....क़यामत हो जाएगी !
क्या कल मैं आपसे ही मिला था.... ? या वो वंदना जी कोई और थीं...क्षमा प्रार्थी हूँ अगर आपही हैं तो एक बात बिंदास बोलूँगा ...की कल वाली वंदना जी एकदम अपनी सी लगी ! कहीं से भी भारी भरकम ब्लोगेर नही....जरा भी डर नही लगा बात करते हुए उनसे !...... और अगर आप नही है तो...आपके ब्लाग पर आकर किसी और की तारीफ करने के जुर्मे में आप जो चाहें वो सजा मुझे दे सकती हैं....सर झुककर स्वीकार करलूँगा
मुहब्बत तो सिर्फ की जाती है उससे क्या मिला इसका हिसाब नहीं रखा जाता क्योंकि उसका काम सिर्फ देना होता है और मिलता तो उसको वही है जो उसकी किस्मत में होता है . वैसे ऐसा नहीं है प्यार गर प्राणी समझकर बांटा है तो बदले में प्रेम ही मिलता है चाहे मानव हो, पशु हो या पक्षी हो. उसको अपेक्षाओं से हम मुक्त रखेंगे तो कष्ट न होगा.
ह्रदय की गहराइयों तक पहुँचने में समर्थ ...सुन्दर रचना ................................................................................ आदरणीया वंदना जी , कृपया मेरे ब्लाग पर दुबारा आने का कष्ट करें क्योंकि गलती से अधूरी रचना ही पोस्ट हो पायी थी , अब सुधार कर दिया है |
Patjhar me gulab ka ugna, mohabbat ka hona aur kisi ke apnatwa mein khud ko khona...achha lagta hai... par jeevan ka hai yah saar...sab sapne bekaar... bahut sacchi baat likhi Vandana ji aapne..
34 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना जीवन की सच्चाई की बात....
उम्मीद के खर पतवार
हटा दो और
बो दो बीज
मुहब्बत का
पथरीली हो गर धरती
तो चुन लो
सारे पत्थर और
सींच दो नेह के जल से
गुलाब
अपने आप खिलेगा .
:):)
खूबसूरत अभिव्यक्ति
मेरे ब्लौग 'बात का बतंगड' पर आइए....यहां भी मैने अपनी वेदना ही व्यक्त की है!
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..आभार
बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना ...
यही तो है ज़िन्दगी!
VERY NICE.
समय सबसे न्याय करता है।
bhtrin drd bhri chubhan kaa ehsaas bhtrin prstuti ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajasthan
bhtrin drd bhri chubhan kaa ehsaas bhtrin prstuti ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajasthan
bhtrin drd bhri chubhan kaa ehsaas bhtrin prstuti ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajasthan
नज़र उनकी, ज़ुबां उनकी,
तअज्जुब है कि इस पर भी.
नज़र कुछ और कहती है,
ज़ुबां कुछ और कहती है.
आप मुहब्बत नहीं समझतीं ये ग़लत बयानी है आपकी वंदनाजी.
आपकी नज़र तो कुछ और ही कहती है.
अगर आपको मुहब्बत की समझ नहीं होती तो इतनी गहराई से आप इस जज़्बे बयान नहीं कर सकती थी.
मैने इस से पूर्व की अपनी टिप्पणी में आपकी इस समझ को सराहा था ऐसा कैसे हो सकता है?
बकौले मीरतकी मीर,
सारे आलम पे हूँ मैं छाया हुआ,
मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.
मुस्तनद(प्रमाणित,authenticted)
बंजर में गुलाब खिलाने की यह ख्वाहिश इस प्रक्रिया का पहला पड़ाव ही तो है ...
बहुत सुन्दर
मोहब्बत में अहं बिलकुल ही गल जाता है
मिश्री का डला जैसे जल में घुल जाता है
अहं गल गया तो रुसवाई कैसी
आपके तजुर्बे पर हंसाई कैसी.
बुरा न मानियेगा वंदना जी,बस यूँ ही तुकबंदी कर डाली है.आपके जख्म भी तो आखिर फूलों ने ही दिए हैं.फिर काँटों से क्या शिकायत.
maine to nahi diya
बेहतरीन भाव!
सुंदर कविता| कोमल भाव| बधाई स्वीकार करें|
आपने सोंचने पर मजबूर कर दिया ....शुभकामनायें आपको !
किसी को कैसे
अपना बनाया जाता है
सिखा दे कोई
हमे तो हर किसी ने
हर कदम धोखा ही दिया
..
झूठी जिंदगियां जीने की दौर में इतने साफगोई वंदना जी ....क़यामत हो जाएगी !
किसी को कैसे
अपना बनाया जाता है
सिखा दे कोई
हमे तो हर किसी ने
हर कदम धोखा ही दिया
सच है , प्यार की तलाश में कामयाब होना मुश्किल होता है !
कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नही मिलता !
क्या कल मैं आपसे ही मिला था.... ? या वो वंदना जी कोई और थीं...क्षमा प्रार्थी हूँ अगर आपही हैं तो एक बात बिंदास बोलूँगा ...की कल वाली वंदना जी एकदम अपनी सी लगी ! कहीं से भी भारी भरकम ब्लोगेर नही....जरा भी डर नही लगा बात करते हुए उनसे !......
और अगर आप नही है तो...आपके ब्लाग पर आकर किसी और की तारीफ करने के जुर्मे में आप जो चाहें वो सजा मुझे दे सकती हैं....सर झुककर स्वीकार करलूँगा
आपकी इस कविता पे इतना ही कहना है, ..
जिसको चाहा वही मिला होता
तो मुहब्बत मज़ाक़ हो जाती
बहुत सुन्दर और भाव प्रणव रचना!
--
30 अप्रैल को हिन्दी भवन, दिल्ली में सभी ब्लॉगर साथियों से मिलना सुखद संयोग रहा।
मोहब्बत का मतलब तो समर्पण होता है..जब सब कुछ उसे समर्पित फिर धोखा कैसा??..
प्रेमांकुर तो किसी भी जमीं पर फुट सकता है..
कविता के भाव सुन्दर हैं..
आशुतोष की कलम से....: धर्मनिरपेक्षता, और सेकुलर श्वान : आयतित विचारधारा का भारतीय परिवेश में एक विश्लेषण:
बहुत खूब .....सच्ची बात.
मुहब्बत तो सिर्फ की जाती है उससे क्या मिला इसका हिसाब नहीं रखा जाता क्योंकि उसका काम सिर्फ देना होता है और मिलता तो उसको वही है जो उसकी किस्मत में होता है . वैसे ऐसा नहीं है प्यार गर प्राणी समझकर बांटा है तो बदले में प्रेम ही मिलता है चाहे मानव हो, पशु हो या पक्षी हो. उसको अपेक्षाओं से हम मुक्त रखेंगे तो कष्ट न होगा.
ये सब सच है .. पर फिर भी प्यार जिंदा है सदियों से ऐसे ही चलता रहेगा ... लाजवाब ...
उम्मीद के खर पतवार
हटा दो और
बो दो बीज
मुहब्बत का
बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।
'हमें तो हर जगह
ज़मीन बंज़र ही मिली '
ह्रदय की गहराइयों तक पहुँचने में समर्थ ...सुन्दर रचना
................................................................................
आदरणीया वंदना जी ,
कृपया मेरे ब्लाग पर दुबारा आने का कष्ट करें क्योंकि गलती से अधूरी रचना ही पोस्ट हो पायी थी , अब सुधार कर दिया है |
bhut hi acchi rachna...
खूबसूरत, ह्रदय की गहराइयों तक पहुँचने में समर्थ|
खूबसूरत गीत...सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
Patjhar me gulab ka ugna,
mohabbat ka hona aur kisi ke apnatwa mein khud ko khona...achha lagta hai...
par jeevan ka hai yah saar...sab sapne bekaar...
bahut sacchi baat likhi Vandana ji aapne..
Wah vandna jee.. Aapne to sachme rula hi diya... Bahut hi umda abhivyakti...
kabhi humare blog bhi aayen.. Avinash001.blogspot.com
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