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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

जहाँ बाड खेत को खुद है खाती


ये जग झूठा
नाता झूठा
खुद का भी
आपा है झूठा
फिर सत्य माने किसको

मन बंजारा
भटका फिरता
कोई ना यहाँ
अपना दिखता
फिर अपना बनाए किसको

कैसी मची है
आपाधापी
कोई नहीं
किसी का साथी
सब मुख देखे की लीला है
फिर दुखडा सुनायें किसको



जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको 

38 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

सार्थक व सटीक लेखन ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको

सटीक कहा है ..बाड़ ही खेत खाने में लगी हुई है ..

Anupama Tripathi ने कहा…

वहाँ किससे बचाएं किसको
वंदना जी उदास मन से लिखी ..गहन अभिव्यक्ति है ....
आस-पास घटित होती हुई घटनाएँ चाह कर भी खुश होने भी तो नहीं देतीं ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अपना घर हम किसके हवाले कर निश्चिन्त हो जायें हम।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मन बंजारा
भटका फिरता
कोई ना यहाँ
अपना दिखता
फिर अपना बनाए किसको
...prashn sukhe patte kee tarah idhar se udhar udta ja raha hai...

संजय भास्‍कर ने कहा…

- बिलकुल दुरुस्त फ़र्माया है !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

छोटी कविता और उसका बेहतर प्रस्‍तुतिकरण पसंद आया।

Anita ने कहा…

जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको

जो यह पूछ रहा है बस वही बचाने योग्य है बल्कि वह तो बचा ही हुआ है... बाकि तो सब खेल है..

Sunil Kumar ने कहा…

यही तो समस्या है कैसे बचाएं सुंदर रचना ......

बेनामी ने कहा…

शानदार.....किसको कहें अपना........बहुत खूब|

सदा ने कहा…

कल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....

shikha varshney ने कहा…

बहुत मुश्किल है ...
सटीक लेखन.

रविकर ने कहा…

वाह!!! बहुत बहुत बधाई ||

प्रभावी कविता ||

सुन्दर प्रस्तुति ||

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आपने समस्या तो गम्भीर बतायी है इसका उपाय है केवल अपने पे भरोसा करो।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

brhtreen prstuti vandna ji......

rashmi ravija ने कहा…

जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको

बढ़िया अभिव्यक्ति

Nirantar ने कहा…

सामंजस्य बिठाओ
नहीं तो विद्रोह करो
या फिर सहन करो

Atul Shrivastava ने कहा…

मौजूदा समय में प्रासंगिक रचना।

अनुपमा पाठक ने कहा…

सच बड़ी ही विकत स्थिति है!

मनोज कुमार ने कहा…

कमाल की उपमा दी है आपने!

कुमार संतोष ने कहा…

Sunder
Chand shabdo mein kaafi kuch keh diya.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Sunder...Sadhi huyi PAnktiyan...

कुमार संतोष ने कहा…

Vandana ji bahut hi sunder rachna hamesha ki tarah..

वाणी गीत ने कहा…

जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको ...
आम इंसान इसी दुविधा /चिंता से गुजरता रहता है!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आज मचाई मंच पर, कुछ लिंकों की धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

छोटी किन्तु सशक्त बेहतरीन रचना
सुंदर पोस्ट,...

मन के - मनके ने कहा…

किसको कहें,अपना यहां,हर ओर यही अनिश्चितिता है.
अक्सर ही ऐसा ही लगता है.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

"सब मुह देखे की लीला है"

सुन्दर रचना आदरणीय वंदना जी...
सादर बधाई...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सटीक......बहुत खूब

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सारगर्भित और सटीक प्रस्तुति..बहुत सुंदर

Maheshwari kaneri ने कहा…

सार्थक व सटीक रचना..सुन्दर..

Brijendra Singh ने कहा…

आज कल की घटनाओं को शब्दों का बेहतरीन जामा पहनाया है आपने..

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक, सामयिक, सराहनीय , आभार.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

छोटी-छोटी पंक्तियों और प्रवाह ने रचना को ऊँचाइयों पर ला दिया.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

mann hee sab se bada lutera hai!

Mamta Bajpai ने कहा…

sahi kaha ajkal ese hi halat hai

Rakesh Kumar ने कहा…

ये जग झूठा
नाता झूठा
खुद का भी
आपा है झूठा
फिर सत्य माने किसको


अब आपके हृदय में वैराग्य का संचार होता ही जा रहा है,तो जग झूंठा और नाता झूंठा लगना ही है न. शिव भी तो पार्वती से कहते हैं

'उमा कहूँ मैं अनुभव अपना
सत् हरि भजन जगत सब सपना'.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,वंदना जी.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कैसी मची है
आपाधापी
कोई नहीं
किसी का साथी
सब मुख देखे की लीला है
फिर दुखडा सुनायें किसको ...

सच कहा है ... ये दुनिया पता नहीं क्या से क्या होती जा रही है ... झूठा स्वप्न हो जैसे ...