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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

खाली बैठी औरतें

सुनिए
अपनी नाराज़गी की पुड़िया बनाइये
और गटक जाइए
गए वो ज़माने
जब कोल्हू के बैल सी जुती दिखाई देती थी
दम भर न जो साँस लेती थी
साहेब
डाल लीजिये आदत अब
हर गली, हर मोड़, हर नुक्कड़ पर
दिख जायेंगी आपको खाली बैठी औरतें
जानते हैं क्यों?
जाग गयी हैं वो
न केवल अपने अधिकारों के प्रति
बल्कि अपने प्रति भी
पहचान चुकी हैं अपना अस्तित्व
और उसकी उपयोगिता भी
आपको अब सिर्फ शाहीन बाग़ ही नहीं
हर घर में मिल जायेंगी
खाली बैठी मौन विद्रोह करती औरतें
इनकी खामोशी की गूँज से
जो थरथरा उठा है आपका सीना
जाहिर कर रहा है
परिवर्तन की बयार ने हिलानी शुरू कर दी हैं चूलें
एक बात और नोट कर लें अपनी नोटबुक में
आने वाले कल में
होगी बागडोर इन्हीं खाली बैठी औरतों के हाथों में
फिर वो आपका घर हो या सत्ता
शायद तब जानें आप
खाली बैठी औरतों की शक्ति को
जब मंगल के सीने पर पैर रख करेंगी यही ब्रह्माण्ड रोधन एक दिन
तब तक सीख लो
अपने गणित के डिब्बे को दुरुस्त करना
आज खाली बैठी औरतों ने बो दिए हैं बीज ख़ामोशी के
प्रतिध्वनियों की टंकार से एक दिन
जरूर काँपेगा आसमां का सीना...जान चुकी हैं वो
ये बात अब तुम भी न सिर्फ जान लो बल्कि मान भी लो ...


इस बार
ये खाली बैठी औरतें खेल रही हैं पिट्ठू
तुम्हारे अहम के पत्थर से
जीत निश्चित है ......

1 टिप्पणी:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सशक्त रचना. काश कि इन खाली औरतों की ताकत जल्दी ही लोग जान लें और मान लें.