वो आग ना मिली
जो जला सके मुझे
वो रेत ना मिली
जो दबा सके मुझे
वो पानी ना मिला
जो बहा सके मुझे
फिर कहो तुम
कैसे मिल गए
अब बह भी रही हूँ
दब भी रही हूँ
और जल भी रही हूँ
मगर अंतर्मन है कि
कभी राख होता ही नहीं
वहां की मिटटी अभी भी
सूखी है
किसी रेत में
आशियाँ बनता ही नहीं
जो जला सके मुझे
वो रेत ना मिली
जो दबा सके मुझे
वो पानी ना मिला
जो बहा सके मुझे
फिर कहो तुम
कैसे मिल गए
अब बह भी रही हूँ
दब भी रही हूँ
और जल भी रही हूँ
मगर अंतर्मन है कि
कभी राख होता ही नहीं
वहां की मिटटी अभी भी
सूखी है
किसी रेत में
आशियाँ बनता ही नहीं
24 टिप्पणियां:
जब तक जीवन है अन्तः जूझेगा।
bhut bhut hi sunder rachna...
सुंदर अभिव्यक्ति ...
vandana ji,
ret mein aashiyaan banta nahi...satya vachan!
विकट स्थिति ... भावमयी रचना
umda prastuti vandana ji .
किसी रेत में
आशियाँ बनता ही नहीं
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
किसी रेत में
आशियां बनता ही नहीं ...
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
सूक्ष्म आत्मा जब मोह-माया के बंधन में फंसती है तो स्थूल हो जाती है....इसके बाद ही वो स्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनकी ओर आपकी नज़्म के दूसरे हिस्से में इशारा किया गया है. अच्छी लगी ये नज़्म...बधाई!
---देवेंद्र गौतम
अंतर्मन कभी राख होता ही नहीं, भीगता भी नहीं... क्योकि शाश्वत है, भावपूर्ण कविता के लिये बधाई !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
किसी रेत में
आशियाँ बनता ही नहीं
बहुत सुन्दर ,भावमयी अभिव्यक्ति
वंदना जी,आपकी पहेली कैसे हल हो आप ही बताएं.
मेरी तो बस के बाहर है.
सुन्दर अभिव्यक्ति
किसी रेत में आशिया बनता नहीं
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
वंदना जी,
क्या बढ़िया लिखा है सच ही तो है....
फिर कहो तुम
कैसे मिल गए
अब बह भी रही हूँ
दब भी रही हूँ
और जल भी रही हूँ
आशु
संभव तो सबकुछ है जब कोई मिले ... बहुत खूब ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
bahut sunder
जीवन का यही तो विरोधाभाष है
बहुत कुछ कह रही हे आप की यह भावमयी कविता, धन्यवाद
सही है.. किसी का मिलना जीवन बदल सकता है और फिर भी स्थिर रख सकता है.. जीवन की बड़ी माया के आगे हमारी क्या बिसात...
आभार
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
अति सुन्दर...!
प्रेम के प्रवाह मे जलना दबना सब जीवन का अंग हो जाता है
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