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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

प्रियतमे !

प्रियतमे !






इतना कह कर 
सोच में पड़ा हूँ 
अब तुम्हें 
और क्या संबोधन दूं 
अब तुमसे 
और क्या कहूं 
मेरा तो मुझमे 
जो कुछ था 
सब इसी में समाहित हो गया 
मेरी जमीं 
मेरा आकाश 
मेरा जिस्म 
मेरी जाँ 
मेरी धूप 
मेरी छाँव 
मेरा जीवन 
मेरे प्राण 
मेरे ख्वाब 
मेरे अहसास 
मेरा स्वार्थ 
मेरा प्यार 
कुछ भी तो अब मेरा ना रहा 

जैसे सब कुछ समाहित है 
सिर्फ एक प्रणव में 
बस कुछ वैसे ही 
मेरा प्रणव हो तुम 

प्रियतमे !
कहो , अब और क्या संबोधन दूँ  तुम्हें 

16 टिप्‍पणियां:

Jai bhardwaj ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति। आभार।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut sundar.......

Unknown ने कहा…

umda rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत सोच .... प्रणव ( ये ओंकार ) बना रहे ....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

दिल से उठी एक पुकार में ही सारी भावनाएं समाहित हो गयी अब कहने को कुछ और नहीं..बहुत ही सुन्दर रचना...
:-)

kuldeep thakur ने कहा…

आप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
आप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
सूचनार्थ।

विभूति" ने कहा…

खुबसूरत अभिवयक्ति......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब मैं और तुम में भेद ही नहीं रहा तो संबोधन किसलिये.

Unknown ने कहा…

priye tumhari aas hai, jab tak ki saans hai.

Unknown ने कहा…

priye tumhari aas hai, jab tak ki saans hai.

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना ..

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !अच्छा भला प्यारा विरोधाभास मिठास से भरा !!

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !

Er. AMOD KUMAR ने कहा…

वंदना जी ,
अपने प्रियतम को आपने अति सुंदर शब्दों से सम्भोदित करते हुए अपने आप में एक बहुत ही सुंदर और अलग तरह की अदभुत कविता लिखी हैं। … सादर

Er. AMOD KUMAR ने कहा…

वंदना जी ,

अपने प्रियतम को आपने अति सुंदर शब्दों से सम्भोदित करते हुए अपने आप में एक बहुत ही सुंदर और अलग तरह की अदभुत कविता लिखी हैं।

… सादर