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रविवार, 10 मई 2020

विकल्पहीन होती है माँ

विकल्पहीन होती है माँ 
बच्चों की हसरतों के आगे 
भूल जाती है दर्दोगम अपना 
कर देती है खुद को किनारे 
अपनी चाहतों को मारे 
कि 
खुद को मारकर जीना जो सीख चुकी होती है 

तो क्या हुआ 
जो उम्र एक अवसाद बन गयी हो 
और जीवन असरहीन दवा 

ममता का मोल चुकाना ही होता है 
अपनी चाहतों को दबाना ही होता है 
कि
घुट घुटकर जीना ही बचता है जिसके सामने अंतिम विकल्प 
किसे कहे और क्या ? 
कौन समझता है यदि कह भी दे तो ?

ये तकाजों का दौर है 
जिसका जितना बड़ा तकाज़ा 
उसका उतनी जल्दी भुगतान 
मगर माँ 
वो क्या करे ?
कैसे और किससे करे तकाज़ा 
सूखी रेत सा झरना ही जिसकी नियति हो 

तो क्या हुआ 
जो रोती हो सिसकती हो अकेले में 
कि 
जड़त्व के सिद्धांत से वाकिफ है 
इसलिए नहीं चाहती 
विकल्पहीनता उतरे उनके हिस्से में 

जी जाना चाहती है 
अपने बच्चों के हिस्से की भी विकल्पहीनता 
कि 
विकल्प ही होते हैं उम्मीद का नया कोण 

इससे ज्यादा और क्या दे सकती है एक माँ अपने बच्चों को ......


8 टिप्‍पणियां:

Sunil "Dana" ने कहा…

कविता के शीर्षक ने सब कुछ बयां कर दिया । बहुत सुंदर रचना वंदना जी ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

माँ, सबसे छोटा शब्द मगर सम्पूर्णता के साथ....
सुन्दर अभिव्यक्ति

Jyoti Singh ने कहा…

बहुत ही सुंदर ,बधाई हो नमस्कार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सटीक. बहुत भावपूर्ण.

Sarita Sail ने कहा…

बढिब रचना

अजय कुमार झा ने कहा…

माँ तो फिर माँ होती है अकल्पनीय और अवर्णनीय भी। बड़ी ही खूबसूरती से पिरोया आपने दोस्त जी , हमेशा की तरह

Daisy ने कहा…

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