पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

हाँ, नपुंसक ही है वो


तुम नहीं सुधरोगी
कोई सुधारना चाहे तब भी नहीं
कब खुद को पहचानोगी?
कब खुद के लिए जीना सीखोगी?
क्या सारा स्वाभिमान बेच दिया
एक नपुंसक के हाथों ?
हाँ, नपुंसक ही है वो
जो आधी रात वस्त्रहीन कर
घर से निकाल देता है
फिर भी नहीं जागता तुम में तुम्हारा स्वाभिमान ?
क्यों कठपुतली बन खुद को नचा रही हो ?
कोई तेज़ाब से झुलसा रहा है
कोई आग लगा रहा है
मगर तुम
तुमने ठानी हुई है गुलामी
आखिर कब तक नहीं तोडोगी गुलामी की जंजीरें?
गया वक्त गिडगिडाने का
नहीं पसीजा करते उनके दिल
सच मानो
दिल नहीं होते उनके अन्दर
और पत्थर कभी पिघला नहीं करते
मानो इस सत्य को
जागो, उठो और करो प्रयाण
कि दुर्गा को पूजने भर से नहीं बन जाओगी तुम दुर्गा
काली बनने के लिए जरूरी है
तुम्हारा आत्मोत्सर्ग
जरूरी है गलत के खिलाफ बिगुल
सुनो
हमारे कह देने भर से
तुम्हारे साथ खड़े हो जाने भर से
तुम्हारे लिए आवाज़ उठा देने भर से
नहीं मिलेगा तुम्हें न्याय
उसके लिए पहल का परचम तो तुम्हें ही लहराना पड़ेगा
एक कदम आगे तुम्हें ही बढ़ाना होगा
काटो उन जड़ों को
जिन्हें पीढ़ियों ने सींच
तुम्हारी शिराओं में बोया है
बनाओ खुद को एक जलता तेज़ाब
कि देख लो जो नज़र उठा तो हो जाए वो भस्म
यहाँ नहीं सुनी जातीं खामोश चीखें
जब तक न फुफकारो
और बहते आँसुओं से
नहीं बुझा करती उनके अहम की अग्नि
इसलिए
तीव्र विरोध के स्वर ही बनते हैं किसी भी युद्ध में जीत का प्रतीक
जान लो
मान लो इस बात को ...ओ बदहवास कठपुतलियों !!!
हम व्यथित हैं तुम्हारे लिए
बचा लो स्त्री जाति को इस विनाश से
जागो, जागो, जागो ओ बसंती हवाओं
मत मिटाओ खुद को उन नामर्दों के लिए
तुम्हारे दर्द से बेहाल है आज सम्पूर्ण स्त्री जाति
तुम्हारे आँसुओं से सुलग रही है हमारी छाती
खुद पर रहम करना आखिर कब सीखोगी तुम ?

5 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
06/04/2021 मंगलवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......


अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

Ananta Sinha ने कहा…

आदरणीया मैम ,
सम्पूर्ण स्त्री-जाती को जगाती हुई, आत्मा झकझोर कर रख देने वाली एक अत्यंत सशक्त कविता।
सच, एक स्त्री को अपने उत्थान के लिए स्वयं ही पहल करनी होगी , उसके बाद ही किसी और के पहल करने का कोई अर्थ होगा या फिर यह कहें कि उसके विद्रोह करने पर ही कोई और उसके लिए आवाज़ उठाएगा।
बहुत ही सुंदर रचना। हार्दिक आभार इस ओजपूर्ण सशक्त रचना के लिए।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर एक स्त्री को उठाना होगा ... वरना यज्ञ पूर्ण नहीं होगा ...

झकझोर देने वाली रचना

रेणु ने कहा…

वाह👌👌👌 स्त्री को जागना होगा। शक्ति के जागरण का शंखनाद करती रचना के साथ हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏 शुभकामनाएं

Manisha Goswami ने कहा…

👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌