ए उदासियों आओ
इस मोहल्ले में जश्न मनाओ
कि यहाँ ऐतराज़ की दुकानों पर ताला पड़ा है
सोहर गाने का मौसम बहुत उम्दा है
रुके ठहरे सिमटे लम्हों से गले मिलो
हो सके तो मुस्कुराओ
एक दूजे को देखकर
यहाँ अदब का नया शहर बसा है
सिर्फ तुम्हारे लिये
रूमानी होने का मतलब
सिर्फ वही नहीं होता
तुम भी हो सकती हो रूमानी
अपने दायरों में
इक दूजे की आँख में झाँककर
सिर्फ इश्क की रुमानियत ही रुमानियत नहीं हुआ करती
उदासियों की रुमानियतों का इश्क सरेआम नहीं हुआ करता
चढ़ाये होंगे इश्क की दरगाह पर
सबने ख्वाबों के गुलाब
जिनकी कोई उम्र ही नहीं होती
मगर
उदासियों की सेज पर चढ़े गुलाब
किसी उम्र में नहीं मुरझाते
ये किश्तों में कटने के शऊर हैं
हो इरादा तो एक बार आजमा लेना खुद को
उदासियाँ पनाह दे भी देंगी और ले भी लेंगी
कि उदासियों से इश्क करने की कसम खाई है इस बार...
9 टिप्पणियां:
वंदना जी काफ़ी दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ मेरा।
ओर अब तक 5-6 पोस्ट पढ़ चुका। कोई ख़ास दम न लगा। लेकिन आपकी ये रचना लीक से हटकर दिखी।
बहुत उम्दा।
जहां एतराज नहीं वहां इश्क़ नहीं होता।
मुझे भी उदासी मां लगती है
जो औरत नहीं सिर्फ मां होती है।
ये असल साहित्य सृजन है।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ये किश्तों में कटने के शऊर हैं
हो इरादा तो एक बार आजमा लेना खुद को
उदासियाँ पनाह दे भी देंगी और ले भी लेंगी
बेहतरीन..
सादर
सिर्फ इश्क की रुमानियत ही रुमानियत नहीं हुआ करती
उदासियों की रुमानियतों का इश्क सरेआम नहीं हुआ करता। वाह!!
उदासियों की सेज पर चढ़े गुलाब
किसी उम्र में नहीं मुरझाते ।
वाह । क्या बात कही है ।।
आज कल यूँ भी उदासियों का ही आलम है ।
उदासियाँ भी रूमानी हो सकती हैं !
किसी ने कभी उन्हें समझने की कोशिश भी तो नहीं की।
सिर्फ इश्क की रुमानियत ही रुमानियत नहीं हुआ करती
उदासियों की रुमानियतों का इश्क सरेआम नहीं हुआ करता
वाह!!!
क्या बात...
वाह।🌻
वाह ! उदासियों की सेज पर चढ़े गुलाब
किसी उम्र में नहीं मुरझाते ।
। इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog
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