बचा लो जो बचा सकते हो
ज़िन्दगी और मौत में ठनी है रार
अभी सदी ने सफहा पलटा नहीं है
अभी तो लिखी भर है इबारत
और तुम इतने भर से घबरा गए
जब तिलक लहू से माथे पर किया जाता है
उसे खुरचने को कोई औजार नहीं बना होता
प्रयास के अंतिम प्रहर में ही
कामयाबी दस्तखत किया करती है
तुम तय करो
लड़ना किससे है तुम्हें
जीतना किससे है तुम्हें
ज़िन्दगी से या मौत से
या फिर अपनी हताशा से, अपने विश्वास से
इस बार मौत ने चुपके से कान में सरगोशी नहीं की है
इस बार डंके की चोट पर कर रही है मुनादी
फिर ज़िन्दगी कैसे दहशत के लिफाफे में खुद को कैद रख सकती है
ज़िन्दगी वो योद्धा है
जो हर हाल में जीतना जानती है
बशर्ते
अपनी कमजोरियों से जीत सके
2 टिप्पणियां:
जिंदगी जीत सकती है अगर अपनी कमजोरियों से लड़े..बिलकुल सही कहा है आपने
बहुत ही सुंदर
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