दोहरी ज़िन्दगी जीते हम लोग
हर पल चेहरे बदलते हैं
अपने लिए एक चेहरा
और दुनिया के लिए
दूसरा रखते हैं
अपने मापदंड अलग रखते हैं
अपने ख्वाबों के लिए
अपनी हर चाहत के लिए
हर हथकंडा अपनाते हैं
मगर जब वो ही ख्वाब
कोई दूसरा देखे तो
मापदंड बदल जाते हैं
फिर भी दुनिया
ना जान पाती हैं
चेहरे के पीछे छिपे चेहरे को
ना पहचान पाती हैं
हम अपने लिए जो चाहते हैं
क्यूँ दुनिया को ना दे पाते हैं
दूसरे का ख्वाब आते ही
क्यूँ हमारे अर्थ बदल जाते हैं
कब तक हम चेहरे बदल पाएंगे
दोहरी ज़िन्दगी की आग में
इक दिन ख़ुद ही जल जायेंगे
उस दिन ना हम
दुनिया के रह पाएंगे
और ना ही अपने आप के
फिर किस भुलावे में
जिए जाते हैं
दोहरी ज़िन्दगी की आग से
क्यूँ ना निकल पाते हैं
दोहराव कब टिका हैं
एक दिन तो आख़िर
मिटा ही हैं
हम भी कब तक
टिक पाएंगे
इक दिन इस दोजख से
शायद निकल पाएंगे
11 टिप्पणियां:
फॉण्ट थोडा बड़ा कर दिया करें तो पढने में आसानी होगी
अच्छी कविता
दोहरापन के दोराहे पर तो न जाने कितनी जिंदगियां बरबाद हो गई। सुंदर अभिव्यक्ति।
दोहरापन के दोराहे पर न जाने कितनी ही जिंदगियां बरबाद हो गई। सुंदर अभिव्यक्ति। बधाई।
वन्दना जी!
धूप के संसार में सब,
लोग मोम जैसे बन गये हैं।
हर चेहरा,
सुबह को कुछ और है,
जाना पहचाना सा लगता है,
परन्तु शाम तक,
पिघल जाता है और,
बदसूरत हो जाता ह,ै
वह अपना रूप, आकृति
सब कुछ बदल लेता है।
शायद,
यही इस दुनिया की नियति है,
इसी का नाम तो विडम्बना है।
अच्छे विरह श्रंगार के लिए
बधाई स्वीकार करें।
वन्दना जी!
धूप के संसार में सब,
लोग मोम जैसे बन गये हैं।
हर चेहरा,
सुबह को कुछ और है,
जाना पहचाना सा लगता है,
परन्तु शाम तक,
पिघल जाता है और,
बदसूरत हो जाता है,
वह अपना रूप, आकृति
सब कुछ बदल लेता है।
शायद
यही इस दुनिया की नियति है,
इसी का नाम तो विडम्बना है।
अच्छे विरह श्रंगार के लिए
बधाई स्वीकार करें।
बहुत सुन्दर मनोभिव्यक्ति है
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गुलाबी कोंपलें
बहुत सुन्दर रचना...सार्थक और प्रेरक...
नीरज
kya baat hai vandana ji ,
nazm to bahut tez hai .. lekin , sahi hai .. zindagi ke rang ko darshati hui ..
badhai
आपकी इस रचना को पढकर एकदम कई चीजों याद आ गई। आपने इस मुखोटे के भाव को बहुत ही उम्दा तरीके से लिखा है। और यह सच भी है आज के समय का। मैं कल परसो बोलने ही वाला था कि कुछ थोडा अलग लिखे। और आज आपने लिख दिया। और वो भी इतना बेहतरीन कि पढकर आनंद आ गया। मैंने भी इस मुखोटे पर कभी लिखा था अपने ब्लोग पर, पर आपने उससे भी बहुत अच्छा लिखा है।
ज़िन्दगी के नज़रिये को खूबसूरती से दर्शाती रचना
अपनी हर चाहत के लिए
हर हथकंडा अपनाते हैं
मगर जब वो ही ख्वाब
कोई दूसरा देखे तो
मापदंड बदल जाते हैं
एकदम सटीक लिखा है, पर आजके अर्थतंत्र में मुद्रा अर्जन की इससे बेहतर और कोई तकनीक है ही नहीं.
आज संस्कार, सत्त्यता, इमानदारी, आदि दूसरों से चाहते तो सब है पर अपनी आने पर यही मूल्य मुद्रा प्राप्त करने के चक्कर में भूल जाते हैं.
सुन्दर, सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार.
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