Wednesday, September 17, 2008
Thursday, September 11, 2008
मेरे आँगन में न उतरी धूप कभी
तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या
न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे
न जोड़ सकी यादों के तार कभी
न जला सकी प्यार के दिए कभी
इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें
माना नही ठहरती धूप किसी भी आँगन में
मगर मेरे आँगन में तो धूप की एक
छोटी सी किरण भी न उतर सकी
भला कैसे जानूं मैं किस तरह
खिला करती है धूप आँगन में
तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या
न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे
न जोड़ सकी यादों के तार कभी
न जला सकी प्यार के दिए कभी
इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें
माना नही ठहरती धूप किसी भी आँगन में
मगर मेरे आँगन में तो धूप की एक
छोटी सी किरण भी न उतर सकी
भला कैसे जानूं मैं किस तरह
खिला करती है धूप आँगन में
एक परछाईं हूँ ,न जाने कब गुम हो जाऊँ,
न करो इससे प्यार,एक छलावा हूँ,सिर्फ़ छलना जानती हूँ,
मुझे पकड़ने की दौड़ में कहीं तुम बहुत आगे न निकल आना
ज़माना साथ न दे सकेगा,तुम्हें ही पीछे जाना पड़ेगा,
एक साया सा हूँ मुझे छूने की कोशिश न कर,
कहीं ऐसा न हो ,तुम्हारा अपना साया ही
तुम्हारा साथ न छोड़ दे ।
न करो इससे प्यार,एक छलावा हूँ,सिर्फ़ छलना जानती हूँ,
मुझे पकड़ने की दौड़ में कहीं तुम बहुत आगे न निकल आना
ज़माना साथ न दे सकेगा,तुम्हें ही पीछे जाना पड़ेगा,
एक साया सा हूँ मुझे छूने की कोशिश न कर,
कहीं ऐसा न हो ,तुम्हारा अपना साया ही
तुम्हारा साथ न छोड़ दे ।
आसमान पर लगे हैं हम तारों की तरह
न जाने किस दिन टूट कर गिर जायें
हो चुकी है रहगुजर कठिन
मुश्किल से मिलेंगे नक्शे कदम
वक्त की आंधियां चलीं कुच्छ इस कदर
कि हम झड़ गए ड़ाल से सूखे हुए पत्तों की तरह
न जाने किस दिन टूट कर गिर जायें
हो चुकी है रहगुजर कठिन
मुश्किल से मिलेंगे नक्शे कदम
वक्त की आंधियां चलीं कुच्छ इस कदर
कि हम झड़ गए ड़ाल से सूखे हुए पत्तों की तरह
हर आँचल हो पाक ये जरूरी तो नही
हर आइना हो साफ़ ये जरूरी तो नही
हर फूल में हो खुशबू ये जरूरी तो नही
हर खुशी हो अपनी ये जरूरी तो नही
हर अपना हो अपना ये जरूरी तो नही
इसलिए
हर चेहरा हो खिला ये जरूरी तो नही
हर आइना हो साफ़ ये जरूरी तो नही
हर फूल में हो खुशबू ये जरूरी तो नही
हर खुशी हो अपनी ये जरूरी तो नही
हर अपना हो अपना ये जरूरी तो नही
इसलिए
हर चेहरा हो खिला ये जरूरी तो नही
Tuesday, September 9, 2008
मेरी मुस्कराहट तो एक ऐसा दर्द है
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता
हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता
हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
हर सितम सहूंगी उसके ये इकरार करती हूँ
इसे बेबसी कहूं या क्या कहूं,क्यूंकि
मैं उससे प्यार करती हूँ
जो गम दिए हैं मेरे देवता ने
मैं उनका आदर करती हूँ
उस सौगात का अनादर नही कर सकती,क्यूंकि
मैं उनकी पूजा करती हूँ
पुजारिन हूँ तुम्हारी में
बस इतना चाहती हूँ
मेरे मन मन्दिर में मेरे देवता
हर पल हर दिन बसे रहना
नही मांगती तुमसे कुछ मैं
मुझसे पूजा का अधिकार न लेना
इसे बेबसी कहूं या क्या कहूं,क्यूंकि
मैं उससे प्यार करती हूँ
जो गम दिए हैं मेरे देवता ने
मैं उनका आदर करती हूँ
उस सौगात का अनादर नही कर सकती,क्यूंकि
मैं उनकी पूजा करती हूँ
पुजारिन हूँ तुम्हारी में
बस इतना चाहती हूँ
मेरे मन मन्दिर में मेरे देवता
हर पल हर दिन बसे रहना
नही मांगती तुमसे कुछ मैं
मुझसे पूजा का अधिकार न लेना
दुनिया के कोलाहल से दूर
चरों तरफ़ फैली है शांती ही शांती
वीरान होकर भी आबाद है जो
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
फिर भी मिलता है सुकून उस ओर
ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ
चरों तरफ़ फैली है शांती ही शांती
वीरान होकर भी आबाद है जो
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
फिर भी मिलता है सुकून उस ओर
ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ
उदास नज़र आता है हर मंज़र
नज़र आता नही कहीं गुलशन
हर तरफ़ क्यूँ उदासी छाई है
या फिर मेरे दिल में ही तन्हाई है
हर शय ज़माने की नज़र आती है तनहा
समझ आता नही ज़माने की उदासी का सबब
वीरान सा नज़र आता है हर चमन
या फिर मेरी नज़र में ही वीरानी छाई है
नज़र आता नही कहीं गुलशन
हर तरफ़ क्यूँ उदासी छाई है
या फिर मेरे दिल में ही तन्हाई है
हर शय ज़माने की नज़र आती है तनहा
समझ आता नही ज़माने की उदासी का सबब
वीरान सा नज़र आता है हर चमन
या फिर मेरी नज़र में ही वीरानी छाई है
उड़न ज़िन्दगी की है कहाँ तक
प्यार ज़िन्दगी में है कहाँ तक
शायद
ज़िन्दगी है जहाँ तक
लेकिन
ज़िन्दगी है कहाँ तक
नफरत की सीमा शुरू हो
शायद वहां तक
प्यार की सीमा ख़त्म हो
शायद वहां तक
प्यार ज़िन्दगी में है कहाँ तक
शायद
ज़िन्दगी है जहाँ तक
लेकिन
ज़िन्दगी है कहाँ तक
नफरत की सीमा शुरू हो
शायद वहां तक
प्यार की सीमा ख़त्म हो
शायद वहां तक
Sunday, September 7, 2008
हम तो ता-उम्र तुझ में ख़ुद को ढूंढते रहे
सुना था
प्यार करने वाले तो दो जिस्म एक जान होते हैं
क्या पता था
ये सिर्फ़ कुच्छ लफ्ज़ हैं
सुना था
प्यार करने वाले तो दो जिस्म एक जान होते हैं
क्या पता था
ये सिर्फ़ कुच्छ लफ्ज़ हैं
Thursday, September 4, 2008
लोग न जाने कैसे किसी के दिल में घर बना लेते हैं
हमें तो आज तलक वो दर -ओ-दीवार न मिली
लोग न जाने कैसे किसी के प्यार में जान गँवा देते हैं
हमें तो आज तलक उस प्यार का दीदार न मिला
लोग न जाने कैसे काँटों से दोस्ती कर लेते हैं
हमें तो आज तलक दर्द के सिवा कुच्छ भी न मिला
लोग न जाने कैसे जानकर भी अनजान बन जाते हैं
हमें तो आज तलक कोई अनजान भी न मिला
हमें तो आज तलक वो दर -ओ-दीवार न मिली
लोग न जाने कैसे किसी के प्यार में जान गँवा देते हैं
हमें तो आज तलक उस प्यार का दीदार न मिला
लोग न जाने कैसे काँटों से दोस्ती कर लेते हैं
हमें तो आज तलक दर्द के सिवा कुच्छ भी न मिला
लोग न जाने कैसे जानकर भी अनजान बन जाते हैं
हमें तो आज तलक कोई अनजान भी न मिला
ज़ख्म कितने दोगे और यह तो बता दो
अब तो दिल का कोई कोना खाली न बचा
हाल-ऐ-दिल तो क्या तुम समझोगे मेरा
जब तेरे दिल के किसी कोने में जगह ही नही
अब तो दिल का कोई कोना खाली न बचा
हाल-ऐ-दिल तो क्या तुम समझोगे मेरा
जब तेरे दिल के किसी कोने में जगह ही नही
Wednesday, September 3, 2008
वो आज तक कुच्छ सुन नही पाया
जो हम उससे कभी कह न पाये
दिल के कुच्छ अरमान
शब्दों के मोहताज़ नही होते
कुच्छ वाकये तो नज़रों से बयां होते हैं
जो हम उससे कभी कह न पाये
दिल के कुच्छ अरमान
शब्दों के मोहताज़ नही होते
कुच्छ वाकये तो नज़रों से बयां होते हैं
कोसी ने कर दिया
अपनों को अपनों से
कोसो दूर
अब के बिछडे
फिर न मिलेंगे कभी
ज़ख्म रूह के
फिर न भरेंगे कभी
हालत पर दो आंसू गिराकर
सियासत्दार फिर न
मुड़कर देखेंगे कभी
उजडे आशियाँ
फिर भी बन जायेंगे
पर मन के आँगन
फिर न भरेंगे कभी
अपनों को अपनों से
कोसो दूर
अब के बिछडे
फिर न मिलेंगे कभी
ज़ख्म रूह के
फिर न भरेंगे कभी
हालत पर दो आंसू गिराकर
सियासत्दार फिर न
मुड़कर देखेंगे कभी
उजडे आशियाँ
फिर भी बन जायेंगे
पर मन के आँगन
फिर न भरेंगे कभी
जिस्मों से बंधे जिस्मों के रिश्ते
रूह का सफर कभी तय कर नही पाते
जो रिश्ते रूह में समां जाते हैं
वो जिस्मों की बंदिशों से आजाद होते हैं
रूह का सफर कभी तय कर नही पाते
जो रिश्ते रूह में समां जाते हैं
वो जिस्मों की बंदिशों से आजाद होते हैं
Monday, September 1, 2008
ज्वार भाते ज़िन्दगी को कहाँ ले जायें पता नही
ज़िन्दगी भी कब डूबे या तर जाए पता नही
बस ज्वार भाते आते रहते हैं और आते रहेंगे
न पूनम की रात का इंतज़ार करेंगे
न अमावस्या की रात का
बस ज़िन्दगी इन्ही ज्वार भाटों के बीच
कब डूबती या समभ्लती जायेगी पता नही
ज़िन्दगी भी कब डूबे या तर जाए पता नही
बस ज्वार भाते आते रहते हैं और आते रहेंगे
न पूनम की रात का इंतज़ार करेंगे
न अमावस्या की रात का
बस ज़िन्दगी इन्ही ज्वार भाटों के बीच
कब डूबती या समभ्लती जायेगी पता नही
Thursday, August 28, 2008
कभी कभी कुछ लफ्ज़ दिल को ज़ख्म दे जाते हैं
कभी कभी मरहम भी दर्द का सबब बन जाती है
कब कौन आ के कौन सा ज़ख्म उधेड़ दे ,क्या ख़बर
कभी कभी दुआएं भी बद्दुआ बन जाती हैं
तस्वीर का रुख बनाने वाले को भी न समझ आया
कभी कभी आईने भी तस्वीर को बदल देते हैं
कभी कभी मरहम भी दर्द का सबब बन जाती है
कब कौन आ के कौन सा ज़ख्म उधेड़ दे ,क्या ख़बर
कभी कभी दुआएं भी बद्दुआ बन जाती हैं
तस्वीर का रुख बनाने वाले को भी न समझ आया
कभी कभी आईने भी तस्वीर को बदल देते हैं
Wednesday, August 27, 2008
जब ज़िन्दगी में भागते भागते हम थकने लगते हैं तब मन उदास होने लगता है । आत्मा बोझिल होने लगती है । कुच्छ देर कहीं ठहरने को दिल करता है मगर ज़िन्दगी तो ठहरने का नाम नही न . और हम एक ठिकाना ढूँढने लगते हैं जहाँ khud ko mehsoos kar सकें।कुच्छ der khud ko waqt ke aaine mein dekh सकें, kya खोया, क्या पाया, जान सकें।
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