सोच ज़रा
कितना दिल
दुख होगा
जब तेरी
खामोशी ने
उसको डंसा होगा
कुछ पल तो
साथ बिता लेते
उसके दिल का
हाल जान लेते
उसके ज़हर को
अमृत बना देते
उसे उसके दर्द से
निजात दिला देते
तो कुछ ही पलों में
दर्द के सागर में
ज़ज्बातों के
तूफ़ान की कश्ती
ठहर जाती
वो अपने दरिया में
सिमट जाती
तेरे साथ होने के
अहसास से ही
वो हर ज़हर को भी
अमृत समझ पी जाती
सोच ज़रा
कितना दिल दुख होगा
9 टिप्पणियां:
दर्द और शब्दों का रिश्ता अच्छा कयाम किया है आपने
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
dard ki aah dil tak pahunchi,gehre bhav badhai
हमेशा की तरह बेहतरीन भाव लिए यह रचना भी।
जालिम दुनिया ने तो दिल को,
समझा एक खिलौना।
खा-पीकर के फेंक दिया है,
समझ चाट का दौना।।
अमृत की गागर के भीतर,
गरल हलाहल होता है।
नदियों के सूखे तट पर भी,
भारी दलदल होता है।
जालिम दुनिया ने तो दिल को,
समझा एक खिलौना।
खा-पीकर के फेंक दिया है,
समझ चाट का दौना।।
अमृत की गागर के भीतर,
गरल हलाहल होता है।
नदियों के सूखे तट पर भी,
भारी दलदल होता है।
बहुत बढ़िया!
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
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