कुसुम कुसुम से ,कुसुमित सुमन से
तेरे मेरे मधुरिम पल से
अधरों की भाषा बोल रहे हैं
दिलों के बंधन खोल रहे हैं
लम्हों को अब हम जोड़ रहे हैं
भावों को अब हम तोल रहे हैं
नयन बाण से घायल होकर
दिलों की भाषा बोल रहे हैं
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल
12 टिप्पणियां:
लम्हों को अब हम जोड़ रहे हैं ...भावों को अब हम तोल रहे हैं ...
बहुत ही मीठी है ये रचना
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मीठे यह लम्हे यूँ ही दिल की तारों को छेड़ देते हैं ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल
very very sweet ,dil khila kusumita ki tarha waah.
हर पोस्ट में एक अलग रंग। देखना हो किसी को जीवन का इन्द्रधनुष तो यहाँ आए। हमेशा की तरह आज भी उम्दा लिखा।
धीरे से मन के आँगन में,
दिवा-स्वप्न भी चहक गये हैं।
नयन-बाण से घायल होकर,
काँटों में गुल बहक गये हैं।।
उर मन्दिर में बैठ गयी है,
आशा की परिभाषा।
मन में गहरी पैंठ गयी है,
मिलने की अभिलाषा।।
विधा व्यंजना और लक्षणा का, प्रयोग नया है।
शब्दों के संयोजन का, अच्छा उपयोग किया है।
वंदना जी
आज सुबह आपकी ये कविता पढ़कर बहुत ही आनंद प्राप्त हुआ ..अंतिम पंक्तियाँ तो बस कमल कि है .. दिल से बधाई स्वीकार करें .. इस बार कुछ अलग तरह से लिखा है आपने .. अच्छा लगा
धन्यवाद्.
लम्हों को कब तक जोड़ोगे,
भावों को कब तक तोलोगे।
मधुरिम पल मत व्यर्थ गवाँओ,
अधरों से कब तक बोलोगे।
दिवा-स्वप्न से क्या पाओगे,
केवल मन को भरमाओगे।
कुसुमित फल बरबाद करो मत,
बीती लम्हें याद करो मत।।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 18 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ... मैं अस्तित्त्व तम का मिटाने चला था
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल
मधुरिम पल ...मधुरिम कविता
chahak-chahak mahakti hui ...bahut sunder rachna....
कोमल अहसासों को पिरोती हुई एक खूबसूरत रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
वाह!
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